एक गांव में रहने वाले निर्धन दंपत्ति के तीन बेटे थे. बड़ा बेटा माँ का प्यारा था तो मंझला पिता का दुलारा. लेकिन छोटा बेटा घर में किसी को प्रिय नहीं था, सब उसे उपेक्षा के भाव से देखा करते थे. (Folklore Sone Ki Battakh)
एक दफा पिता बीमार पड़े तो घर में राखी जलावन की लकड़ी धीरे-धीरे ख़तम हो गयी. ये देख कर बड़े बेटे ने माँ से कहा कि— मेरे लिए कुछ खाने का पका कर बाँध दो तो मैं जंगल जा कर लकड़ियाँ काट कर लेता आता हूं. इजा ने एक पोटली में खाना बांधकर उसे जंगल के लिए रवाना कर दिया. कुल्हाड़ी और रस्सी लेकर वह जंगल जा पहुंचा. कुछ काम करने के बाद जब वह थक गया तो उसने सोचा कि पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने के बाद दोबारा काम पर जुटता हूं.
वह पहला कौर मुंह में डालता ही कि नाटे कद का एक आदमी उसके पास आया बोला— मैं भी बहुत भूखा हूं. भला हो अगर अपने भोजन में से कुछ मुझे भी दे दो, ताकि मेरी भूख भी मिट जाये. लड़के ने उसे लताड़ लगाकर वहां से भगा दिया. खरी-खोटी सुनने के बाद बौना वहां से जाता रहा. खाना निपटाकर वह दोबारा से उस सूखे पेड़ को काटने में जुट गया. इसी दौरान कुल्हाड़ी उसके पाँव में लग गयी और गहरा जख्म पाकर वह बिलबिलाने लगा. लकड़ी तो क्या लाता बेचारा खुद ही लंगड़ाते हुए किसी तरह घर पहुंचा.
दूसरे दिन बीच वाला बेटा नाश्ता बांधकर लकड़ियाँ लेने निकल पड़ा. वह जंगल पहुंचा तो उसने सोचा पहले रास्ते की थकान उतार लूँ और पेड़ की छाँव में बैठकर माँ का दिया खाना खा लूँ फिर लकड़ियाँ काटता हूं. जैसे ही उसने भोजन शुरू किया उसके पास भी वही बौना आकर भूखे होने की दुहाई देकर खाना मांगने लगा. उसने भी बड़े भाई की तरह जड़ी-कंजड़ी कह कर उसे वहां से भगाया. जैसे ही वह लकड़ियाँ काटने में जुटा उसका पैर भी कुल्हाड़ी की मार से जख्मी हो गया. वह भी किसी तरह घर पहुंचा.
बीमार पिता और दो चोटिल भाइयों को देखकर उसने माँ से कहा— इजा पिता बीमार हैं और दोनों भाई चोटिल तो मैं ही जंगल जाकर कुछ लकड़ियाँ काट लाता हूं. कुछ लकड़ियाँ बेच कर तेल, मसाले भी लेता आऊंगा. माँ ने उपेक्षा के भाव से उससे कहा— जो कामकाजी थे वे सब तो चोट खाकर घर में बैठे हैं. तू तो किसी काम का भी नहीं है, तू क्या लकड़ियाँ लाएगा क्या जो मसाले. उसने जिद की तो माँ ने बासी रोटियाँ और हरा नमक एक पोटली में बांधकर उसे दे दिया.
वह भी जंगल पहुंचा और भूख-प्यास लगने पर भोजन की पोटली खोल ली. उसके पास भी वही बौना आ पहुंचा और खाना मांगने लगा. उसने सोचा भाग्य का मारा जाने कैसे भूखा-प्यासा जंगल में भटक रहा है और अपना आधा खाना मालू के पत्ते पर उसे परोस दिया. बासी सूखी रोटियों को नमक के साथ बौने ने भी खाया. तृप्त होकर बौना उस से विदा मांगने लगा और बोला— सामने उस सूखे पेड़ पर कुछ चोट मारोगे तो वह गिर जाएगा. उसकी जड़ के नीचे से एक सोने कीई बत्तख मिलेगी. उसे शहर जाकर बेच आना और अपने कष्ट दूर कर लेना. उसने वैसा ही किया. कुछ मार खाकर पेड़ गिर गया और सचमुच उसकी जड़ से सोने की बत्तख मिली.
वह सोने की बत्तख लेकर नगर की ओर चल पड़ा. रस्ते में ही उसे रात पड़ गयी तो उसने एक वृद्धा के घर में दस्तक देकर उससे आसरा मांगा. उस घर में बुढ़िया और उसकी दो बेटियां रहती थीं. वह थका हुआ था तो जल्दी ही गहरी नींद में चला गया. उसे बेसुध पड़ा देख बड़ी लड़की के मन में विचार आया कि वह बत्तख चुरा ले. जैसे ही वह बत्तख चोरनी लगी तो खुद उससे चिपक गयी. छोटी बहन ने उसे छुड़ाने की कोशिश की तो वह भी बत्तख से चिपक गयी. सुबह जब लड़का बत्तख लेकर निकला तो दोनों लड़कियां भी चिपकी हुई उसके साथ चल पड़ीं. रास्ते में एक सिद्ध मिला तो लड़कियों ने उस से उन्हें छुड़ाने की विनती की. उन्हें छुड़ाने की कोशिश में सिद्ध बाबा भी बत्तख से चपक गया. कुछ दूर पर सिद्ध के चेले ने दो लड़कियों के साथ बत्तख से चिपके गुरु को देखा. उसने सोचा किसी ने सन्यासी गुरु को ऐसे लड़कियों पर चिपके देखा तो कैसा अनर्थ होगा और क्या जो बदनामी. शिष्य ने गुरु को छुड़ाने की कोशिश की तो वह भी साथ में चिपक गया. नगर प्रवेश करते हुए उन्हें कुछ मजदूर मिले तो गुरु-चेले ने उनसे खुद को छुड़ाने का आग्रह किया. वे भी चिपक लिए.
यह नगर अपने राज्य की राजधानी था. राजा लम्बे समय से राजकुमारी की उदासी से व्यथित था. राजकुमारी को जाने कब से हंसी नहीं आई थी. उसने नगर में नगाड़े बजाकर मुनादी करवाई थी कि जो मेरी बेटी को हंसायेगा उसे मुंह मांगा इनाम मिलेगा. नगर पहुँचने पर यह बात छोटे बेटे के कानों में भी पड़ी. उसने सोचा सोने की बत्तख देखकर राजकुमारी जरूर खुश होगी. वह राजमहल जा पंहुचा. सोने की बत्तख, उस से चिपकी दो लड़कियां, उस पर चिपका जोगी, चेला और तिस पर चिपके मजदूरों को देखकर राजकुमारी खिलखिलाकर हंसने लगी. अपनी बेटी की उदासी को दूर होता देख राजा-रानी बहुत खुश हुए. उन्होंने बत्तख वाले लड़के को न सिर्फ पुरस्कार दिए बल्कि राजकुमारी के साथ उसका गठबंधन भी किया. इस तरह जो न पिता का प्यारा था न माता का न भाइयों का वह राजा और राजपरिवार का प्यारा बन गया.
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