छोटी दादी रंगत में थी बोली आओ रै छोरों आज तुम्हे ऐसे बामण की कथा लगाउंगी जो न्यूत के बुलाया गया अर बिचारा पीट के पठाया गया. लो जी दादा जी कहते हैं बिन मांगे मोती मिले अर मांगे मिले न भीक. हम सब जगह हथियाने के चक्कर में एक दुसरे को ठेलने लगे. छोटी दादी चूल्हे में तरतीब से लकड़ियाँ लगाते बोली ठीक से गोल घेरे में बैठो रै. तभी लगेगी कथा. कथा के नाम से हम सब एक दूसरे पर दोष धरते, एक दूसरे को चुपाते दादी की तरफ देखने लगे.
त ध्यान धर के सब सुनो दूर एक गाँव के किसी घर में लड़के का ब्याह था. क्याच कि धमा धम की तैयारी मची थी. बच्चों से ले कर बूढ़े तक सब अपने अपने कामों में लगे थे. हे बाबा तब एक घर का काज जो क्या होता था. ब्याह, तेरहवीं, बरसी, मुंडन, सत्यनारायण की कथा कोई भी काज हो वो पूरे गांव का होता था. आहा क्या ज़माने थे बाबा. जिसके हाथ का जो काम वही लगा है. गाँव के सयाने सबको काम अड़ाते.
चलो रै छोरों सारा गुठ्यार साफ़ करके सोर दो. जाओ रै बच्चों आम और पीपल के पत्ते तोड़ के लाओ. पूरा बोरा भर के लाना. स्वागत द्वार बनाना है. हे लड़कियों खी खी मत करो जाओ पंदेरे से पानी भर के लाओ. जितनी टंकियां चौक की दीवार पर रखी हैं सब भरनी चाहिए. जितने तौले, पतीले रखे हैं उन्हें भी भर देना. दादियां, बड़ी सयानियां सूप छन्नियां ले कर चावल, दाल, गेहूं साफ कर रही है. माँ चाची धान कूट रही हैं. कुछ जवान ब्वारियां जान्द्री में गेहूं पीस रही हैं.
जवान लड़कों ने तूण का बड़ा पेड़ काट कर लकड़ियाँ चीर ली. गांव की ब्वारियों ने पहले ही चीरी हुई लकड़ियों को एक के ऊपर एक जमा कर खेत के किनारे जमा कर दिया था. नवरात्रे शुरू होते ही जवान लड़कों ने जंगल से रोज बोरे भर भर के मालू के पत्तों के ढेर लगा दिए. जो दाने सयाने दौड़ भाग का काम नहीं कर सकते थे वो सभी रोज ब्याह वाले घर में जमा हो जाते और घरात खाने वालों के लिए पत्तल, पुड़के (दोने) बना रहे थे. ये लोग दिन भर चाय तम्बाकू की सोड़ मारते अलाने, फलाने के ब्याह के खाने की तारीफें, बुराई करते, फटाफट हाथ चलाते, अपना काम करते.
घर के बच्चे और ब्वारियां इस बात से बहुत चैन से रहते कि दो चार दिन बुड्ढे जी के ककड़ाहट बंद है. जानकार लड़के रंग बिरंगें कागजों से तिकोन पन्नियाँ काट कर बड़े जतन से सुतली की डोरियों पर आटे की लेई से चिपका कर ब्याह वाले घरके चारों तरफ बाँध कर सजाते जाते. घर का कोई बड़ा दौड़ के ढोल बजाने के ले लिए औजी को न्यूत आया. तण मण तण मण ढोल दमो बजाते औजी भी पंहुच गए.
पकौड़ियाँ बनाने को उड़द की दाल भिगो कर, उसके छिलके उतार कर पीसी जा रही है. बड़े बड़े पत्थरों से चूल्हे बनाये जा रहे हैं. उनमे लोहे की ये बड़ी चासनी रखी हैं. अर्से बनाने के लिए पहली रात को भिगोये चावल बेटी ब्वारियां ओखली में लै धमाधम कूट कर बारीक आटा जैसा बना देंगी.
अर्से बनाना कोई खेल नहीं होता बाबा, बड़ा सल्ली होता है अर्से बनाने वाला. गुड़ की भेलियोँ का ताक़ बनाना ही असली काम है. एक तरफ बामण पूजा पाठ की तैयारी कर रहा है. द बाबा बल छोटी पूजा त पांची भांडी अर बड़ी पूजा त पांची भांडी. ये तो ब्याह था तब. ब्यौले की माँ की बामण ने छांछ छोल रखी थी. जजमान ये लाओ, जजमान वो लाओ. एक काम थोड़ी. लै भागमभाग.
गणेश पूजा के लिए चौकली पूरी गयी. कच्ची हल्दी, समौया सरसों का तेल अर दै (दही) से हल्दी हाथ, बाने लगाये गए. माँगल लगाने वाली मंगलेर, माँगल लगाने लगी.
दैणा हुईयां खोली का गणेशा, दैणा हुईयां मोरी कु नारैण, दैणा हुईयां भूमि को भूमियाँ, दैणा हुईयां पंचनाम द्यवता. बामण दूब से पानी मंत्रता मन्त्र बोलने लगा. सब कर्म काण्ड करने के बाद बामण ब्यौले के हाथ कंगणा बाँधने लगा. तभी हममे से किसी ने पूछा – कंगणा क्या होता है दादी.
दादी ने उसकी मुंडी मलासी – द मेरु समझदार, कनु पूछी वैन.
हे बाबा ह्या ब्योली, ब्यौले के हाथ में दोनों तरफ के बामण एक पीले कपडे में सुपारी, एक चांदी के रुपया, कच्ची हल्दी नाले (कलावा) से खूब पक्का करके बांधते हैं. जब ब्योला बरात ले के ब्योली के घर जाता है तब गोत्राचार में ब्योली इस कंगन को खोलती है. अर बरात जब ब्यौले को लेकर आ जाती है तब गणेश पूजा में ब्यौली के हाथ पर बंधा कंगन ब्योला खोलता है. रिवाज के साथ मजाक भी खूब होता है बाबा ये कंगना को खोलने में.
दोनों तरफ भाभियाँ, सालियां, ननदें खूब ब्यौले ब्यौली को खूब जोर लगाने को कहती है. जो आसानी से खोल दे उसकी जीत मानी जाती हैं.
द बाबा यहाँ भी ब्यौले की भाभियाँ बोली बामण जी कंगणा जादा मजबूत मत बनाना. हमारी ड्यूरांण को तंग मत करना ड्यूरं जी. ब्यौले की बहने बोली बामण जी कंगणा इतना मजबूत बनाना खोलने में ब्योली के छक्के छूट जाएँ.
अपनी रौ में कंगना बनाते बामण जी दोनों पक्ष विपक्ष की बातों में रस लेते, कंगना की मजबूत तोलते बोले – गांठा नहीं टूटेगा!
“फिकर मत करो जजमान ब्यौला मर जायेगा पर गांठा नहीं टूटेगा”
ये सुनते ही ब्यौला के घर वाले तो सुन्न रह गए. हैं इस बामण ने हमारे शुभ कारज में क्या असगुन बात बोल दी. अर बामण भी सुन्न. मजाक मजाक में मुँह से क्या निकल गया. उठाया ब्यौला की माँ ने डंडा हे रै बामण कैसा मरा तेरा. वार त मेरे बेटे का ब्याह हो रहा है अर तू कुबाणी निकलता है. निकल मेरे घर से.
द बाबा बामण बिचारा भी क्या करता. अपनी बात से मरा गया. तब से कहावत ही हो गयी जब भी किसी काम को मजबूती से करने की बात होती लोग कहते है इतना मजबूती से बाँध दिया कि ब्यौला मर जायेगा पर गांठा नहीं टूटेगा.
-गीता गैरोला
देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.
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