कथा

लोक कथा : माँ की ममता

प्यार से गोपू पुकारा जाने वाला गोपाल बहुत मिन्नतों के बाद पैदा हुई अपने माता-पिता की इकलौती संतान था. माता-पिता अपनी मनोकामना का फल भोग ही रहे थे कि गोपू के बाबू चल बसे. इजा के पास अपने पति की मौत का शोक मानने का ज्यादा बखत भी नहीं था. गोपू की इजा ने बेटे को पालने-पोसने के लिए खूब मेहनत की. जमीन कमाई, गाय पाली और जरूरत पड़ी तो मजूरी भी करी. सारा गाँव कहता — गोपू की इजा ने उसे बाप की कमी महसूस नहीं होने दी. (Folk Tale of Uttarakhand)

गोपाल ने भी बखत आने पर अपनी माँ के हाथ से बोझ हलका करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. थोड़ा बड़ा और समझदार हुआ तो हर काम धंधे में इजा का हाथ बंटाता. बहुत मेहनत करने के बाद गुजर हो पाती थी लेकिन दोनों सुखी परिवार थे.

फिर गोपू जवान हो गया. अपनी माँ और गाँव भर का चहेता सुदर्शन गोपाल. इजा ने सोचा अब गोपू का ब्याह ठहरा देना चाहिए. बहू आयेगी तो मेरा भी हाथ बंटा दिया करेगी और बेटे पर काम का बोझ भी कम हो जाएगा. बात छेड़ी तो दूर गाँव में चिन्ह मिल गया. भला गोपू को दुल्हन की क्या कमी होनी थी, मेहनती था और घर-बार सँभालने वाला भी. सामर्थ्य भर धूम-धाम से ब्याह हुआ और सुंदर सी ब्वारी के चरण घर पर पड़े. परिवार की रौनक और बढ़ गयी. कितना ही अच्छा होता गोपू के बाबू ये दिन देख पाते, माँ को बस यही खलिश रहती.

ब्याह के कुछ दिनों बाद गोपू ने इजा से कहा — इजा अब तू बस घर के काम ही किया कर. गोठ-बण के काम और खेती-पाती हम संभल लेंगे. अब माँ घर के काम करती, इसमें भी बहू हाथ बंटाया करती. खेती-पाती का काम बेटे-बहू ने संभाल लिया. दोनों खेतों पर निकल जाते और दिन भर खूब काम करते. इस दौरान प्रणय और हंसी-ठिठोली भी चला करती, आखिर दोनों जवान और नवविवाहित जो थे. गाँव के लोगों को यह देख बहुत खुशी होती तो डाह रखने वाले भी थे ही.

गोपू अब भी अपनी इजा को पूरा प्यार देता लेकिन दुल्हन के आने से थोड़ा बखत तो अब बंट ही गया था. इसी का फायदा उठाकर इस खुश परिवार से जलन रखने वाले लोगों ने गोपू की इजा के बहू के खिलाफ कान भरने शुरू कर दिए— कैसा चुलखोसिया है हर समय बीवी के पल्लू से चिपका रहता है. वह भी सारा काम गोपू से करवाती है, खुद बस ठिठोली में लगी रहती है. और तो और सास के खिलाफ बेटे को भड़काती भी है. ऐसी बातें सुनकर माँ को भी लगने लगा कि बहु के कान भरने की वजह से ही बेटा अब मेरे पास कम ही बैठता है. अब उसे मेरी पहले जैसी चिंता कहाँ रही.

बहकावे में आकर एक दिन उसने अपनी बहू से ख ही दिया — तू मेरे बेटे को बहलाकर सारा काम मत करवाया कर और खबरदार जो मेरे बारे में उसे भड़काया तो. ब्वारी इन आक्षेपों से तिलमिला गयी और उसने सास से कहा ये बातें झूठी हैं. क्लेश बड़ा तो दोनों ने ही एक-दूसरे से जो न कहना था कहा. लेकिन गोपू समझदार था वह इस झगड़े में नहीं पड़ा. उसने न किसी का पक्ष लिए न किसी से कुछ भला-बुरा कहा. सोचा दो बर्तन टकराते ही हैं, सब ठीक हो जाएगा.

उस दिन के बाद सास-बहू एक दूसरे से खिंचे से रहने लगे. जरा सी बात में दोनों के बीच अनबन हो जाती और रोज ही कलेश मच जाता. इस सबके बीच बेचारा गोपू पिस जाता. न चाहते हुए भी उसका मन विषाद से भरा रहता. उसके लिए तो दोनों ही प्यारे थे. वह तो किसी को भी कम लाड़ नहीं करता था. उसने अपनी पत्नी से कहा वही चुप हो जाया करे, बड़ों की बात का क्या बुरा मानना.

एक रात फिर किसी बात पर सास-बहू का कलेश शुरू हो गया. गोपू ने अपनी पत्नी की तरफ देखकर आँख चौड़ी की तो वह चुप हो गयी. सास फिर भी ताने देती रही और आखिर दोनों लड़ने लगे. गोपू का मन तो इस झगडे से क्लांत था ही. जब लड़ाई-झगड़ा ख़त्म ही नहीं हुआ तो उसने तैश में आकर अपनी माँ का गला पकड़ लिया. पत्नी का रोना सुन बुढ़िया के गले में पकड़ ढीली करने से पहले ही उसके प्राण निकल गए. मृत शरीर को देखकर बहू-बेटे सन्न रह गए, वे ऐसा चाहते तो नहीं थे. उन्होंने बुढ़िया के मुंह में पानी के छींटे मारे, मुंह में गंगाजल की घूँट भरे लेकिन गए प्राण भला कब वापस आये.

यह देखकर जैसे सारी प्रकृति अपना रोष प्रकट करने लगी. आसमां में काले बादल डरावने तरीके से गड़गड़ाहट करने लगे, बिजलियाँ कड़कने लगीं. गाड़-गधेरे ऊंचे स्वर निकलने लगे. हवा ऐसे सनसनाने लगी जैसे कान के बगल से तलवारें गुजर रही हों. अपयश से बचने के लिए गोपू ने सोचा रात के घुप्प अँधेरे में माँ के शव को कहीं दूर ले जाकर दफना दिया जाये. उसने मृत देह को रिंगाल की बड़ी सी टोकरी में लादा और घने जंगल में घुस गया. सात कोस अंदर जंगल में उसने गड्ढा खोदा और माँ को फटाफट उसमें धकेल दिया. फिर वह ऊपर से मिट्टी डालने लगा. ये देखकर जैसे बादल और नाराज हो गए, वे और ज्यादा डरावने ढंग से गरजने लगे.

तभी बारिश की बूँदे भी बरसने को हुईं. ठीक उसी पल गड्ढे के भीतर से गोपू की इजा बोली — ओ रे! बादलों अभी मत बरसना हो. मेरे बेटे गोपू को ठीक से गांव-घर पहुँचने देना, उसके बाद फिर जितना चाहो बरस जाना. मरी हुई माँ के बचन सुनकर गोपू फूट-फूटकर रोने लगा. जमीन पर अपना सर पटकते हुए वह बोलता जाता — ये मैंने क्या कर दिया. जिस माँ की हत्या करने का पाप मुझे हुआ है मेरे लिए उसकी ममता तो में तो अब भी जरा सा कमी नहीं आई. उसका मन पश्चाताप की भावना से भर गया लेकिन अब भला क्या फायदा हुआ माँ के प्राण तो वापस आने नहीं थे.    

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Sudhir Kumar

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