कला साहित्य

बुद्धिमान मां और उसके बेवकूफ बेटे की कहानी

एक गांव में एक औरत और उसका बेटा पुरु रहता था. मां जितनी बुद्धिमान थी पुरु उतना ही नासमझ. जब पुरु बड़ा हुआ तो उसने अपनी मां से कहा कि वह धन कमाने के लिये शहर जाएगा. पहले तो पुरु की मां से उसे समझाया पर जब वह न माना तो एक दिन मां ने रास्ते के लिये कुछ पूड़ियाँ बांधकर उसे शहर को भेज दिया.
(Folk Stories Uttarakhand Ivan Minayev)

गांव से काफ़ी दूर निकलने के बाद जब पुरु थक गया तो उसने एक पेड़ के नीचे बैठकर पूड़ियाँ खाना शुरु किया. उसे पूड़ी खाता देख एक कुत्ता उसके पास आया और बड़ी याचना की दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा. पुरु ने अपनी पूड़ियों में से एक पूड़ी कुत्ते को दे दी.

बड़े दिनों से भूखे कुत्ते को जब एक पूरी मिली तो उसने पुरु की मदद करने की सोची. कुत्ता भागता हुआ एक गुफा के पास गया और वहां पर गिरे एक सेठ का बैग उठाकर पुरु के पास ले आया. पुरु ने जब बैग खोलकर देखा तो उसमें सोना भरा हुआ था. उसने कुत्ते को प्यार पुचकारा और शाम होने से पहले अपने घर लौट आया.

पुरु ने सोने से भरा बैग अपनी मां को दिया और सारी बात बता दी. इतना सोना देखकर मां चकित रह गयी. मां ने पुरु को हाथ-पैर धोने को कहा और अपना बाज़ार जाकर आठ आने की मिठाइयाँ ले आई. बाज़ार से लाई मिठाइयों को मां ने घर की छत और आंगन में फैला दिया. जब पुरु लौटा तो उसने कहा- देखो बेटा आज का दिन कितना शुभ है सुबह तुम्हें सोना मिला अब आसमान से मिठाइयां बरस रही हैं.
(Folk Stories Uttarakhand Ivan Minayev)

पुरु ख़ुशी-ख़ुशी आंगन और छत में दौड़-दौड़ कर मिठाइयाँ खाने लगा. मां ने कुछ सोना बेचकर अपने लिये और अपने बेटे के लिये कुछ नये कपड़े भी सिलवाये. सोना मिलने से घर की तंगी में सुधार हुआ पर माँ अपने बेटे की नसमझी से अब तक परेशान थी.

एक दिन पुरु अपनी मां के पास आया और बोला मां मुझे चार पैसे दो. मां ने पूछा कि वह इन पैसों का क्या करेगा तो वह बोला- एक पैसे के वह पान के पत्ते खरीदेगा, एक पैसे की वह पान की सुपारी खरीदेगा, एक की वह मिठाइयाँ खायेगा और बचा एक पैसा वह वैश्या को देगा.

मां ने बिना बहस किये बेटे को चार पैसे दिये. पुरु चार पैसे लेकर पनवारी की दुकान पर गया और बोला- अरे ओ पनवारी काकू क्या तुम्हारे पास बढ़िया पान है.

पनवाड़ी बोला- हां च्येला है बहुत बढ़िया पान है. मैं किसी के हाथ तुम्हारे पास भेज दूंगा. बताओ कितने लगा दूं.

पूरे डेढ़ सौ पान बना देना, पुरु ने कहा.

इसके बाद पुरु मिठाई वाले की दुकान पर गया और बोला- मिठाई वाले क्या तुम्हारी मिठाइयाँ तैयार हैं. हां हां साब कितने किलो तौल दूं. मिठाई वाले ने पूछा.

दो तीन मन तोल कर रख दो आते हुये लेता हूँ, कहता हुआ पुरु आगे बढ़ गया.

उसके बाद उसने पूरी रात वैश्या के साथ गुजारी. रात गुजारने के बाद जब वह वैश्या को एक पैसा देने लगा तो वह बिफ़र पड़ी. दोनों के बीच जोर-जोर से झगड़ा होने लगा. पूरी रात मेरे साथ गुजारने के बाद तू मुझे एक पैसा दे रहा है, कहते हुये वह पुरु को अपने जूतों से पीटने लगी. वैश्या ने उसका जाखट छीना और धक्के मारते हुये उसे बाहर निकाला.
(Folk Stories Uttarakhand Ivan Minayev)

वैश्या के यहाँ से पुरु मिठाई वाले की दुकान पर गया. मिठाई वाले के वहां जाकर चिल्लाया- अरे ओ मिठाई वाले क्या मिठाई तैयार हैं. मिठाई वाला बाहर निकलते हुये कहने लगा- हां सर बिलकुल तैयार हैं बताइये कितनी मिठाई तोल दूं.

पुरु ने कहा- मुझे एक पैसे में जितनी मिठाई आती हैं उतनी दो. यह सुनकर मिठाई वाले ने उसे तब तक पीटा जब तक उसका ऊपर का शरीर नीला और काला न हो गया. गुस्से में मिठाई वाले ने पुरु के ऊपर के सारे कपड़े छीन लिये.

अब पुरु पान वाले की दुकान पर गया और कहने लगा- अरे काकू क्या मेरा पान तैयार है. पान वाले ने कहा- हां च्याला तैयार है. पुरु ने कहा- हां एक पैसे के दे दो. पान वाले को बड़ा गुस्सा आया. उसने पुरु के बाल पकड़कर ठीक से पिटाई कर दी और उसके बचे हुये कपड़े भी छीन लिये.

पुरु जब घर जाने को हुआ तो उसने सुना की गांव में एक लड़का ढोल बजाते हुये घोषणा कर रहा है कि हमारे सेठ का सोने से भर एक बैग कहीं खो गया है. जो भी उसको ढूंढकर देगा उसे ईनाम दिया जायेगा. पुरु तुरंत लड़के के पास गया और कहने लगा मुझे वह बैग मिला था मुझे ईनाम दो. लड़के ने उससे पूछा – बैग कहाँ है?

मेरी मां के पास, पुरु ने जवाब दिया.

ढोल वाला लड़का अपने आदमियों के साथ पुरु के घर गया. पुरु ने घर जाकर अपनी मां से कहा- मां वह बैग कहाँ है जो मैंने तुम्हें दिया था. उसकी मां ने कहा- कौन सा बैग. वही जिसमें सोना भरा था, पुरु ने तुरंत कहा.

तू किस बैग की बात कर रहा है पुरु. कब दिया तूने मुझे बैग? मां ने पुरु से सवाल किया. अरे मां जिस दिन आसमान से मिठाइयां बरस रही थी उस दिन जो बैग दिया था. पुरु की बात सुनकर सब लोग हंसने लगे और कैसा पागल आदमी है कहते हुये वहां से चले गये.
(Folk Stories Uttarakhand Ivan Minayev)

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