इस बात में शायद ही दो राय हो कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में अर्थव्यवस्था की रीढ़ यहां की महिलायें रही हैं. पहाड़ में उनके जीवन के कष्ट भी किसी से छुपे नहीं हैं. इन कष्टों को बढ़ाया है शराब के प्रचलन. (Folk songs against liquor in Uttarakhand)
पिछले कुछ सालों में पहाड़ का शायद ही कोई ऐसा गांव बचा होगा जहां शराब के अतिसेवन से किसी की मौत न हुई हो. शराबी पति हो या शराबी बेटा हो इसकी मार महिला को ही सहनी पड़ती है कभी पत्नी के रूप में तो कभी माँ के रूप में.
राज्य आन्दोलन के दौरान शराब बंदी की मांग इसका एक मुख्य हिस्सा था. महिलाओं के नेतृत्व में राज्य में ‘नशा नहीं रोजगार दो’ जैसे बड़े आन्दोलन हुये हैं. इसके विपरीत सरकार ने पिछले 19 सालों में हर साल शराब से अपनी आमदनी को केवल बढ़ाया है.
लोकगीतों में समाज के सभी पक्षों को शामिल किया जाता है. लोकगीतों में समाज की जीवित झांकी होती है. एक लोकगीत पढ़िये और समझिये की शराब और शराबियों से हमारे समाज की बेटियां किस तरह आतंकित रहती हैं.
झन दिया बौज्यू शराबी घर,
शराबी देखि लागछि डर.
सभ्य समाज, सभ्य हो घर,
दहेज वाला तुम झन चाया,
उनर घर भूतौ की माया,
गरीब छूं छ संतोष ठुल,
झन दिया बौज्यू शराबी घर.
इस गीत में एक बेटी अपने पिता से अनुरोध कर रही है कि उसका विवाह किसी शराबी से न करे, उसे शराबी को देखकर डर लगता है. उसका विवाह दहेज की इच्छा वाले किसी परिवार में भी न करें, उनके घर में भूतों की माया होती है. गरीब से विवाह करने पर भी वह संतुष्ट रहेगी लेकिन उसकी शादी किसी शराबी से मत करना. (Folk songs against liquor in Uttarakhand)
काफल ट्री डेस्क
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