विविध

कद्दू के टुकों का साग

यूं तो पहाड़ हर मौसम में अलग तरह की खूबसूरती ओढ़ लिया करते हैं. लेकिन बरसात का मौसम पहाड़ों के हुस्न में जादुई निखार ले आता है. हरियाली बाना ओढ़े पहाड़ दौड़ते-भागते कोहरे के दुपट्टे की ओट में लुकाछिपी खेलते दिखते हैं. सदाबहार गाड़-गधेरे छलछला उठते हैं तो कई मौसमी जलधाराएं भी हरी चादर में सफेद लकीरें डालकर वादी को और ज्यादा दिलकश बना देती हैं. बरसात का मौसम वादियों ही नहीं पहाड़ी चौके की रसोई में परसी जाने वाली थाली को भी रंगीन बना देता है. (Flavorful Dishes from Pahari Kitchen)

साल के ज्यादातर महीने पहाड़ हरी साग-सब्जियों के अभाव से जूझता रहता है, लम्बे सफर में खराब हो जाने के डर से मैदानी मंडियों की सब्जियां पहाड़ चढ़ने से घबराती जो हैं. सो, बरसात का मौसम पहाड़ के लिए सब्जियों की बहार का भी मौसम होता है. इन दिनों सीढ़ीदार खेतों और घर-आँगन में तोरी, लौकी, कद्दू, बैंगन, करेला, रामकरेला, सेम, शिमला मिर्च, अरबी, हरी मिर्च, टमाटर, पहाड़ी मूली, खीरे आदि सब्जियों की बहार हुआ करती है.   

आजकल जंगलों में भी लिंगुड, कथ्यूड़ और कई तरह के मशरूम उग आते हैं, जिनसे जायकेदार सब्जियां बनाने में पहाड़ी माहिर उस्ताद हैं. इन्हीं दिनों बरसाती झड़ों से थोड़ा धूप चुराकर सब्जियों-बीजों को अभाव के दिनों के लिए सुखाकर भी रख लिया जाता है. 

इन दिनों पहाड़ी रसोइयों में जंगली घास-पात के अलावा खेतों में उगने वाली तरकारियों में मामूली मसालों की छौंक से स्वादिष्ट सब्जियां बनायी जाती हैं. पाथर वाली छतों के नीचे सुलगती प्रयोगशालाओं में रस्यार सब्जियों के अद्भुत संयोजन से स्वाद और सुगंध पैदा करते हैं.

बरसात में कद्दू की बेलों से थोड़ा बुलंदी मांगकर एक गजब का साग बनाया जाता है — कद्दू के टुकों का साग या टपक्या.

इसके लिए कद्दू की बेलों के बढ़ते सिरों के कमसिन पत्तियों वाले हिस्से को तोड़ लिया जाता है. मुलायम पत्तियों और पीले फूलों से सजे नाजुक तनों पर चढ़ी झिल्लियों को ठीक उसी तरह उतार लिया जाता है जैसे हम बीन्स की त्वचा से उतारते हैं. बारीक काटने के बाद ये पकने के लिए तैयार होती हैं. लिंगुड़ा: बरसात के मौसम की स्वादिष्ट पहाड़ी सब्जी

साग में स्वाद उतार लाने की पहली शर्त है लोहे की कड़ाही. सबसे पहले लोहे की कड़ाही में सरसों का तेल गर्म किया जाता है. खौलते तेल में साबुत लाल मिर्चों को गाढ़ा-भूरा होने तक तलने के बाद निकाल लिया जाता है. इस प्रक्रिया में थोड़ा भी गड़बड़ हुई तो मिर्च की खौसैन आपका सांस लेना दूभर कर सकती है.

मिर्च उतारकर इसी तेल में जख्या के दाने चटखाए जाते हैं. अब बारीक कटी प्याज भूनने के बाद आलू या मूली के कत्ले नमक, हल्दी और पिसे हुए धनिये के साथ थोड़ा देर सेंकने के बाद टुकों को भी कड़ाही के हवाले कर दिया जाता है. आप चाहें तो शुरुआत में तली गयी मिर्चों में से कुछ को तोड़कर या पिसी लाल मिर्च भी इसमें डाल सकते हैं.

ढक्कन लगाकर पकने के लिए छोड़ने के दौरान इसे बीच-बीच में चला लेना जरूरी है ताकि साग तले से चिपककर जले नहीं. मात्र 15 मिनट में कद्दू के टुकों का जायकेदार साग या टपकिया खाने के लिए तैयार है. पकने के बाद इसकी मात्रा भले ही एक चौथाई रह गयी हो लेकिन स्वाद कई गुना बढ़ गया है. (Flavorful Dishes from Pahari Kitchen)

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online      

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago