उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में फतवे पर रोक लगाते हुए बलात्कार पीड़िता के परिवार को उनके गांव से निकालने को गैरकानूनी करार दिया है. फतवों को असंवैधानिक करार देते हुए अदालत ने कहा कि उत्तराखंड में सभी धार्मिक संगठनों, पंचायतों और अन्य समूहों को फतवे जारी करने की अनुमति नहीं है क्योंकि यह संवैधानिक अधिकारों, मौलिक अधिकारों, गरिमा, दर्जा, सम्मान और व्यक्तियों के दायित्वों का उल्लंघन करता है.
लक्सर में पंचायत के एक बालात्कार पीड़िता के परिवार को गांव से निकालने के संबंध में फतवा जारी करने के मामले में दायर जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायामूर्ति शरद कुमार शर्मा की एक खंडपीठ ने कहा कि फतवा कानून की भावना के खिलाफ है. अदालत ने कहा कि बलात्कार पीड़िता से सहानुभूति जताने के बजाय पंचायत ने परिवार को गांव से बाहर निकालने का आदेश दिया. यह अमानवीय कृत्य है.
पंचायतों का भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 के अंतर्गत अधिकारों का उल्लेख है, लेकिन फ़तवा जारी करने के अधिकार पर अदालत ने कहा “पंचायतों को केवल कानून के तहत स्थापित कर्तव्यों और कार्यों को निर्वहन करने की आवश्यकता है. फतवा जारी करना उनके वैधानिक कर्तव्यों और कार्यों का हिस्सा नहीं है. फतवा पीड़ितों को अत्यधिक पीड़ा और विनाश का कारण बनता है, भले ही इसे स्थानीय पंचायत जैसे ‘खाप पंचायत’ द्वारा जारी किया गया हो”.
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