फल्दाकोट मध्यकाल में कुमाऊँ का एक सशक्त पहाड़ी राज्य था. फल्दाकोट राज्य के अंतर्गत पाली पछाऊं का कोसी, स्याहीदेवी, ताड़ीखेत व सल्ट का ज्यादातर हिस्सा आता था. फल्दाकोट पर कत्यूरियों की ही एक शाखा के खाती क्षत्रियों का वर्चस्व हुआ करता था.
फल्दाकोट का किला बहुत बड़ा व मजबूत हुआ करता था. साहसी व बलिष्ट खाती लड़कों के संरक्षण में इसे अजेय समझा जाता था. इनकी वीरता के बारे में कहा जाता था ‘माल को हाथी, पर्वत को खाती.’
कुमाऊँ के सभी छोटे-बड़े सामंती शासकों को जीतकर काली कुमाऊँ से लेकर कोसी तक पर एकाधिकार प्राप्त कर लेने के बाद चन्द शासक फल्दाकोट को भी अपने एकाधिकार में लेने की कोशिशें करने लगे. खाती वीरों के पराक्रम के आगे उनका कोई वश न चला. इसी वजह से पंद्रहवीं शताब्दी के फल्दाकोट अपनी अपराजेय स्वतंत्र बनाये रख सका.
लखनपुर पाली जैसे कत्यूरी शासकों को जीतने का अभिमान करने वाले विस्तारवादी चंद शासकों, कीर्तिचंद (किरातीचंद) की आँखों में फल्दाकोट की स्वतंत्रता लगातार खटकती रही. कीर्तिचंद का शासनकाल 1488 से 1503 ई. तक रहा था.
कीर्तिचंद ने कैड़ारो व बोरारो में कत्लेआम मचाकर अपने बर्बर व निर्मम सैनिकों की वजह से पाली परगने पर अधिकार कर लिया. इसके बाद उसने इन्हीं बर्बर सैनिकों को फल्दाकोट में आक्रमण करने के लिए भेज दिया. उनकी बर्बरता और कत्लेआम से अपनी प्रजा को बचने की गरज से तत्कालीन खाती शासकों ने इस आक्रमण का प्रतिरोध नहीं किया. इसके बाद फल्दाकोट का राज्य भी चंद शासकों के नियंत्रण में आ गया. मारे जाने से आशंकित लोग गढ़वाल की तरफ पलायन करने लगे. किरातीचंद ने अपने सरदारों व रौतेलों को सयाणा व कमीण के पदों पर नियुक्त कर फल्दाकोट को जागीर के रूप में बाँट दिया.
फल्दाकोट परगना पहले पांच पट्टियों में बंटा हुआ था. इनके नाम थे —कंडारखुवा, धूराफाट, चौंगों, मल्ली डोटी और कोश्यां. 1840 में प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से अल्मोड़ा के दक्षिण-पश्चिमी भागों को अलग करके नैनीताल जनपद का गठन किया गया. इसी समय फल्दाकोट के कोश्यां (मल्ला-तल्ला) पट्टियों को अलग करके नैनीताल के एक परगने धनियाकोट का हिस्सा बना दिया गया.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी.डी. शर्मा के आधार पर)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
View Comments
1725297243 यह नम्बर आपिये का चंडीगढ़ का आफिसियल नम्बर है । इससे यह उत्तराखंड में लोगों को यह कह कर भ्रमित कर रहा है कि वह देहरादून से एक पूर्व फौजी बोल रहा है और मुसीबत में है इसलिए आने वाले चुनाव में "आप" पार्टी को बोट दें । ऐसा फर्जीवाड़े करने वालों से सावधान रहें ।