पूर्व भारतीय क्रिकेटर और ओपनिंग बल्लेबाज वी. बी. चंद्रशेखर ने कल चेन्नई के मायलापुर इलाके में अपने घर में आत्महत्या कर ली. उनकी देह दूसरी मंजिल पर स्थित उनके बेडरूम की छत पर पंखे से लटकी पाई गयी. वे 57 वर्ष के थे. (Ex Indian Opening Cricketer Suicide)
भारत की ओर से सात वन डे खेल चुके वी. बी. चंद्रशेखर आक्रामक बैटिंग शैली के लिए जाने जाते थे. उन्होंने विशाखापत्तनम में 10 दिसंबर 1988 को न्यूजीलैंड के विरुद्ध अपने वन डे करियर का आगाज किया था. वर्ष 1987 में रणजी ट्राफी जीतने वाली तमिलनाडु की टीम के भी वे सदस्य रहे थे. उन्होंने गोवा की तरफ से भी क्रिकेट खेला. उसके बाद वे राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे. अपने राज्य की टीम को उन्होंने कोचिंग भी दी और कभी-कभार कमेंट्री में भी हाथ आजमाया. (Ex Indian Opening Cricketer Suicide)
साल 1988 में ईरानी ट्राफी में रेस्ट ऑफ़ इण्डिया के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने 56 गेंदों पर सेंचुरी मार कर सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा था. उस ज़माने में ऐसा कर सकना अकल्पनीय समझा जाता था. उनका यह रिकार्ड 2016 में ऋषभ पन्त ने तोड़ा. उनकी उस पारी को याद करते हुए उनके बैटिंग पार्टनर रहे कृष्णमाचारी श्रीकांत ने एक अखबार से बातचीत कहा – “मैं पिच के दूसरे छोर पर था और जिस तरह उन्होंने संजीव शर्मा और नरेंद्र हिरवानी की धुनाई की उसे मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा.”
उस दौर में आक्रामक बल्लेबाजी बहुत कम देखने को मिलती थी. संदीप पाटिल और कपिल देव को इस मामले में याद किया जा सकता है लेकिन मद्रास के चेपॉक स्टेडियम में क्रिकेट देखने वालों को श्रीकांत और चंद्रशेखर की जोड़ी ने अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से सालों तक आनंदित किया.
वी. बी. चंद्रशेखर तमिलनाडु प्रीमियर लीग की एक टीम – वीबी काँची वीरंस – के स्वामी थे और वेलाचेरी में एक क्रिकेट अकादेमी भी चलाते थे.
उनकी पत्नी के अनुसार क्रिकेट के अपने धंधे में हुए हालिया नुकसान से वे मानसिक रूप से बहुत परेशान थे. पुलिस की जांच जारी है.
इस दुखद तरीके से अपने जीवन का अंत कर लेने वाले आक्रामक वी बी चंद्रशेखर को हमारी श्रद्धान्जलि.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…