पहाड़ में जीवन जीने का पर्याय है हाड़-तोड़ मेहनत. हाड़-तोड़ मेहनत पहाड़ के लोगों का आभूषण है जिसे यहां के लोक और परम्पराओं में बड़े सहज रूप से देखा जा सकता है. पहाड़ के रहवासियों के जीवन में यह हाड़-तोड़ मेहनत इतनी सहजता से घुली-मिली है कि दूर से देखने पर लगता है उनके लिये यह उनके लिये एक खेल है. (Dutiya Photos of Someshwar Valley)
बीते दिन पहाड़ में दूतिया त्यार मनाया गया. इस दिन कुमाऊं में च्यूड़े सिर में चढ़ाए जाते हैं. सवेरे पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे सयानी महिला च्यूड़ों को सबसे पहले द्याप्तों को चढ़ाती हैं और उसके बाद परिवार के हर सदस्य के सिर में. (Dutiya Photos of Someshwar Valley)
च्यूड़ा बनाने के लिये कच्चे धान को पहले तीन-चार दिन पानी में भिगो कर रखते हैं. फिर इसे भूनते हैं और साथ में ही इसे कूटते हैं. जब दो औरतें बारी-बारी से एक साथ ओखल में धान कूटती हैं तो इसे दोरसारी कहते हैं.
अब इस बेहद सामान्य सी लगने वाली प्रक्रिया में कितना श्रम लगता है उसे केवल वही जान सकता है जो पहाड़ में रहता है. वर्तमान में पहाड़ में इस श्रम का पूरा बोझ महिलाओं ने उठाया है. पहाड़ों में रहने वाली महिलायें ही हैं जिनने आज पहाड़ को जिन्दा रखा है.
सोमेश्वर घाटी विश्व की सबसे सुंदर घाटियों में से एक है. इसी घाटी में एक गांव है लखनाड़ी. आज देखिये सोमेश्वर घाटी के बेहद उपजाऊ मल्ली लखनाड़ी गांव में इस बरस दूतिया के च्यूड़े कूटती महिलाओं की तस्वीरें. उल्लेखनीय है कि इस गाँव का नाम लखनाड़ी इसलिए पड़ा माना जाता है कि यहाँ की उर्वर भूमि में एक फसल में एक लाख नाली (वजन नापने की इकाई) अनाज उगा करता था.
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सभी तस्वीरें अल्मोड़ा में रहने वाले हमारे साथी नन्दन सिंह रावत ने ली हैं. ट्रेकिंग, फोटोग्राफी और खेलों में विशेष दिलचस्पी रखने वाले नंदन सिंह रावत वर्तमान में उत्तराखंड सरकार के बिजली महकमे से सम्बद्ध हैं.
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