Featured

इंजीनियरिंग करने से बेहतर हो गया है घास छीलना

आज एम. विश्वेश्वरैया का जन्मदिन है. भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस (इंजीनियरिंग डे ) के रूप में मनाया जाता है. एम. विश्वेश्वरैया का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या था. वह एक ख्याति प्राप्त इंजीनियर और राजनेता थे. भारत के निर्माण में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1955 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया था. जनता की सेवा के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर’ (KCIE) से सम्मानित किया. एम. विश्वेश्वरैया हैदराबाद शहर की बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के मुख्य डिज़ाइनर थे और मुख्य अभियंता के तौर पर मैसूर के कृष्ण सागर बाँध के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई थी. – संपादक

 

एक ज़माना हुआ करता था जब इंजीनियरिंग हर बारहवीं पास बच्चे का सपना हुआ करता था. इंजीनियरिंग करने का मतलब था नौकरी लगना. इंजीनियरिंग में दाखिला पाते ही आप अपने स्कूल मोहल्ले के हीरो बन जाते थे. कुल मिलाकर इंजीनियरिंग में दाखिला आपको समाज के एक एलीट वर्ग में पहुंचा देता था. वर्तमान में भी इंजीनियरिंग आपको समाज के एक नये वर्ग में दाखिला दिला देती है जिसे बेरोजगार युवा कहते हैं.

एक पूरे समाज का सपना अचानक इस कचरे में कैसे शामिल हो गया अपने आप में एक शोध का विषय है. भारत में शिक्षा हमेशा रोजगार की बाधक रही है. आप जितना शिक्षित होते जाते हैं आपके लिये रोजगार के अवसर उतने कम हो जाते हैं. आप अनपढ़ हैं तो आपके लिये इस देश में सभी रोजगार खुले हैं – आप अपने शहर या गांव में एक दिहाड़ी मजदूर से लेकर देश का राष्ट्रपति तक बन सकते हैं. यदि आप हाईस्कूल पास हैं तो अपने शहर या गांव में दिहाड़ी मजदूरी का विकल्प छोड़ देते हैं. राष्ट्रपति का रास्ता अभी भी खुला है. यदि आप बारहवीं पास हैं तो दूसरे शहर में भी मजदूरी के स्थान पर आप नियमित फिक्स पगार वाली मजदूरी ढूंढते हैं. ग्रेजुएट होने के बाद आपके ये सभी विकल्प समाप्त हो जाते हैं. अब आप केवल कलम रगड़ने वाली 9 से 5 वाली नौकरी के ही काबिल रह जाते हैं. शिक्षा न्यूनतम के विकल्प को समाप्त करती जाती है लेकिन नये विकल्प नहीं देती. आपकी शिक्षा जितनी मंहगी होगी आपके पास रोजगार के उतने ही कम विकल्प होंगे.

इंजीनियरिंग की चार साल की पढ़ाई में एक साल की केवल ट्यूशन फीस ही साठ हजार है. आंकड़ों के अनुसार 80 फीसदी इंजीनियरिंग के छात्र बेरोजगार रहते हैं यानी चार साल और इतना रुपया लगाने के बाद रोजगार के नाम पर ठेंगा. इंजीनयरिंग का ब्रांड माने जाने वाले आईआईटी तक का हाल यह है कि 2016-17 में केवल आईआईटी पास आउट में से 66 फीसदी को ही रोजगार मिला. पिछले वर्षों में यह आंकडा 100 फीसदी तक रहता था जो 2014-15 में 78 और 2015-16 में 79 रहा था. रोजगार न दे पाने की शक्ल में पिछले पांच सालों में 800 संस्थान बंद किये जा चुके हैं. बंद होने वाले इन संस्थानों ने स्वयं बंद होने की अनुशंसा मांगी थी.

तकनीकी शिक्षा की नियामक संस्था ऑल इंडिया कौंसिल फॉर टैक्निकल एजुकेशन (ए.आई.सी.टी.ई) ने तय किया था कि जिन इंजीनियरिंग कॉलेजों में कुल सीटों के मुकाबले तीस फीसदी सीटों में भी दाखिला नहीं हो पाता उन्हें बंद कर दिया जायेगा. 2017-18 के दौरान भारत की कुल 37 लाख इंजीनियरिंग सीटों में से 27 लाख सीट खाली रहीं.

इंजीनियरिंग के प्रति इस गिरते रुझान का कारण रोजगार उपलब्ध न हो पाना माना जा रहा है. कॉलेज बाजार में मांग के अनुरुप शिक्षा उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं. कॉलेज का पाठयक्रम नियमित तौर पर न तो अपडेट होता है न बाजार के अनुरुप कुशल शिक्षा (स्किल एज्यूकेशन) उपलब्ध करा पाता है. इनोवेशन के नाम पर कॉलेजों में बालीवुड के नायक-गायक नाच रहे हैं और रिसर्च के नाम पर बाबाआदम के दौर के विषयों पर व्याख्यान दिलाये जा रहे हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में भारत की एक महत्वपूर्ण अलबत्ता कमजोर कड़ी शिक्षक हैं. भारत में ज्यादातर लोग पढ़ाने का काम मजबूरी में करते हैं. माना जाता है कि जो अपने क्षेत्र में कुछ नहीं कर पाता वह अपने क्षेत्र का शिक्षक बन जाता है. तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में यह अभाव हर जगह देखा जा सकता है. हालांकि ए.आई.सी.टी.ई इंजीनियरिंग में गिरते छात्रो की संख्या का कारण बड़े हुए कालेजों की तादाद को भी मानता है.

-गिरीश लोहनी

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

View Comments

  • कामों को छोटा-बड़ा मानने की प्रवृत्ति और एलिटपने के भ्रम में जीता भारतीय मध्यवर्ग..भागना सुख के पीछे चाहिए जो अपने मन का काम करने में भरपूर मिलता है..

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago