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डिलीवरी फर्श पर, मौत सरकारी संवेदना की हुई

देहरादून में संवेदनहीनता का एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे हम अक्सर दूर-दराज गांवों में अक्सर सुना करते हैं. यह मामला राजधानी में होने से सुर्खियों में आ गया है. सरकारी अस्पताल में गर्भवती की डिलीवरी फर्श पर ही हो गई और जच्चा-बच्चा दोनों नहीं रहे. यह मौत केवल राज्य की एक महिला और उसके बच्चे की नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की संवेदना की भी मौत है.

मौत से आक्रोशित परिजनों ने शोर मचाया. चीखे-चिल्लाए. लेकिन कौन सुनता, क्योंकि तंत्र की संवेदना पहले ही मर चुकी है. उसके लिए यह कोई नया और पहला मामला भी नहीं है. स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर कराह रहा उत्तराखंड में इसी तरह की चीखें चारों तरफ से सुनाई पड़ रही हैं. इसके बावजूद कोई सुनने और देखने वाला नहीं है.

गर्भवती महिला सुचि (27 वर्ष) पत्नी रमेश निवासी चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) को 15 सितंबर को अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल में बेड न होने पर उसे फर्श पर ही लेटाया गया था। वह भी फर्श पर लेटने को मजबूर थी. इतना पैसा नहीं था कि महंगे अस्पतालों में बेहतर इलाज कराने को जाते.

20 सितंबर की सुबह चार बजे प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत हो गई। गुस्साए परिजनों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए सीएमएस का घेराव किया। सीएमएस ने डॉक्टर पर कार्रवाई की बात की, तब जाकर परिजन शांत हुए। कार्रवाइ्र्र क्या होगी. जांचों का क्या हश्र होता है. इसे सभी जानते हैं. परिजनों को भी मानना था. इससे ज्यादा कर भी क्या सकते. कुछ और ज्यादा दबाव बनाने की कोशिश करते तो सत्ता बल के आगे उनका बल बौना कर दिया जाता.

जानते हैं आप देहरादून के इस अस्पताल में 111 बेड स्वीकृत थे. पर व्यवस्था के तहत अस्पताल में 113 बेड किसी तरह लगाए गए हैं. लेकिन मरीजों के अत्याधिक दबाव के कारण इससे कई अधिक मरीज भर्ती किये जा रहे हैं. यह स्थिति केवल देहरादून के एक सरकारी अस्पताल की नहीं, बल्कि राज्य के जितने भी बड़े शहर में, उनका भी यही हाल है.

राज्य के दूसरे बड़े शहर हल्द्वानी का महिला अस्पताल, जो 40 साल पुराना है. तब केवल 30 बेड स्वीकृति थे, आज भी यही स्थिति है. जबकि यहां पर मरीज 55 से अधिक भर्ती रहते हैं. इतने मरीज कैसे रहते होंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं. एक बेड पर दो-दो मरीज भर्ती रहते हैं. ये बदहाली बार-बार मीडिया की सुर्खियां रहती हैं. इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता. जबकि यहाँ पर नया भवन बन कर तैयार है फिर भी इसे चालू नहीं किया जा रहा है.

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