Featured

कुमाऊँ-गढ़वाल में बाघ के बच्चे को मारने का दो रुपये ईनाम देती थी क्रूर अंग्रेज सरकार

आज जब कि सारी दुनिया में वन्यजीवों को बचाने के लिए आन्दोलन चलाये जा रहे हैं और सरकारें ‘बाघ बचाओ’ जैसे प्रोजेक्ट्स पर अरबों रुपये खर्च कर रही हैं, भारत में ब्रिटिश राज के दौरान एक समय ऐसा भी था जब वन्यजीवों को मारने पर बाकायदा इनाम तक दिया जाता था. (Cruel Hunting Rules British India)

1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ के अंत में तमाम सूचियाँ और सरकारी नियमावलियां दी गयी हैं जिनसे वन्यजीवों के प्रति अंग्रेज सरकार का क्रूर व्यवहार समझ में आता है. (Cruel Hunting Rules British India)

नैनीताल जिले में शिकार करने और वन्यजीवों की हत्या करने संबंधी अनेक नियम थे. आइये जानते हैं उनके बारे में.

वन्यजीवों का नाश करने पर दिए जाना वाला इनाम
“संयुक्त प्रांत (अविभाजित उत्तर प्रदेश) में किसी भी लिंग के वन्यजीव के नाश के लिए निम्नलिखित इनाम दिया जाना तय है –

1. बाघ रु. 10
2. बाघ का शावक रु. 02
3. भेड़िया रु. 10
4. भेड़िये का बच्चा रु. 02
5. जंगली कुत्ता रु. 10
6. जंगली कुत्ते का बच्चा रु. 02
7. हाईना रु. 02
8. हाईना का बच्चा 08 आना

बाघों को मारने के लिए साधारण इनाम दिए जाने बंद कर दिए गए हैं. इसके बदले में मंडलों के कमिश्नर रु. 100 तक का ईनाम उन बाघों को मारने के लिए देने के अधिकारी हैं जो मनुष्य या पशुओं के जीवन के लिए ख़तरा बन गए हों. कुमाऊँ मंडल (जिला नैनीताल, अल्मोड़ा और गढ़वाल) में हरेक मारे गए भालू के लिए रु. 02 का इनाम है जबकि भालू के बच्चे को मारने पर यह राशि आठ आना होगी. इनाम के लिए आवेदन पत्र सम्बंधित जिले के डिप्टी कमिश्नर के पास भेजे जा सकते हैं.”

ऐसा नहीं है कि इस इनाम के लिए कोई भी सामान्य व्यक्ति अधिकारी हो सकता था क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने शिकार करने के लिए भी बड़े हास्यास्पद नियम बनाए थे. ज़रा गौर कीजिये.

शिकार के नियम (संरक्षित वनों में)

1. बिना डिप्टी कमिश्नर की लिखी इजाजत के कोई भी व्यक्ति फंदे या जाल नहीं बिछाएगा.
2. (i) हिमपात के दिनों में कोई भी व्यक्ति शिकार नहीं कर सकता और जंगल में प्रवेश करना भी निषिद्ध है. अपवादस्वरूप डिप्टी कमिश्नर या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा लाइसेंस प्राप्त कर ऐसा किया जा सकता है. कुछ लोगों को सरकार इस नियम में रियायत दे सकती है.
3. (ii) निम्नलिखित व्यक्तियों को इस नियम से छूट दी जाती है: सरकार के सभी गजेटेड अफसर, सेना के सभी कमीशंड अफसर, सभी यूरोपियन नॉन-कमीशंड अफसर और सभी खिताबधारी स्थानीय लोग.

जाहिर है ये नियम बेहद खोखले थे और अंग्रेजों और उनके चापलूस नवाबों, राजाओं और रायबहादुरों को वन्यजीवन को नष्ट करने की पूरी छूट देते थे.

ये क्रूर नियम नैनीताल, अल्मोड़ा और गढ़वाल के संरक्षित वनों के अलावा अलावा तराई-भाबर में भी लागू थे. हाँ, अपवाद के तौर पर भीमताल के कैलाश पर्वत के इलाके में शिकार पर पाबंदी थी क्योंकि उसे पवित्र माना जाता था.

सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब में इस तरह की अनेक जानकारियाँ हैं जो बताती हैं हमारे हिमालयी क्षेत्र के वन्यजीवन और प्रकृति का नाश करने में अंग्रेजों और उनके चापलूस भारतीयों का कितना बड़ा योगदान था. तो अगर आपकी पहचान का, अपने को खानदानी रईस या राजा-नवाबों की औलाद बताने वाला कोई परिचित या अपरिचित अपने घर के ड्राइंग रूम में सजे किसी भुस भरे बाघ का पुतला दिखा कर आपको अपने महाप्रतापी पुरखों की वीरता, अमीरी और रसूख की धौंस दिखाए तो उसे बताना मत भूलियेगा कि अंग्रेजों की चापलूसी करने के चक्कर में उनके पुरखों ने हमारे हिमालय को कितना बड़ा नुकसान पहुंचाया था.

तब काठगोदाम से नैनीताल जाने के लिए रेलवे बुक करता था तांगे और इक्के

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • Very valuable. History information. We can not make our present and future plans for betterment unless we have knowledge of our historical heritage and cultural history. Well done

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

4 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

4 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

4 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

1 month ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

1 month ago

अनास्था : एक कहानी ऐसी भी

भावनाएं हैं पर सामर्थ्य नहीं. भादों का मौसम आसमान आधा बादलों से घिरा है बादलों…

1 month ago