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शिकायत करो कि शिकायत करना धर्म है

शिकायत मनुष्य का मौलिक गुण धर्म है. वह जिसे किसी से शिकायत न हो उसके आदमी होने में संदेह की संभावना रहती है (Complaint Culture in Offices). अल्मोड़े में ऐसा न था. यहां शिकायतें उतनी ही विविध थीं, जितना कि यह नगर अपने आप में विविध है.

नाना प्रकार की शिकायतें, एकदम अनोखी शिकायतें, साहित्यिक, परिमार्जित, संश्लिष्ट शैली की शिकायतें, नितांत हल्की, साधारण कामचलाऊ हिंदी अंग्रेजी के मिश्रण वाली शिकायतें, कड़वी शिकायतें और मीठी शिकायतें भी. आपको ज्ञानार्जन कराने वाली शिकायतें तो दिमाग का दही बनाने वाली शिकायते. कुल मिलाकर शिकायतें, शिकायतें, शिकायतें. (Complaint Culture in Offices)

शिकायतों से जुदा कुछ भी नहीं शिकायतों से बड़ा कुछ भी नहीं लबालब शिकायतें बेसबब शिकायतें.

दफ्तर में पहले दिन से ही शिकायतें आने लगी. शिकायत करने में अल्मोड़ा की अपनी एक खास स्टाइल है कोई कह रहा था बल. एक सज्जन दफ्तर में प्रथम ही दिन आए और कहने लगे कि मैंने अमुक विषय में 7 दिन पहले शिकायत की थी उसका क्या हुआ. अकस्मात मुझे याद आया कि मैंने तो आज ही अपनी योगदान आख्या दी है तो इसका जिम्मेदार मैं कैसे हो सकता हूं. खैर समझा-बुझाकर उन सज्जन को वापस किया गया.

दो-चार दिन में जब आसपास के लोगों के माध्यम से उनके आसपास के लोगों को पता चला कि नया आदमी केवल लिखित शिकायत का संज्ञान लेता है तो लिखित शिकायत आने लगी. ज्यादातर शिकायतों के नाम पते फोन नंबर आपस में शिकायतकर्ता के सही होने की पुष्टि न करते तो उनका मौके पर ही निपटान करने की परंपरा विकसित की गई.

अधिकतर शिकायतों में पानी के नल या नौले धारे को सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल के रूप में मान्यता प्रदान करने का आग्रह होता था. साथ ही आक्षेप यह की भट्टी से शराब खरीदकर लोग नल पर पानी भर रही युवतियों, महिलाओं का निकलना बंद कर देते हैं, रास्ते में जाम की समस्या उत्पन्न हो जाती है इसलिए मदिरा दुकान अन्यत्र स्थापित की जाए. यदि ऐसा पांच सात दिन में नहीं किया गया तो जनता आंदोलन करने के लिए बाध्य होगी जिसकी समस्त जिम्मेदारी आबकारी विभाग की होगी.

कुछ शिकायतें मौलिक साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दे दी थी तो कुछ स्टेशन पर ठेली पर बिकने वाले उपन्यासों से चुराई गई शैली में होती थी. तो कुछ भावनात्मक रूप से हिला देने वाली जिसमे लिखती हूँ खत खूंन से स्याही ना समझना वाली शैली होती थी.

अमूमन शिकायतों के दो विषय होते थे एक ओवर रेटिंग दूसरा हद से ज्यादा ऑपरेटिंग. शिकायतों के समय के अध्ययन से यह स्पष्ट होता था कि शिकायतकर्ता को विक्रेता के साथ पूरी हमदर्दी है, उसे पता है कि विक्रेताओं को वेतन नहीं मिलता है पेट भी पालना पड़ता है. तो पंच दस रुपए तक तो ठीक है पर पचास रुपए ऊपर लेना कहां का न्याय है. शिकायतकर्ता को शिकायत के सामान्य विषय संख्या 1 से शिकायत ना होकर विषय संख्या 2 से शिकायत होती थी.

उपर्युक्त के क्रम में शिकायतकर्ता यह भी अवगत कराना ना भूलते कि ओवर रेटिंग में इस जातक की कितनी प्रतिशत हिस्सेदारी है. अपनी परिसंपत्तियों का काल्पनिक विस्तार देखकर कल्पनातीत प्रसन्नता होती रही.

अल्मोड़ा में लिखित व मौखिक शिकायतों के बीच का अनुपात 70 अनुपात तीस था. 70% शिकायतें मौखिक होती थी और 70 में भी 90% पीठ पीछे कोई कह रहा था बल की शैली में.

कभी-कभी कलेक्ट्रेट के डाक वाहक की गलती से गलत पटल की शिकायत जातक के कार्यालय में प्राप्त हो जाती थी.

इसका संज्ञान भी लिया जाता था तदोपरांत गहन अवलोकन कर निष्कर्ष पर पहुंचा जाता था कि अमुक शिकायत इस कार्यालय से संबंधित है ही नही. वह अमुक कार्यालय तो अपना कार्यालय है ही नहीं.

ओवर रेट से जुड़े प्रकरणों की शिकायतें सर्वाधिक प्राप्त होने वाली शिकायत थी. अक्सर इस प्रकार की मौखिक शिकायतें कल्पना से परिपूर्ण व्यास शैली में कही जाने वाली होती थी जिस का सारांश सिर्फ इतना होता था कि अमुक ठेके के अमुक सेल्समैन को ताकीद कर दी जाए कि अमुक व्यक्ति को अमुक ब्रांड का अमुक धारिता वाला बोतल, अध्धा,पव्वा अमुक मूल्य से ज्यादा न दिया जाए यदि ऐसा नहीं हुआ तो अमुक माननीय से कहने पर बाध्य होना पड़ेगा जिसके लिए अमुक व्यक्ति जिम्मेदार नहीं होगा.

आने वाली मौखिक अथवा लिखित शिकायतों में विविधता और रोचकता का भरपूर सामंजस्य देखने को मिलता.

एक दल विशेष के संस्थापक एक दिन अचानक कार्यालय में प्रकट हुए बिना कुछ पूछे कहे कुर्सी पर धम्म से बैठ गए और फरमाया.

“मैं अमुक दल का संस्थापक अध्यक्ष हूं”
“जी”
“मुझे शिकायत है”
“जी”
“मुझे शिकायत है सिस्टम से”
“जी”
“मुझे शिकायत है आपके सिस्टम से”
“जी”
“मैं आपकी शिकायत ऊपर करूंगा”
“जी”
“मैं आपकी शिकायत बहुत ऊपर करूंगा”
“जी”

कुल जमा 6 बार अपने उत्तर को जी से आगे न बड़ा पाने के कारण असमर्थता ने विस्फोट कर दिया.

“पर महोदय शिकायत किस बात की है”
“आपसे’
“मुझसे?”
“नहीं आपके सिस्टम से”
“मेरे सिस्टम से?”
“हां आप शराब की दुकान 3:00 बजे प्रातः खुलवा देते हैं. आपकी ओवर रेटिंग में हिस्सेदारी रहती है. आप अल्मोड़ा को लूटने आए हैं. मैं सब जानता हूं.”
“मान्यवर आप गलत सोच रहे हैं मैं आपकी शिकायत का संज्ञान लेता हूं पर आप के अन्य आरोप निराधार हैं”
“अजी मैं अच्छी तरीके से जानता हूं आपको. आप अगर 24 घंटे में इस पर कार्यवाही नहीं करेंगे तो मैं यही कचहरी में शराब के खिलाफ और आप के खिलाफ धरने पर बैठूंगा.”
“शराब विरोध का पुराना इतिहास है मेरा”

इससे पहले कि उपर्युक्त महोदय के अंतिम पैराग्राफ का जवाब में दे पाता कि वह आंधी की तरह आता हूं तूफान की तरह जाता हूं की तर्ज पर गायब हो गए. सुना कि फड़फड़ाते हुए सीधे जिलाधीश के कार्यालय में आंधी की तरह घुस गए.

उनकी इस परिवहन शैली पर दो-चार कुत्तों ने जरूर गौर फरमाया बाकी किसी ने नहीं. सब सामान्य चलता रहा.

फिर उसी रात दल विशेष के संस्थापक अध्यक्ष की कथित शिकायत पर सही वाली कार्यवाही हुई. दो चार लोग जो रात का हैंगओवर ओवर होने के कारण इधर-उधर बिखरे पड़े थे उनके अतिरिक्त कुछ ना मिला.

अल्मोड़े के पान और पान वाले

एक सप्ताह बाद संस्थापक दल विशेष महोदय कार्मिक के चेंबर में पुनः प्रकट हुए. अबकी बार अधोहस्ताक्षरी यानी कि मैं थोड़ा भयभीत हुआ. संस्थापक का पिछली बार की तरह हवा पानी टाइट करने के मूड में न थे. उसके मन का संभवतह काया अंतरण रूपांतरण तलछटीकरण तीनों प्रक्रियाएं एक साथ संपन्न हो गई थी. अब की बार शिकायत न थी बल्कि एक प्रस्ताव था

“कैसे हैं”
“ठीक हूं. आपकी शिकायत पर कार्यवाही समय से की जा चुकी है इसकी सूचना आपको पत्र के द्वारा प्रेषित कर दी गई थी”
“जी जानता हूं”
“आप से आज कुछ काम था”
“जी कहिए”
“दल की देहरादून में सालाना बैठक है”
“यह तो हर्ष की बात है”
“आपका सहयोग चाहिए था”
“जी कहिये”
“दल को 25 से 30000 की आर्थिक सहायता चाहिए”
“क्षमा करें मैं इन सब बातों में नहीं पड़ता”
“अरे मत पड़िए बस किसी से बोल दीजिए मेरा काम हो जाएगा”
“अब आप जा सकते है”
“कोई बात नहीं आपको एक हफ्ते में पता चल जाएगा कि मैं क्या चीज हूं”
“जी जरूर मैं प्रतीक्षा करूंगा”

सेकंड लास्ट सेन्टेंस को दांत पीसकर मुट्ठी बांधकर नथुने फड़का कर कुलभूषण खरबंदा स्टाइल में बोला गया था. पर यह फर्क डालने वाला नहीं था हां कुत्तों ने जरूर इस बार थोड़ा ज्यादा नोटिस किया दो चार कुत्ते उनके पीछे पीछे तक गए भी.

इस तरह के चरित्र की बानगी भी अल्मोड़े में देखने को मिलती हैं. शिकायतों का अपना एक चरित्र होता है और हर चरित्र की एक शिकायत होती है. यदि शिकायतकर्ता के चरित्र और शिकायत के बीच झोलझाल है तो इसका फायदा नौकरशाह उठा ले जाता है.

अल्मोड़ा में शिकायतों का निस्तारण जितना कठिन है उससे भी कहीं ज्यादा सरल है. शिकायतकर्ता अपने अहम को अफसर की तवज्जो से पोषित करना चाहता है. ऐसा मेरा मानना है और यह मेरा अनुभव भी रहा है. सच्ची शिकायतों को डिस्पोजल तुरंत मौके पर किया जाता था और किया जाता रहेगा. इसके गवाह शंभू राणा और ज्ञानेंद्र शुक्ला हैं.

अल्मोड़े का हरिया पेले

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विवेक सौनकिया युवा लेखक हैं, सरकारी नौकरी करते हैं और फिलहाल कुमाऊँ के बागेश्वर नगर में तैनात हैं. विवेक इसके पहले अल्मोड़ा में थे. अल्मोड़ा शहर और उसकी अल्मोड़िया चाल का ऐसा महात्म्य बताया गया है कि वहां जाने वाले हर दिल-दिमाग वाले इंसान पर उसकी रगड़ के निशान पड़ना लाजिमी है. विवेक पर पड़े ये निशान रगड़ से कुछ ज़्यादा गिने जाने चाहिए क्योंकि अल्मोड़ा में कुछ ही माह रहकर वे तकरीबन अल्मोड़िया हो गए हैं. वे अपने अल्मोड़ा-मेमोयर्स लिख रहे हैं

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