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पुट्टन चाचा और पाउट्स वाली चाची

पहली बार पहाड़ जाकर पुट्टन चाचा वापस आए तो सबसे पहले अपनी फेसबुक प्रोफाइल में खुद के बारे में लिखा- ‘अ ट्रैवलर- इन सर्च ऑफ लाइफ.’ प्रोफाइल फोटो में खाई किनारे खड़ी एक पहाड़ी सेल्फी लगाई और कवर पर वहीं कहीं गिरता गदेरा चिपकाया. पुट्टन चाचा के साथ ही लौटी चाची तो उनसे भी दो कदम आगे बढ़ गईं चाचा के ट्रैवलर के जवाब में उन्होंने वंडरर लिखा और फेसबुक के बजाय चालीस चूड़ियों और दो बुरांश के साथ उनके तीन-तीन पाउट्स टिंडर पर नमूदार हुए. मैंने चाची के पाउट्स देखे तो पहले तो उसे फेवरेट वाला लाइक किया और फिर तुरंत चाची को फोन मिलाकर बोला- ‘कम से कम सिंदूर तो मिटा लेतीं और ये टीटू पीछे से क्या कर रहा है? उसे भी पाउटिंग सिखा दी?’

मोहल्ले में चौथी गली की ही गुल्लू, जिसके पीछे मैं कभी साइकिल तो कभी लूना लेकर भागा करता था और जिसका फल उसे हर एग्जाम में पीछे बैठकर नकल कराने की वीरता दिखाने में मिलता था, पिछले हफ्ते जब मायके आई तो सीधा मुझसे टिंडर पर टकराई. देखता हूं कि पहली छोड़ दूसरी से लेकर पांचवीं तक सभी तस्वीरों में मेरे मजबूरी के जीजाजी भी वीरभोग्या वसुंधरा टाइप पोजिशन में खड़े हैं. आखिरी वाली फोटो में तो उनकी ठुड्डी गुल्लू के सिर पर थी. मुझे यकीन है कि उस फोटो में गुल्लू के पाउट्स पतिदेव के सिर पर चढ़े होने की मजबूरी में बने होंगे. मैं उसे बता नहीं पाया, ये अलग बात है. आखिर उससे प्रेम जो करता था. मगर दिल से दिल को राह होती है, इसलिए मुझे यकीन है कि पांचवीं फोटो वाला पाउट मेरे लिए ही रहा होगा. वरना पांच साल की शादी के बाद वो टिंडर पर क्या कर रही है?

डेटिंग ऐप्स की तीसरी घटना थोड़ी फिल्मी लग सकती है, पर है सच्ची. रात साउथ इंडियन फिल्मों से बोर होकर जैसे ही ऐप ऑन किया, पहली ही फोटो में पीलू के पाउट्स झांक रहे थे. पीलू और मैंने कई साल पहले लंबे समय तक डेटिंग की थी. इस दौरान लगभग हर आधी रात में हम इंडिया गेट पहुंचकर अपने प्रेम को तब तक सलामी देते थे, जब तक कोई पुलिस वाला हमें डंडा लेकर दौड़ा न ले. क्रांतिकारी कारणों के चलते हमारी डेटिंग फिर से ‘अलोन एंड वेटिंग’ में बदल गई. रात जैसे ही उसे देखा, चाहे-अनचाहे मेरी हंसी निकल गई कि ‘अच्छा बेटा, तुम भी यहां?’ या शायद- ‘अच्छा बेटा, मेरे बाद कोई नहीं मिला ना?’ या शायद दोनों ही. फिर जैसे ही देखा कि पीलू ने भी मुझे देखा, मेरी हंसी की हवा निकल गई. हंस तो वह भी रही होगी? नहीं?

नवभारत टाइम्स से साभार

 

दिल्ली में रहने वाले राहुल पाण्डेय का विट और सहज हास्यबोध से भरा विचारोत्तेजक लेखन सोशल मीडिया पर हलचल पैदा करता रहा है. नवभारत टाइम्स के लिए कार्य करते हैं. राहुल काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.

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Girish Lohani

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