महीना असोज के लगते ही हिमालय के तलहटी में बसे गाँवों में घास की कटाई प्रारम्भ हो जाती है जो कार्तिक माह के आते आते खत्म होने लगती है. कृषि व पशुपालन पहाड़ की मुख्य जीवन की धारा, हिस्सा, आदत व व्यवहार है. (Column by Prayag Singh Rawat)
शरद में मवेशियों के चारे के लिये हरी घास को काटकर सुखाकर लुटे लगाये जाते है जो ह्यूनाल-शरद के दिनों से अगले 5 माह चौमास तक काम आते रहता है. घास की किस्मों में मध्य हिमालय में पायी जाने वाली घास— गाज्यो, प्यून्सी, रोतनगोल, सालम आदि हैं.
उच्च हिमालय में पौष्टिकता से भरपूर घास— फिजी, लव-कुश, बुगी (जिसके नाम से मखमली घासों के मैदान को बुग्याल अल्पाइन कहते हैं) आदि.
असोज में अधिकतर मध्य हिमालय व नगरी नदी किनारे बसे गांवों में पशुपालक लोग ठण्ड दिनों के लिए एकत्र करके रखते है. जिसमें गाज्यो, सालम, बाबिल, प्यून्सी, रोतनगोल के साथ कार्तिक महीने व अन्य फसलों की पराली भी मवेशियों के भोजन चारे के रूप में सुखाकर लुटे लगाकर ठण्ड चारे के रूप में साल भर दिया जाता है.
पौष्टिकता व सहूलियत के हिसाब से दुधारू मवेशियों को गाज्यो, प्यून्सी व मडुआ की पराली दी जाती है, जबकि नर मवेशियों को सालिम, रोतङ्गल, गेंहु-धान की पराली से गुजारा करना पड़ता है.
ग्रामीण जीवन में आपस में एक साझेदारी होती है जो शहरों में कम ही देखने को मिलती है. हमने अपने बचपन के दिनों में देखा ग्रामीण महिलाओं को पहले ग्राम पंचायत के सुदूर जंगलों घास काटकर लाते. तेजो गांवों से लगभग 10/15 किलोमीटर हमारे गाँव जलथ की महिला-पुरुष घास काटने के लिए हमारे गाँव के सरहद घास के मांग डानापनी, बुल्फिधार, लड़ी, ब्वॉटगारी, जिमिघाट, मेनसिंह टाप आदि जगह से मवेशियों व घर के छत, जो तब सलीम घास के होते थे, ठंड के दिनों बर्फबारी व चौमास के बरसात से अपने आप परिवार व मवेशियों को सुरक्षित रखने को लाया जाता था जो आपस में गाँव के महिला पुरूषों के सामूहिक कार्य व बिना सहयोगी भावनाओ के नही हो सकता है. असम्भव जैसा है.
इसे भी पढ़ें : ‘मुनस्यारी हाउस’ इस तरह पहाड़ी उत्पादों का सबसे विश्वसनीय ब्रांड बना
गाँव के नजदीक फैले घास की मांग भी आपस में बारी-बारी साझेदारी कर, जिसे पहाड़ी भाषा में (ओल्ट-पोल्ट) कहते है, यही परम्परा चली आ रही है.
जोहार घाटी में मिलम के करीबी गांव जलथ के रहने वाले प्रयाग सिंह रावत वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार में सेवारत हैं. हिमालय और प्रकृति के प्रेमी प्रयाग उत्तराखण्ड के उत्पादों और पर्यटन को बढ़ावा देने के कई उपक्रमों के सहयोगी हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…