बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदिया, ये रैना
और? और तुम... - २
ओ माझी रे, जइयो पिया के देस
हम तुम कितने पास हैं कितने दूर हैं चाँद सितारे
सच पूछो तो मन को झूठे लगते हैं ये सारे - २
मगर सच्चे लगते हैं, ये धरती, ये नदिया, ये रैना,
और तुम
बड़े अच्छे...
तुम इन सबको छोड़के कैसे कल सुबह जाओगी
मेरे साथ इन्हें भी तो तुम याद बहुत आओगी - २
बड़े अच्छे...
वायलिन की धुन और नदी- तट पर फूली-फैली काँस. दृश्य में एक टीनएजर जोड़ा. जहाँ तक याद पड़ता है, काँस फूलने का सबसे खूबसूरत चित्रण तुलसीकृत रामचरितमानस में हुआ है. जब सुग्रीव राजपाट पाकर अपना दिया हुआ वचन भूल सा जाता है, रामचंद्र जी, जानकी की खोज को लेकर बड़े आतुर से दिखते हैं-
फूले काँस सकल मही छाई.
जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई..
काँस फूलना मानसून विदाई का संकेत माना जाता है. एक मान्यता के अनुसार, अगर काँस फूलती दिखाई दे, तो मानो अब शरद ऋतु आने ही वाली है.
काँस फूलने का दूसरा खूबसूरत दृश्य-विधान, ”मिले ना तुम तो हम घबराएँ, मिलो तो आँख चुराएँ..’ (हीर रांझा) गीत में देखने को मिलता है. यह गीत अप्रतिम रूप से मधुर है- फूले काँस, प्रिया राजवंश और राजकुमार (हीर- रांझा की भूमिका में) मिथकीय पात्रों के रूप में हमेशा के लिए स्मृति-पटल पर अंकित होकर रह जाते हैं.
‘बड़े अच्छे लगते हैं…’ गीत अमित कुमार का गाया पहला हिट सॉंग साबित हुआ. यह गीत 1977 की बिनाका गीतमाला में साल भर ट्रेंड करता रहा.
दुल्हन के वेश में सजी-धजी भोली-भाली, अबोध सी बालिका-वधू (रजनी शर्मा), टीनएजर पति (सचिन) से इस गीत को सुनती है. वह भावों में बहती, बाँह पर थाप देती हुई सी नजर आती है. उधर पति की उंगली में शादी की अंगूठी साफ-साफ चमकती है.
ब्रिटिश इंडिया के बैकड्रॉप पर आधारित बांग्ला पृष्ठभूमि से सजी इस फिल्म में तब के ट्रेंड के मुताबिक अबोध बच्चों की शादी हो जाती है. शादी के बाद दुल्हन अपने मायके में रहती है और दूल्हा विद्यार्थी जीवन की पढ़ाई पूरी करने भेज दिया जाता है.
जैसे-जैसे वे बढ़ते जाते हैं, उनमें परस्पर प्रेम पनपने लगता है. साहचर्य की चाहत होते हुए भी, खास मौकों पर ही उनकी मुलाकात हो पाती है. जब तक गौना नहीं हुआ, तब तक मिलन का मतलब दुर्लभ अवसर.
ऐसे ही किसी खास मौके पर आने वाले कल के बिछोह को लेकर यह गीत रचा गया है. आनंद बख्शी ने इतना खूबसूरत गीत रचा कि, इतने बरस बीत जाने के बाद भी एकदम तरोताजा सा लगता है.
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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