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मातृत्व के महिमामंडन का जबर्दस्त दबाव प्रेग्नेंट महिलाओं पर रहता है

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काफी दिनों बाद आज का दिन रहा जब मुझे उल्टी नहीं हुई. उल्टी की सेंसेशन भी कम ही हुई. तुम ऐसे ही मेरा साथ दो न मेरी बच्ची, प्लीज…फिर मुझे कोई शिकायत नहीं होगी तुमसे. आज थोड़ा नार्मल रही तो लाइब्रेरी भी गई, सर से भी मिली. शाम को भी थोड़ा बाहर निकली.

मैं और मेरी रूममेट बहुत देर से ये दो गाने रिपीट कर के सुन रहे हैं-

‘‘मुझसे पहले कितने शायर आए और आकर चले गए

मसरूफ जमाना मेरे लिए क्यूं वक्त अपना बरबाद करे

‘मैं पल दो पल का शायर हूं…

पल दो पल मेरी हस्ती है… पल दो पल मेरी जवानी है”

और दूसरा गाना

‘‘मैं हर एक पल का शायर हूं… हर एक पल मेरी हस्ती है

रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होती

ख्वाबों और उमंगों की मियादें खत्म नहीं होती

एक चेहरा तेरी निशानी है, एक चेहरा मेरी निशानी है”

तुम मेरा ही चेहरा होओगी. ये गाना भी जीवन का सच है मेरी बच्ची. ऐसा ही है जीवन मेरी जान, क्षणिक भी है और अनवरत भी!

इन दो पंक्तियों ने मुझे बड़ी आशा दी है, भीतर के डिप्रेशन का कोहरा थोड़ा छांट दिया है.

‘रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होती

ख्वाबों की और उमंगो की मियादें खत्म नहीं होती’

तुम्हारे आने से रिश्तों का, जीवन का, रूप ही तो बदलेगा, मेरे ख्वाबों और उमंगों की बुनियाद थोड़े ही खत्म हो जाएगी? प्यार.

मेरे बच्चे! बड़ा अजीब सा रिश्ता बना हुआ है अभी मेरा और तुम्हारा. तुमसे झूठ न बोलने का वायदा किया है मैंने, इसलिए गलत-सही, अच्छे-बुरे से परे सब बांट लूंगी तुमसे. लगभग एक महीना सात दिन के हो तुम मेरे भीतर. लेकिन मातृत्व के विशाल वृक्ष की जड़ तो जमना दूर, अभी अंकुर भी नहीं फूटा है! ऐसा क्यों? दुर्भाग्य से जबसे तुम मेरे भीतर आए हो हर पल मैं परेशान हूं, मेरी भूख बिल्कुल मर चुकी है. उल्टियां जब-तब होती रहती हैं, गैस बेहद बनती है. हमेशा लगता है कि पेट में अपच जैसा रहता है. थोड़ा सा कुछ भी खाते ही पेट अफर जाता है. थोड़ा सा चलते ही मुझे सांस चढ़ने लगती है. टेस्ट मेरे सारे नार्मल हैं. यानी कि ये सब जो बीमारी के से लक्षण हैं, ये गर्भावस्था के सामान्य लक्षण हैं!

अधिकतर परेशान करने वाली चीजों के बाद भी मुझे (हम सभी प्रेग्नेंट माँओं को,) सामान्य महसूस करना है होता है! इनमें से अधिकर चीजें सभी को होती होंगी, सोचो जरा इतनी सारी चीजों के बाद भी मुझे और हम सभी मांओं को सहज महसूस करना है, खुश रहना है. और सबसे अजीब सी व बेहद खराब बात ये है, कि जहां मैं अपना पहले वाला नियमित खाना तक भी खाने की स्थिति में नहीं हूं, वहां मुझ पर पहले से ज्यादा खाना खाने का दबाव है तुम्हारे कारण और दवाई लेना, जो कि मुझे बिल्कुल पसंद नहीं, ये मुझे नियमित रूप से खानी पड़ रही हैं. प्रेग्नेंसी की इतनी बीमारियों और परेशानियों के बावजूद भी औरतें पता नहीं कैसे मातृत्व के रस में होते ही पोर-पोर डूबी रहती हैं? शायद मातृत्व के महिमामंडन का इतना जबर्दस्त दबाव उन प्रेग्नेंट महिलाओं पर रहता है कि वे अपनी परेशानियों को किनारे करके खुद को खुश दिखाती हैं (मैं अभी लिख भी नहीं पा रही, आज मुझे बुखार भी है.)

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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