4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 61 (Column by Gayatree Arya 61)
पिछली किस्त का लिंक: ढलती उम्र में बेडौल शरीर की स्त्री को बच्चा ही ख़ास होने का एहसास दिलाता है
अपने तैंतीसवें जन्मदिन पर इतने खतरनाक तोहफे की कल्पना मैं सपने में भी नहीं कर सकती थी. बावजूद सारी सावधानियों के मैं तीसरी बार पे्रेगनेंट थी. हाय रे स्त्री जन्म! मैं फिर से उल्टियों के उसी भयंकर दौर से गुजर रही हूं मेरे बच्चे. तुम इस वक्त मेरे साथ हो, मेरे पास हो, पर इस सब से बिल्कुल अंजान.
एक और भ्रूण मेरे भीतर पनप गया है, पर हम दोनों ही इसे जन्म देने के लिए तैयार नहीं हैं. खुद प्रसव करके मां बनने का सुख दोबारा भोगने की मेरी बिल्कुल भी इच्छा नहीं है और न ही हिम्मत. लेकिन जैसे ही ये खबर मैंने अपने मायके पक्ष को सुनाई उनकी नेक नसीहतों के अंबार लग गए. ‘अरे ये तो अच्छी खबर है, परिवार पूरा हो गया. अबकी बार तो ‘लड़के’ के पैदा होने की चिंता भी नहीं, इस बार ऑपरेशन करवा लेना. यदि तुम लोगों के न चाहने पर भी तुम पे्रगनेंट हो, तो इसका मतलब ये है कि ईश्वर की यही इच्छा है.’
ईश्वर की इच्छा को भला कैसे नकारा जा सकता है? लेकिन मैंने नकार दिया ईश्वर की इच्छा को. हम दोनों डॉक्टर से मिल चुके हैं और मैंने दवाई ले ली है. खतरनाक ब्लिडिंग का दौर शुरू हो चुका है. जाहिर है मेरी सास भी खुश नहीं हैं?
कल पूरा दिन मैं पेट दर्द और ज्यादा ब्लिडिंग के कारण बिस्तर पर लेटी रही, पर मेरी इतनी अच्छी सास ने एक बार भी मेरी तबियत के बारे में कुछ नहीं पूछा. मैंने ईश्वर की इच्छा को बदल दिया है. अब दूसरा कोई मेरे गर्भ में पल के इस दुनिया में नहीं आने वाला है. मैं हैरान हूं कि मैंने इंसान होकर ईश्वर की इच्छा को कैसे बदल दिया भला.
कैसे ‘भगवान की इच्छा’ के नाम पर उन लोगों ने मुझे समझाना शुरू कर दिया था, बाप रे! मैं उसी वक्त सोच रही थी, कि यदि मैं कभी बिना शादी के प्रेगनेंट हो जाती और घर वालों को अपनी प्रेगनेंसी के बारे में बता देती, क्या तब भी ये लोग ‘भगवान की मर्जी’ के नाम पर मेरे उस अविवाहित गर्भ को स्वीकार कर लेते? हरजिग नहीं. तब उसे सब लोग ‘पाप’ कहते, क्योंकि वो शादी से पहले की घटना होती. ऐसा क्यों और कैसे है! कि भगवान की मर्जी सिर्फ विवाहित स्त्रियों पर ही चलती है, अविवाहित लड़की पर नहीं? बिना शादी के बच्चा ‘शैतान की मर्जी’ और शादी के सारे बच्चे ‘भगवान की मर्जी.’ ऐसा कैसे संभव है कि शादी होते ही ‘पाप’ ‘भगवान की मर्जी’ में बदल जाता है? इस समाज की बातें बहुत-बहुत उलझी हुई हैं मेरे बच्चे.
बच्चा पैदा करने की मेरी खुद की मर्जी, औरत की अपनी मर्जी कहां है? जिसे नौ महीने बच्चा पेट में लेकर घूमना है, जिसे प्रसव का दर्द झेलना है, जिसे रात-दिन एक करके बच्चा पालना है, उसकी कहीं कोई मर्जी नहीं. क्यों भला? तुम ही बताओ क्या ये इंसाफ है मेरे बच्चे? काश! औरत का बच्चे पैदा करना भी जानवरों, पक्षियों के बच्चे पैदा करने जैसा, पेड़-पौधों या बीज के अंकुरित होने जैसा सहज, आसान, पाप-पुण्य से परे और आजीवन की जिम्मेदारियों से मुक्त होता.
तुम जो इस दुनिया में हो उसके लिए नहीं सोचा उन लोगों ने, कि कैसे सिर्फ नौ महीनों बाद मेरा सारा ध्यान, केयर, तुमसे हटकर उस नए बच्चे पर आ जाएगा और जो अभी कहीं नहीं है, उसकी चिंता सबको हो गई थी. इस देश में हमें बच्चे भी दूसरों की मर्जी से पैदा करने पड़ते हैं. काश, तुम इस तकलीफ को समझ सको और अपने जीवन साथी पर कभी भी ये फैसला न थोपो.
मैं फिर से जमे हुए खून के थक्कों, लाल सुर्ख रंग की हैवी ब्लिडिंग और बदबू के बीच हूं. काश वो गेंद के आकार का मांस का लोथड़ा इस बार भी अपने-आप ही बाहर आ जाए. लुढ़क जाए आखिरी बार.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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