4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 59 (Column by Gayatree Arya 59)
पिछली किस्त का लिंक: एक बच्चा अपनी मां को बहुत ख़ास महसूस करवाता है
रंग मेरी जान, अब तुम खूब चलने लगे हो चौपाया बनकर. एक जगह टिकना तुम्हें पसंद नहीं. खाना खाते हुए तुम पूरे समय मुझे पकड़ के खड़े होने की कोशिश करते रहते हो. फर्श पर चलते हुए चींटी, मकोड़े तुम्हारे पसंदीदा खिलौने हैं. तुम अक्सर चींटी या मकोड़े के पीछे चल पड़ते हो उन्हें पकड़ने की चाहत में. तुम्हारा ज्यादातर समय टूटे हुए फर्श को या छोटे-मोटे गड्ढे को उंगली से कुरेदने में निकलता है. पता नहीं अधिकतर बच्चे खिलौनों से कम और बिना खेलने वाली चीजों से ज्यादा क्यों खेलते हैं? तुम भी खिलौनों के डब्बों, प्लास्टिक की बोतल,
बोतल के ढक्कन, चम्मच, कटोरी, ग्लास, मोबाइल, चार्जर, अखबार, मैग्जीन आदि से चीजों से खेलना ज्यादा पसंद करते हो और इस सबसे ज्यादा तुम्हें मेरी डायरी (जिसमें मैं तुम्हें ये पत्र लिख रही हूं) पसंद है और मेरे लेख लिखे हुए कागज. कितने बेरंग और बेकार से हैं वे कागज तुम्हारे लिए, फिर भी पता नहीं तुम्हें उन्हें छूने की, पकड़ने की और अंततः खाने की इतनी लालसा क्यूं रहती है मेरे रंगरूट?
अभी तक तुमने ‘मांऽऽ मांऽऽ’ बोलना नहीं सीखा है और कितना तरसाओगी तुम मुझे ये शब्द सुनने के लिए भला! देखो तुम फिर मेरी डायरी पर टूट पड़े हो, ओह, अब मैं नहीं लिख पा रही हूं.
12.30पी.एम. 21/05/10
मेरे बच्चे! सारे मां-बाप बचपन से अपने बच्चों को ‘सदा सच बोलो’ का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन तुम्हारी मां उलझन में है कि तुम्हें क्या बोलना सिखाए सच कि झूठ? अपनी जिंदगी को देखकर और अपने आस-पास को लोगों को देखकर तो मैं यही कहूंगी कि सच ज्यादातर फंसाता है, दुविधा में डालता है, कीमत वसूलता है, टकराव पैदा करता है. कई बार तो सच के कारण रिश्ते तक टूट जाते है, बदनामी का डर अलग रहता है. दूसरी तरफ झूठ ज्यादातर छोटी-बड़ी मुश्किलें चुटकी में हल कर देता है, बिना किसी का कोई नुकसान किये. झूठ अक्सर ही उलझन से बचा लेता है, टकराव की संभावना खत्म कर देता है, बदनामी से भी अक्सर ही बचा लेता है.
मैं यहां सच को बदनाम और झूठ को महिमामंडित नहीं कर रही मेरे बच्चे! बल्कि वास्तव में चीजें ऐसी ही हैं. अक्सर लोग कहते हैं कि ‘सच हमेशा एक होता है ’ मुझे ये सबसे बड़ा झूठ लगता है. मैं मानती हूं कि प्रकृति से जुड़ी चीजों का सच एक ही है, लेकिन इंसानी जीवन से जुड़ी चीजों के एक से ज्यादा सच होते हैं. जितने लोग उतने नजरिए, उतने सच. सच्ची कहूं तुमसे मैंने सच बोल के कई बार अपना इतना नुकसान किया है जिसकी भरपाई मेरे जीते जी नहीं होगी और बहुत बार झूठ बोलकर मैंने, बहुत-बहुत मजे किये हैं.
पर देखो जरा, इस सबके बावजूद भी मैं चाहती हूं कि तुम मेरे साथ हमेशा सच ही बोलो. ऐसा इसलिये है क्योंकि तुम्हारी माँ एक जबर्दस्त लिबरल माँ है, बेहद फ्लेक्सिबल. गुस्सैल या मार-पीट करने वाली नहीं. सो तुम्हें सच बोलकर कोई अफ़सोस नहीं होगा, क्योंकि मैं तुम्हारी बात, तुम्हारा पक्ष समझने की हर सम्भव कोशिश करूंगी. एक दूसरा कारण ये भी है की तुम्हारा कोई भाई-बहन नहीं, सो तुम्हें बुरे समय में सही सलाह देने वाला कोई और नहीं होगा, इस कारण मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे सच बताओ. हां ये वादा मैं तुमसे कर सकती हूं कि मेरे साथ सच बोलने का खामियजा तुम्हें नहीं भुगतना पड़ेगा. जब तक कि तुमने किसी को गहरा नुकसान न पहुंचाया हो, तुम्हारे सारे सच मुझे सहर्ष स्वीकार होंगे. वैसे मुझे तुम्हारे झूठ भी स्वीकार होंगे. झूठ बोलने पर मैं तुम्हारी ऐसी क्लास कभी भी नहीं लेने वाली, जैसी कि मेरी मां या मेरे परिवार वालों ने मेरी ली है.
बहुत ‘गोलमाल’ वाली दुनिया में आ गए हो तुम! कैसे निबाहोगे मेरी जान?
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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