4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – पंद्रहवीं क़िस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: लड़कियां चाहे बच्चे जनती मर जाएं, खानदान का झंडा लड़के ही उठाएंगे
नया साल शुरू हो गया, साल 2009, तुम्हारे लिए ये नया साल ही पहला साल है. कुछ दिनों पहले मैंने सोचा, कि नौ महीने पेट में रहने के बाद जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है, तो कैसे सिर्फ एक दिन कहलाने लगता है.
12 साल पुरानी मेरी एक दोस्त भी तुम्हारे आने की खबर से खुश नहीं हो पा रही थी क्योंकि मैं जो खुश नहीं थी, मेरी उदासी उसे कभी खुशी नहीं दे पाती. परिवार और दोस्तों में यही सबसे बड़ा फर्क है मेरे बच्चे. परिवार परंपरा के हिसाब से चलने पर सबसे ज्यादा खुश रहता है, प्यार बरसाता है, साथ देता है, जबकि सच्चा दोस्त हमारी खुशी से खुश होता है और दुख से दुखी. सच्चे दोस्त बिना शर्त खुशी और दुख में साथ देते हैं. अच्छे दोस्त जिंदगी की बड़ी नेमत होते हैं मेरे बच्चे! परछाई जैसे, जो जिंदगी की धूप में हमेशा साथ होते हैं. हां लेकिन आज के समय सच्चे दोस्त मिलना बेहद-बेहद मुश्किल है. भगवान के मिलने जैसा ही समझ लो.
अब जबकि तुम मेरी जिंदगी में आ चुकी हो, हर पल, हर लम्हा तुम बढ़ रही हो मेरे भीतर, तो मेरा मन तुमसे मिल जाना चाहिए, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है. मैं चाहती हूं कि ऐसा हो लेकिन अभी तक तो ऐसा नहीं हो पा रहा है मेरी बच्ची. मैं काफी दुखी और निराश हूं इस बात से. मैं सच में बिल्कुल नहीं चाहती मेरी बच्ची, कि मेरी किसी भी नकारात्मक सोच का तुम पर बुरा असर हो. भला मेरे चलते तुम्हें क्यों भुगतना चाहिए? मुझे, तुम्हारी मां को, तुम्हारी थोड़ी सी मदद थोड़ी नहीं, बल्कि ज्यादा मदद चाहिए मेरी बच्ची. तुम ही कुछ ऐसा जादू करो न मेरी बच्ची, कि अभी से मुझे तुम्हारी चाहत होने लगे. तुमसे बस प्यार हो जाए मुझे.
मैं तुम्हारी केयर तो करने लगी हूं, लेकिन केयर करना प्यार नहीं होता है न. ये तो कुछ-कुछ पति-पत्नी जैसा सा संबंध हो गया. जिसमें वे केयर करते हैं, एक-दूसरे की जरूरतों का ध्यान रखते हैं, लेकिन प्यार, चाहत और गर्माहट जैसा अक्सर कुछ नहीं होता. बहुत से लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखेंगे कि पति-पत्नी में प्यार नहीं होता या फिर वे कहेंगे की प्यार केयर करना ही तो होता है, न कि सिर्फ आई लव यू बोलते रहना. मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहती, कि पति-पत्नी का रिश्ता क्या, कैसा होता है? तुम जब यहाँ आओगी, शादी होने पर खुद ही उस रिश्ते के यथार्थ और सीमाओं को समझ जाओगी.
मैं तो तुमसे दोस्त जैसा रिश्ता चाहती हूं. मैं तुमसे सिर्फ माँ-बच्चे जैसा रिश्ता नहीं चाहती मेरी जान. सच ये है की दोस्ती जिस भी रिश्ते में जीने लगती है या पैदा हो जाती है वो रिश्ता बेहद-बेहद जीवंत हो उठता है. कुल मिलाकर मैं हम दोनों का रिश्ता बेहद जीवंत, गर्माहट से से भरा और रीती-रिवाज, सच-झूठ, सही-गलत से परे चाहती हूं … आओ, मुझे प्रेम, जीजिविषा, गर्माहट और गुनगुनेपन की एक बिलकुल नई दुनिया में ले जाओ मेरी रूह के हिस्से.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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