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बड़े होने पर बच्चों के भीतर का फरिश्ता मर जाता है

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 42  (Column by Gayatree arya 42)

पिछली किस्त का लिंक: तुम्हारे बारे में लिखने के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे 

आज दोपहर में तुम्हारे सोते ही मैंने तुम्हें लिखना शुरू कर दिया. कुछ बहुत जरूरी बातें जो तुमसे शेयर करना था. ऐसा कुछ जो मुझे भीतर से बहुत परेशान कर रहा है. अभी परसों ही यानी 17 फरवरी की शाम को सप्लाई का पानी आया. मैं उसी पानी में साग धो रही थी तो अचानक से मुझे नाले जैसे बदबू का झोंका आया, मैं थोड़ी चौंक गई क्योंकि घर के आस-पास नाला तो कहीं नहीं है. बदबू जब लगातार आती ही रही तो मैं अपना मुंह उस बाल्टी की तरफ ले गई, जिसमें पानी आ रहा था सप्लाई का. मेरा अंदाजा सही निकला सप्लाई के पानी से ही नाले जैसी बदबू आ रही थी!

पानी का रंग भी कुछ ‘ग्रे’ की सी झलक लिए था. मैंने तुम्हारे पिता को बताया तो वे भी इस बात से सहमत हुए. मैं पल भर को सहम गई, मुझे समझ ही नहीं आया क्या करूं? इस पानी से धोकर मैं साग को साफ कर रही थी या कि और ज्यादा गंदा? और बात सिर्फ साग धोने तक ही कहां सीमित थी बेटू, मुंह धोना, नहाना, ब्रश करना, खाना बनाना, कपड़े धोना सब कुछ तो इसी पानी से होता है. इनमें से कितने काम मैं उस पीने के पानी वाली 20 लीटर की बोतल से कर सकती हूं भला? और कब तक? उस बदबूदार पानी से निकाल कर मैंने साग तो सुखा दिया, पर दिल-दिमाग को कौन से पानी में धोती भला?

अगले दिन हिंदुस्तान अखबार के मुख्य पृष्ठ पर खबर थी ‘शहर को जहरीला पानी पिला रही दिल्ली’! सही बताया था मेरी नाक और आंख ने! यमुना नदी में इतना ज्यादा नाले का पानी मिल गया कि उस पानी में मानक हिसाब से क्लोरीन मिलाने से भी पानी साफ नहीं हुआ. 1.4 पी.पी.एम. से ज्यादा आमोनिया स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है जबकि इसमें 18 पी.पी.एम. अमोनिया की मात्रा थी.

मानक से ज्यादा मात्रा में क्लोरीन मिलाने के बाद भी पानी साफ नहीं आ रहा, दूसरी तरफ ज्यादा क्लोरीन मिलाने से पेट, आंते, लीवर कैंसर, आंखों और त्वचा में एलर्जी की संभावना कई गुना बढ़ जाती है! उफ्फ! मैं तुम्हें कहां ले जाऊं मेरे बच्चे? कैसे बचाऊं तुम्हें इस गंदगी से? कैसे बचाऊं तुम्हें धीमी और दर्दनाक मौत के जबरन थोपे जा रहे तरीकों से? तुम्हें कहां ले जाऊं रंग, जहां तुम्हें कम से कम हवा, पानी और खाना तो साफ मिले?

आज तुम्हें नहलाते वक्त मैं कितनी परेशान थी मेरी जान, मैं रोने लगी थी. क्या मैं इतना हर रोज रोया करूं, कि उस बूंद-बूंद आंसू के पानी से तुम्हें नहला सकूं, नाले के पानी से तो अच्छा ही होगा न आंखों का खारा पानी! मैं तुम्हें नहलाकर साफ कर रही थी या और ज्यादा गंदा? मैं नहलाकर तुम्हें बीमारियों से बचा रही थी या फिर बीमारियों की झील में डुबकी लगवा रही थी मेरे बच्चे? तुम्हारा मुंह धोते वक्त मुझे लगा कि मुंह धोने के लिए मुझे पीने वाला साफ पानी इस्तेमाल करना चाहिए. फिर तुम्हारे हाथ, मुठ्ठियां, धोते वक्त मुझे लगा कि ये भी तो मुझे पीने वाले साफ पानी से धोना चाहिए, क्योंकि तुम हाथ मुंह में डालते हो.

उफ्फ! मुझे तुम्हारे शरीर का कौन सा हिस्सा उस नाले के पानी से धोना चाहिए भला? मुझे तुम्हें पूरा का पूरा पीने वाले बिसलरी के पानी से ही नहलाना चाहिए. तुम्हारे बर्तन भी पीने के पानी से धोने चाहिए. आज नहाते वक्त पूरा समय मैं उस नाले की बदबू से घिरी रही, फिर मैंने अपने स्तनों को देखा जिन पर उस गंदे पानी की गंदगी चिपक गई होगी, तुम दूध पीओगे तो तुम्हारे मुह में नहीं जाएगी गंदगी?…ओह मुझे भी पीने के पानी से ही नहाना चाहिए.

लेकिन सवाल सिर्फ मेरे और तुम्हारी मां के साफ पानी में नहाने या अन्य सारे काम पीने के पानी में करने का नहीं है मेरे बच्चे! जैसे मैं और तुम वैसे ही सारे मां-बच्चे हैं! मुझमें और तुममें ऐसा क्या खास है, कि हमें पीने वाले साफ पानी में ही सारे काम करने चाहिए और बाकि सब को नहीं! कितने नवजात बच्चे इस नाले जैसे पानी में ही न सिर्फ नहाने बल्कि इसे ही पीने को अभिशप्त हैं! यदि हम सारा काम पीने के साफ पानी में ही करने लगें तो पीने का पानी बचेगा कहां? और सवाल तो ये भी है मेरी जान कि पीने के साफ पानी की बोतल का विकल्प है भी कितने लोगों के पास? उनका क्या जिनके पास साफ पानी की बोतल ही नहीं? ओह! ये कहां आ गए तुम? सड़ा हुआ नरक! मुझे शर्म आ रही है तुम्हें ये सब लिखते हुए. नहीं ये सब माफी के काबिल नहीं. लेकिन ये गलती करने वाले लोग और व्यवस्था जरा भी शर्मिंदा नहीं हैं, इस पाप के लिए जो वे तुम जैसे असंख्य बच्चों के साथ कर रहे हैं.

सिर्फ तुम ही क्या, तुम्हारे साथ के सारे बच्चे, तुमसे छोटे सारे नवजात शिशु और जन्म लेने वाले तमाम बच्चे मिलकर भी, हमें माफ न करो तो भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम्हें यकीन न हो तो बड़े होकर खुद ही देख लेना. तुम्हारे बड़े होने तक इस नरक की लास्ट डेट थोड़े ही आ जाएगी? तब तक तो ये नंगा नाच, ये अंधेरगर्दी और भी जवान होगी तुम्हारी तरह. मैं तुम्हें कोई झूठी आस नहीं बंधाना चाहती मेरे बच्चे! नकारात्मक सोच वाली नहीं है तुम्हारी मां, पर झूठी आस किस मुंह से बाधूं मेरे बेटे?

तुम कितने प्यारे हो, प्योर हो, निःश्छल हो, बिल्कुल पाक हो ओस की बूंद जैसे. शाखाओं पर फूटे अंखुआ जैसे. नई मुलायम कोंपलों जैसे. गोमुख से निकलते पानी की धार जैसे. पर देखो तुम कैसे कचरे के ढेर जैसी सड़ी, गंदी, बेईमान, झूठ, छल-प्रपंच से भरी दुनिया में आ गए हो, कैसे निभाओगे यार?…कैसे?

ओफ्फ…! दिमाग ही तो फट जाएगा ये सब सोचकर. कुछ दिनों से तुम एक बड़ी मजेदार चीज कर रहे हो, जब भी मैं तुम्हें सुस्सू कराती हूं, अक्सर ही तुम इधर-उधर देख रहे होते हो. लेकिन फर्श पर सुस्सू के गिरने की आवाज सुनते ही तुम अपने सुस्सू की धार देखने लगते हो और धार को पकड़े-पकड़े तुम्हारी नजर अपने नुन्नू पर आ टिकती है, और फिर तुम और ज्यादा झुककर सुस्सू को निकलते हुए देखने लगते हो. कितनी जिज्ञासा होती होगी न तुम्हें ये देखकर. किसी चमत्कार से कम नहीं लगता होगा न, अपने शरीर से पानी जैसी धार को निकलते देखना. क्या लगता होगा तुम्हें उस वक्त. तुम्हें ऐसे करते देखना कितना-कितना मजेदार है मेरे बच्चे और तुम्हारी जालिम हंसी. तुम आवाज करके हंसने लगे हो, खिल्ल-खिल्ल करके हंसते हो खूब और कभी-कभी तो गर्दन के दोनों तरफ गुदगुदी करने से आंख बंद करके हंसते हो. उफ्फ, मैं नहीं बता सकती रंग तुम कितने-कितने अच्छे लगते हो उस वक्त. ओह, तुम्हारी कातिल हंसी मेरी जान, जब तक बड़े होकर तुम भी इस दुनिया के छल-प्रपंच नहीं सीख जाते, तुम फरिश्ता ही तो हो मेरे रंगरूट! साल-दर-साल तुम्हारे जैसे असंख्य फरिश्ते इस दुनिया में आ रहे हैं, पर फिर भी दुनिया दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है. वो इसलिए क्योंकि बड़े होने तक तुम लोग भी दुनिया के छल-कपट और दुनियादारी में निपुण हो जाते हो और तुम्हारे भीतर का फरिश्ता मर जाता है! अभी-अभी तुम्हारे पिता ने तुम्हें सुला दिया है. खाना खाने से पहले लगभग मैं एक घंटा पढ़ सकती हूं, फिर मिलती हूं मेरे नन्हे फरिश्ते!

8.15 पी.एम/09.12.10

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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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