4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – बत्तीसवीं क़िस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: बच्चे से बढ़कर और उससे पहले भला किसी मां के लिए क्या हो सकता है?
मेरा नौवां महीना शुरू हो चुका है, डॉक्टर ने इसी माह के अंत की तारीख मुझे डिलीवरी के लिए दी है. कहां, कैसे उड़ गया प्रेगनेंसी के आठ महीनों का समय. ठीक इसी पल जबकि ये अंतिम समय है तुम्हारी ‘कैद’ का, ये अंतिम समय है मेरी ‘आजादी’ का! तुम्हारे मूवमेंट इस वक्त बहुत बढ़ गए हैं मेरे बच्चे. लगता है जैसे तुम अब उस अंधेरी गीली कोठरी से मुक्त होना चाहते हो. आजाद होना चाहते होगे गर्भ की कैद से. (Column by Gayatree Arya)
असल में हम दोनों मां-बच्चा ही अपनी-अपनी आजादी के लिए छटपटा रहे हैं और विडम्बना ये है कि फ़िलहाल मेरी आजादी तुम्हारी कैद है और तुम्हारी आजादी मेरी कैद है. मां और बच्चे का संबंध जहां एक तरफ बहुत गहरा, निर्द्वंद्व, अटूट है; वहीं दूसरी तरफ जटिल भी है मेरे बच्चे! जटिल इस मायने में कि दोनों अपनी मुक्ति या आजादी के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं! तुम भ्रूण के रूप में जब मेरे गर्भ में आए थे उसी दिन से समझो मेरी आजादी, बेख्याली, लापरवाही पर अंकुश लगना शुरू हो गया था. अब मुझे हर वक्त सजग, सचेत रहना है. मां की हालत कुछ-कुछ उस जवान जैसी है जिसके पास थकने का विकल्प नहीं है, क्योंकि उसे सीमा की चौकसी के लिए तैनात किया गया है. जिसके पास सिर्फ और सिर्फ एक ही स्थिति में रहना है अलर्ट! अलर्ट! अलर्ट!
बहुत संभव है मेरे बच्चे कि ये खत पढ़ते हुए तुम्हें अपनी मां का ये ‘आजादी‘ का पहाड़ा बेहद खराब लगे, कोफत हो तुम्हें, गुस्सा आए और तुम सोचो कि ‘जब आजादी में मैं (तुम) इतना बड़ा बाधक हूं तो मुझे पैदा ही क्यों किया?’ मैं अपनी सफाई में सिर्फ यही कहूंगी कि अभी तुम्हें पैदा करने का निर्णय मेरे ऊपर परिवार द्वारा थोपा गया निर्णय था. जहां तक आजादी के छिनने की बात है, चूंकि बच्चा, मां का समय और साथ ज्यादा चाहता है इसलिए जाहिर है मां की आजादी ज्यादा ही छिनेगी.
दूसरी बात ये मेरे बच्चे, मैं नहीं जानती कि आजादी का सुख मातृत्व से बड़ा है या कि मातृत्व का सुख आजादी से बड़ा. व्यवहार में मैंने अभी तक सिर्फ आजादी का स्वाद चखा है और वो अनमोल है. चूंकि प्राकृतिक रूप से तुम मेरे पहले बच्चे हो इसलिए मातृत्व का स्वाद मैंने अभी तक नहीं चखा है, वो स्वाद मैं तुम्हारे आने के बाद ही चखूंगी. ये स्वाद भी बेहद अनमोल है मैं जानती हूं, लेकिन चीजों को तकनीकी या बौद्धिक रूप में जानने और उन्हें वास्तव में महसूस करने में जमीन-आसमान का फर्क है मेरी जान! वैसे भी जीवन में कोई एक या दो चीज ही तो अनमोल नहीं होती न. और कोई एक अनमोल चीज, दूसरी अनमोल चीज से बेहतर ही हो ये जरूरी नहीं. मेरी आजादी मेरी जिंदगी में एक बेशकीमती चीज है. साथ ही तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना भी बेहद बेशकीमती, अदभुत और अनमोल है. कोई भी दो या उससे ज्यादा बेशकीमती चीजें कभी भी एक-दूसरे का विकल्प नहीं होती मेरी जान! सबका अपना-अपना अलग महत्व है. (Column by Gayatree Arya)
तुम्हें पता है, अभी से हालत ये है कि तुम्हारा कोई भी मूवमेंट मैं मिस नहीं करती, करना चाहती. जब मैं घर पर होती हूं तो तुम्हारे हिलना-डुलना शुरू करते ही झट से अपने पेट के ऊपर से कपड़ा हटाती हूं और तुम्हें देखते हुए मुस्कुराने लगती हूं. कभी लगता है तुम मेरे पेट को मथ रही हो, कभी लगता है जैसे जोर-जोर से सिसकियां ले रही हो, कभी ऐसे जैसे तुमने एक लात जड़ दी हो, तो कभी लगता है जैसे तुम अपनी शरीर को गुलैल सा तान रही हो. तुम्हारे ये सब करने में मुझे कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती मेरी बच्ची. बस बेहद-बेहद अच्छा लगता है. ये एक अदभुत अनुभव है, जिसे बिना खुद जिये महसूस नहीं किया जा सकता!
सोचो जरा तुम्हें पैदा करते ही मैं दुनिया की असंख्य लड़कियों/स्त्रियों के अनुभवों की हमजोली बन जाऊंगी. दूर अफ्रीका के किसी देश की किसी नीग्रो मां के, दुनिया की सबसे अमीर मां या फिर बेहद-बेहद गरीब मां के, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, ज्यूस सा फिर बौद्ध धर्म की मां के और मेरे अनुभव बिल्कुल एक जैसे होंगे. इन सबसे कितना दूर हेाते हुए भी मैं इस एक चीज में उनके जैसी हो जाऊंगी. बिना कुछ कहे-सुने, बिना एक-दूसरे की भाषा जाने-समझे भी वो मेरी प्रसव पीड़ा को और छातियों की तुम्हें दूध पिलाने की खुशी दोनों समझ सकती हैं. इस मामले में पुरुष गरीब है, कितना गरीब कि दुनिया भर के पुरुषों से जुड़ने की कोई तरकीब, कोई साझी पीड़ा, साझी खुशी, साझा अनुभव उनके पास नहीं है. सिवाय एक सेक्स के आनंद के जो कि बहुत क्षणिक है. दुनिया भर के आदमियों के पास कोई भी अनुभव ऐसा नहीं है मेरी बच्ची, जो उन्हें किसी एक धरातल पर जोड़ता हो. (Column by Gayatree Arya)
लेकिन हम औरतों के पास तकलीफ और खुशी के ऐसे कितने ही साझे अनुभव हैं, जो सारी दुनिया की अंजान औरतों को मुझसे और मुझे उन सबसे जोड़ते हैं. हर महीने होने वाले पीरियड़स का दर्द, प्रसव की असहनीय तकलीफ, अपने दूध बच्चे को पिलाने की खुशी, मां-बच्चे के परस्पर प्रेम का सुख, सेक्स का सुख भी और उससे भी ज्यादा थोपे गए सेक्स का दुख और उसकी टीस भी!
इस दुनिया में कई-कई बच्चे पैदा कर चुकी ऐसी असंख्य महिलाएं आज भी हैं, जो सेक्स के सुख से अंजान हैं. क्योंकि उनके हिसाब से ये सिर्फ पुरुषों के आनंद की चीज है. उन्हें या कहूं हमें (लड़कियों को) यही बताया गया है मेरी बच्ची कि ये (सेक्स) एक ऐसा लड्डू है जो बनाना तो हम लड़कियों को है, लेकिन जो खाना सिर्फ आदमियों को ही है! हमें उसका स्वाद लेने की मनाही है और सच ये है कि दुनिया की ज्यादातर लड़कियां सेक्स के लड्डू का सही स्वाद लिये बिना ही इस दुनिया से चली जाती हैं. बावजूद इसके कि वे तमाम स्त्रियां जो पत्नियां बन चुकी हैं, हर रोज या अक्सर अपने जीवनसाथी के साथ हमबिस्तर होती हैं, वे नहीं जानती कि यौन-सुख क्या है.
सेक्सोलाजिस्ट प्रकाश कोठारी कहते हैं कि ‘भारतीय पति, पत्नियों को ‘स्लिपिंग पिल‘ की तरह इस्तेमाल करते हैं.‘ मैं उनकी इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं, ज्यादातर पति पत्नियों के साथ स्लिपिंग पिल लेने की तरह ही सेक्स करते हैं या करना चाहते हैं. अधिकतर मर्द, अपवाद छोड़कर ब्लू फिल्में और पोर्न देखते हैं, सेक्स से जुड़ी सामग्री पढ़ते रहते हैं, लेकिन इस सबके बावजूद वे नहीं जानते कि उन्हें अपने जीवन साथी के साथ किस तरह यौन-सुख बांटना चाहिए. असल में वे मर्द और न ही औरतें ये जानती हैं कि सेक्स-सुख सिर्फ पुरुषों की बपोती नहीं है और इस आपाधापी में वे न सिर्फ स्त्रियों को यौन-सुख से वंचित रखने के अपराधी बनते हैं, बल्कि खुद भी अधूरे आनंद को जीते हैं! क्योंकि मैंने हमेशा कहा है मेरी बच्ची कि ‘साथ’ की बात ही अलग है, साथ हर चीज में ज्यादा आंनद देता है. बल्कि कहूं कि आनंद को कई गुना बढ़ा देता है. तो यदि सेक्स के समय भी स्त्री-पुरुष दोनों न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी एक साथ हों, तो जाहिर है दोनों मिलकर उस स्थिति को कहीं ज्यादा एन्जॉय करेंगे. लेकिन अफसोस कि अक्सर ही ऐसा होता नहीं है. (Column by Gayatree Arya)
कामकला को लेकर लिखे गए कामसूत्र से लेकर तमाम पोर्न फिल्में (अपवाद हो सकती हैं) तक, सेक्स संबंधी जानकारियां इस तरह से देती हैं जिसमें सेक्स को ‘पुरुष के आनंद‘ की चीज के तौर पर स्थापित किया गया है. सेक्स के इसी लिंगभेदी ज्ञान के प्रचार-प्रसार के कारण ही, जो काम इस दुनिया में सबसे ज्यादा हो रहा है उसमें ही पूरी इंसान जात को कौशल हासिल नहीं हुआ. बेटू तुम सोचो जरा कि पूरी दुनिया में हर तरह के सेक्स संबंध सबसे ज्यादा बन रहे हैं, जबरदस्ती भी, स्वैच्छिक भी, लेकिन आज तक भी इसमें स्त्री-पुरुष दोनों के परस्पर बराबर आनंद की स्थापना नहीं हुई, (अपवादों को छोड़कर) यदि करोड़ों, अरबों या कहूं कि अनंत बार कोई काम होने के बाद भी सबसे बेहतर नतीजा नहीं निकल रहा तो तुम समझ सकती हो कि ये सारे प्रयास गलत दिशा में हो रहे हैं या गलत तरीके से हो रहे हैं. नहीं?
लेकिन फिर भी इस स्तर पर कोई प्रयास नहीं कि सेक्स की सही शिक्षा स्त्री-पुरुष दोनों को दी जाए. सेक्स को सिर्फ पुरुषों के मजे की चीज की तरह न समझा जाए, और न ही पुरुषों को संतुष्ट करना स्त्रियों की जिम्मेदारी समझा जाए. बल्कि इसे स्त्री-पुरुष दोनों के आनंद की चीज माना जाए और दोनों को ही एक-दूसरे को संतुष्ट करने की जिम्मेदारी समझाई जाए. तुम्हें पता है मेरी जान! मेरी ऐसी बातें ही दुनियावालों को बहुत ही बुरी और उल्टी खोपड़ी की लगेंगी. मेरा सेक्स के मुद्दे पर कुछ पैराग्राफ लिखना भी लोगों को बुरी तरह खटक सकता है. क्योंकि समाज के हिसाब से लड़कियों को सिर्फ सेक्स के आनंद का हिस्सा बनना चाहिए चुपचाप, न कि सेक्स के मुद्दे पर कोई स्वस्थ बहस शुरू करनी चाहिए. (Column by Gayatree Arya)
खैर, ये एक अलग पेचीदा मसला है जिसके बारे में हम मिलकर फिर कभी बात करेंगे मेरी गुड़िया! जब तुम बड़ी हो जाओगी या हो जाओगे.
1पी.एम. / 5.6.08
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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