Featured

बच्चियां अपनी जिंदगी की पहली यौन हिंसा का अनुभव अपने घरों में ही करती हैं

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – तीसवीं क़िस्त

पिछली क़िस्त का लिंक: हमें कई चीजों से बेवजह नफरत सिखा दी जाती है (Column by Gayatree Arya)

तुम्हें पता है रंग! अपने देश में लड़कियां मां बनने के लिए ही जन्म लेती हैं. लड़की के जन्म लेते ही दो लक्ष्य उसके शरीर से चिपके होते हैं. एक शादी, दूसरा मां बनना. इन दोनों चीजों से हटके यदि लड़की कुछ करना चाहती है, तो उसकी ऊर्जा का बहुत बड़ा हिस्सा तो इन दो जन्मजात लक्ष्यों से हटने या इन्हें पीछे खिसकाने में ही खर्च हो जाता है. उसके बाद यदि वो कुछ हासिल कर पाए तो उसकी किस्मत. (Column by Gayatree Arya)

तुम्हें पता है मेरी रंगीली! इस दुनिया में ‘खुश रहना’ और ‘खुशी देना’ इसके बारे में ज्यादातर लोग बेहद लापरवाह हैं. अधिकतर मां-बाप जरूरत पूरी करने को ही खुशी देना समझ लेते हैं. पर ‘खुशी‘, ‘जरूरत‘ से बहुत अलग और बेहद जरूरी है जिंदगी के लिए. लेकिन सब लोग सिर्फ जरूरतें पूरी करने के पीछे भाग रहे हैं मेरी जान, खुशियों के पीछे नहीं! मैं तुमसे वादा तो नहीं कर सकती मेरे बच्चे, कि इस घोर मंहगाई के दौर में हम तुम्हारी सारी जरूरतें पूरी कर सकेंगे. लेकिन हां, मैं तुम्हें खुश रखने का वादा करती हूं. मुझे उम्मीद है कि हमारे साथ तुम बहुत खुशियों, हंसी, मस्ती, और ढेर सारे प्यार से भरा एक बेहद शानदार, और यादगार बचपन जीओगे. साथ ही मेरी हंर संभव कोशिश होगी कि तुम्हारा बचपन सुरक्षित भी हो.

यहां मैं जिस असुरक्षा की बात करने जा रही हूं मेरी जान, वो न सिर्फ हमारे देश के घर-परिवारों में बल्कि पूरी दुनिया के घरों में पसरी हुई है. मैं बात कर रही हूं ‘यौन हमलों‘ की. यह विडम्बना ही है मेरी बच्ची कि जो परिवार बच्चों की सुरक्षा की गारंटी देते हैं वहां बच्चे बेहद असुरक्षित हैं. तुम्हारी मां खुद इसकी भुक्तभोगी है. मैंने अपने बचपन का बड़ा हिस्सा बिना मां के बिताया है. मतलब की तुम्हारी नानी, गांव में रहती थी तुम्हारे पड़ नाना-नानी की सेवा के लिए और हम पढ़ाई के चलते शहर में रहे.

यह बेहद अफसोसजनक, शर्मनाक और दर्द से भरा है कि तुम्हारी मां ने अपने जीवन की पहली यौन हिंसा सार्वजनिक जीवन में नहीं बल्कि परिवार के साथ रहते हुए झेली. और वो भी तब जबकि मैं अपने भरे-पूरे परिवार के साथ रहती थी. मेरी जिंदगी का पहला यौन अपराधी हमारा मकान मालिक था, जिसके बाल सफेद थे और आंखे गिद्ध जैसी. मेरी उम्र से कुछ छोटे या बड़े उसके पोते-पोतियां रहे होगें और उससे भी ज्यादा अफसोसजनक ये मेरी बच्ची, कि मेरी जिंदगी के इस पहले यौन हिंसा के अनुभव को मेरे घर वाले कभी नहीं जान सके. सिर्फ मां जान सकी, वह भी उस घटना के 20-25 साल बाद, जबकि उस बात को बताने का कोई औचित्य ही नहीं बचा था, क्योंकि वो यौन अपराधी मकान मालिक एक बेहद इज्जतदार जिंदगी जीते हुए मर चुका था.

उसके बाद भी मुझे जीवन में कई बार यौन हिंसा के अनुभव हुए, जिन्हें मैं सही समय पर न तो पहचान सकी न ही किसी से कह सकी. अफसोसजनक ये भी था कि जिस समय मैं यौन हिंसा से गुजरी मैं जानती तक नहीं थी कि ये यौन हिंसा है. मैं नहीं जानती थी कि वो क्या हुआ था, बस मेरे बाल मन को इतना पता था कि मैं बेहद असहज थी, मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा था और मैं रोई थी अकेले, बिल्कुल तन्हा. (Column by Gayatree Arya)

तुम्हारी मां तुमसे ये वादा करती है मेरी बच्ची कि घर के भीतर तुम किसी किस्म की यौन हिंसा का शिकार नहीं होओगी. मैं इस बात का हरसंभव ख्याल रखूंगी कि तुम्हें प्यार के नाम पर यौन हमले का शिकार बनाने वाला शिकारी और हमलावर तुम्हारे आस-पास भी न फटके और यदि कभी ऐसा हो गया तो ये तय कि मैं उसे बख्शूंगी नहीं चाहे वो कोई रिश्तेदार या कितना भी सगा क्यों न हो! मैं सिर्फ तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी सख्ती से तुम्हारेा हाथ थामें, तुम्हें अपने सीने से लगा लूंगी बस, बिना ये बकवास किये कि तुम्हें ऐसा-वैसा नहीं करना चाहिए था या तुम्हारी कोई भी गल्ती निकाले. मैं तुम्हारे साथ अन्याय की कीमत पर किसी भी रिश्ते को नहीं निभाऊंगी ये तुमसे तुम्हारी मां का वादा है मेरी बच्ची!

मैं देखे, सुने, भोगे अनुभव के आधार पर कह सकती हूं कि कम से कम अपने देश में तो 95 प्रतिशत लड़कियां अपने घर-परिवार में, बचपन में यौन हमलों का शिकार हुई हैं. बल्कि ये कहना ज्यादा सही होगा कि बच्चियां अपनी जिंदगी की पहली यौन हिंसा का अनुभव अपने घरों में ही करती हैं. यह कितना-कितना शर्मनाक है. हिंसक है. उफ्फ और उससे भी ज्यादा शर्मनाक है अपने बच्चों के साथ हुए अन्याय को झेलकर उन तमाम यौन अपराधियों से अपने रिश्तों को बनाए रखना. हमारे समाज में खोखले रिश्ते ऊपर हैं न्याय-अन्याय नहीं. जो समाज अपने घरों के भीतर के यौन अपराधियों को रिश्तों की सफेद चादर में संभाल कर रखता है वह कभी यौन हिंसा से मुक्त नहीं हो सकता. तुम यौन हिंसा से भरे परिवार, समाज और दुनिया में आ रही हो मेरी बच्ची. मेरे लिए बड़ी चुनौती है तुम्हें कदम-कदम पर फैली इस हिंसा से बचाना. पर मैं हर संभव कोशिश करूंगी कि इस तरह के कड़वे अनुभव तुम्हारी जिदगी का अनुभव कभी न बनें.

12.30 ए.एम/ 09.07.09

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago