Featured

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए महज 44 साल की उम्र में विश्वविख्यात ‘हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान (एचएमआई), दार्जिलिंग’ के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित होने का गौरव प्राप्त किया है. (Colonel Rajneesh Joshi Mountaineering)

गौरतलब है कि रजनीश जोशी की स्कूली पढाई-लिखाई सरस्वती शिशु मंदिर, देवलथल में हुई. उसके बाद आगे की शिक्षा कारमन स्कूल देहरादून से हुई. एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले रजनीश के पिता प्राइवेट संस्थान में कार्यरत थे तो माता गृहणी.

साल 2005 में सेना में कमीशन मिलने के बाद गढ़वाल राइफल्स के सैन्य अधिकारी के तौर उन्होंने पर देश के विभिन्न सैन्य केन्द्रों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वाह किया. इसके साथ ही उन्होंने कई चुनौतीपूर्ण पर्वतारोहण अभियानों में भागीदारी की और कई का नेतृत्व भी किया.

18 दिसम्बर को कर्नल रजनीश जोशी ने विधिवत रूप से ‘हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान (एचएमआई), दार्जिलिंग’ के प्राचार्य का पदभार ग्रहण कर लिया. इस गौरव को हासिल करने वाले वे उत्तराखंड के दूसरे सैन्य अधिकारी हैं.

हिमालय पर्वतारोहण संस्थान (HMI) दुनिया के प्रमुख पर्वतारोहण संस्थानों में से एक है. इसकी स्थापना 4 नवंबर, 1954 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वर्गीय तेनजिंग नोर्गे शेरपा और सर एडमंड हिलेरी द्वारा माउंट एवरेस्ट पर पहली सफल चढ़ाई की याद में की थी. दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रमुख पर्वतारोहण संस्थान होने के नाते, HMI को भारतीय पर्वतारोहण का मक्का भी कहा जाता है. संस्थान की अंतरराष्ट्रीय ख्याति है और इसने पर्वतारोहण और संबद्ध साहसिक गतिविधियों में दुनिया भर के हजारों लोगों को प्रशिक्षित किया है.

कर्नल रजनीश जोशी पर्वतारोहण के साथ-साथ स्कीइंग के क्षेत्र में महारथ रखते हैं. अब तक वे हिमालय की 30 से अधिक पर्वत चोटियाँ विभिन्न दलों के साथ फतह कर चुके हैं.

साहसिक खेलों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें देश के प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है. पर्वतारोहण में उनका नाम एशिया और इंडिया बुक ऑफ रिकॉड्स में दर्ज है.

गढ़वाल राइफल्स के कर्नल रजनीश जोशी के नेतृत्व में पर्वतारोहियों की एक टीम ने माउंट कुन (7103 मीटर) और माउंट नन (7135 मीटर) की चोटी पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी. इस दौरान टीम ने माउंट कुन पर सबसे तेज़ चढ़ाई का रिकॉर्ड बनाया है, जिसे उन्होंने मात्र सात दिनों में पूरा किया. अगले साथल अगस्त में कर्नल जोशी एनसीसी के बच्चों के ग्रुप को लेकर एवरेस्ट फतह के अभियान का भी नेतृत्व करेंगे.

अपनी नियुक्ति पर कर्नल रजनीश जोशी ने कहा कि, हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान जैसे विश्वविख्यात संस्थान का नेतृत्व करना उनके लिए गर्व का विषय है.

यह संस्थान पर्वतारोहण और साहसिक खेलों को बढ़ावा देने का केंद्र रहा है और वह इस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

हिमालय पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना 4 नवंबर,1954 में भारत में पर्वतारोहण को क्रीड़ा के रूप में बढ़ावा देने हेतु की गई थी.

यह तेनसिंह नोर्के और एडमंड हिलेरी क्ली 1983 में माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई के उत्साह के परिणाम के रूप में सामने आया. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रयास से इसे दार्जीलिंग क्षेत्र में लगभग 2100 मीटर (6900 फीट) की ऊँचाई पर बनाया गया. तेनज़िंग नोर्के इसके प्रथम अध्यक्ष बने.

कर्नल रजनीश जोशी की नियुक्ति उत्तराखंड के लिए विशेष गर्व का क्षण है, जो हमेशा से साहसी पर्वतारोहियों और प्रशिक्षकों का केंद्र रहा है. उनके नेतृत्व में संस्थान नई ऊंचाइयों को छूने और साहसिक खेलों के प्रति युवाओं को प्रेरित करने के लिए तैयार है. (Colonel Rajneesh Joshi Mountaineering)

इसे भी पढ़ें : रूप दुर्गापाल: अल्मोड़ा की बेटी का भारतीय टेलीविजन स्टार बनने का सफर

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

8 hours ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 day ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

2 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

2 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago