हमारे सामान्य राष्ट्रीय जीवन और दिनचर्या की छोटी-छोटी बातों में नैतिकता का हौवा खड़ा करके अपने को चमकाने वालों ने इस देश का वातावरण प्रदूषित कर छोड़ा है. अब भ्रष्टाचार को ही लें. कौन नहीं जानता कि बिना इसके राष्ट्र रूपी वृक्ष का पत्ता तक नहीं हिल सकता. कोई फाइल अपनी जगह से एक इंच तक नहीं सरक सकती. मेज पर टांग पसारे हुए बाबू की नींद नहीं खुल सकती और थाने में ऊंघते हुए दरोगा जी हरकत में नहीं आ सकते.
पर कुछ सिरफिरे हैं संजीवनी के खिलाफ जिहाद की मुद्रा में वक्तव्य देते फिरते हैं. राष्ट्र जाए भाड़ में. राष्ट्रीय जीवन पंगु हो जाए तो उनकी बला से. मुर्दा चाहे इस घाट या उस घाट बंदे को कफ़न से मतलब. भ्रष्टाचार की सृजनात्मक क्षमता को प्रोत्साहित करते हुए हमें उसे तरक्की का सूत्र बनाना होगा. तभी उसे कफनखोरों की बुरी नजर से बचाया जा सकता है.
भ्रष्टाचार की कोई आचार संहिता न होने के कारण ही असंतोष फैला हुआ है. हमारे जिले के शिक्षा कार्यालय में एक बाबूअध्यापकों की नियुक्ति और स्थानांतरण के आदेश जारी करवाते हैं. हर ग्रेड की नियुक्ति और स्थानांतरण की दरें तय हैं. कोई मोलभाव वे नहीं करते. पूरी निष्ठा से आचार संहिता का पालन करते हैं. हमने उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी को कुछ कहते आज तक नहीं सुना. कई शिक्षक उनकी ईमानदारी का ही गुणगान करते सुने गए हैं.
दूसरी तरफ सार्वजनिक निर्माण विभाग के एक जूनियर इंजीनियर अपने भ्रष्ट आचरण के लिए पूरे इलाके में बदनाम हैं. ठेकेदार से 10 की जगह 15 प्रतिशत का हिस्सा वसूल कर के भी वे कोई न कोई आपत्ति लगा कर भुगतान रुकवा देंगे. ऐसे ही घटिया लोगों के कारण भ्रष्टाचार की छीछालेदर होती है.
भ्रष्टाचार की एक आचार संहिता बन जाए तू यह सारी घपलेबाजी दूर हो सकती है. एक अखिल भारतीय परिषद सारी दरें तय कर ले और फिर वही सर्वत्र लागू हो. मसलन दफ्तर के जंगल में से कोई कागज निकालने की कोई भी बाबू आचार संहिता का उल्लंघन करके 20 रुपये की मांग न करे. अब ऐसा न हो कि सिंचाई विभाग वाला दस के बीस वसूल रहा है और उधर समाज कल्याण विभाग का बाबू दो रुपये के लिए तरस रहा है.
अपना काम निकलवाने के दी गई इस निर्धारित राशि को घूस, मिठाई, चाय-पानी न कह कर सुविधा शुल्क कहा जाना चाहिए. किसी सुविधा के बदले कुछ निर्धारित शुल्क लिया जा रहा हो तो उसे भ्रष्टाचार कतई नहीं कहा जा सकता. घोषित दर से अधिक की वसूली अवश्य भ्रष्टाचार कही जाएगी.
राष्ट्र के सभी चिंतनशील व्यक्तियों से अनुरोध है की भ्रष्टाचार की आचार संहिता के निर्माण के लिए सम्मेलन, आंदोलन, धरना, जुलूस, बंद की संभावना पर गौर करें. राजनीतिक पार्टियों भी सुविधा शुल्क के मामले को आगामी आम चुनाव का मुद्दा भी बना सकती हैं.
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उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में रहने वाले बसंत कुमार भट्ट सत्तर और अस्सी के दशक में राष्ट्रीय समाचारपत्रों में ऋतुराज के उपनाम से लगातार रचनाएं करते थे. उन्होंने नैनीताल के प्रतिष्ठित विद्यालय बिड़ला विद्या मंदिर में कोई चार दशक तक हिन्दी अध्यापन किया. फिलहाल सेवानिवृत्त जीवन बिता रहे हैं.
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