छांगरू ग्राम शौका प्रदेश का नेपाल में स्थित ग्राम है जो महाकाली अंचल दार्चुला जिले के ब्यांस पंचायत में स्थित है. 1815 की नेपाल व ब्रिटिश भारत की सन्धि के अनुसार छांगरू तथा तिंकर ग्राम नेपाल में सम्मिलित हैं. इसी छांगरू से दो फर्लांग ऊपर चट्टान के बीच एक गुफा है. कहा जाता है कि छांगरू ग्रामवासी इस कन्दरा में आये और कुछ कारणों से उनकी मृत्यु हो गई इस गुफा के बारे में लोग अनजान थे. आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व शिकारियों को इस गुफा का पता चला. (Chhangru Cave of Death)
गुफा में कई बड़े-बड़े कक्ष हैं और उनमें मानव अस्थिपंजर, उनके वस्त्र, आभूषण एवम् आवश्यक घरेलू सामान सुरक्षित पड़े हैं. इसके बारे में धारणा है कि जो कोई उन वस्तुओं को उठाएगा उन्हें मृतात्मायें परेशान करती हैं. फलतः ये आभूषण आज तक सुरक्षित हैं. गुफा लगभग 12 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है. (Chhangru Cave of Death)
मानव अस्थिपंजरों के वस्त्र आभूषण, रहन-सहन का हर तरीका शौकाओं से मिलता-जुलता है. इतना अवश्य है कि लंबाई वर्तमान शौकाओं से अधिक रही हैं अतः ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि छांगरू राखू का समय काफी पुराना है. छांगरू ग्रामवासियों का इस गुफा में आने का मूल कारण निम्न किवदन्ती पर आधारित है –
उस काल में नेपाल (मार्मा) और शौकाओं के बीच वैवाहिक सम्बन्ध था. उस समय मार्मा और शौका क्षेत्र के बीच नम्पा चोटी से होकर आवागमन का मार्ग था. कहा जाता है कि छांगरू में गरम रोटी बाँध कर जायें तो मार्मा में गरम रोटी ही पहुँचती थी, अर्थात् काफी निकट है. शिकारियों के द्वारा विदित होता है कि अब भी मार्ग साफ़ हो सकता है परंतु चोटी में केवल पचास फीट बर्फीली चट्टान है.
छांगरू ग्राम की एक युवती नेपाल मार्मा में ब्याही हुई थी. भगवान ने उन्हें पुत्र रत्न दिया. अपना नवजात शिशु व पति के साथ मायके छांगरू गावँ मिलने आई पुत्री व दामाद मायके के काम में हाथ बंटाते थे. बेटी माताओं के साथ खेत में काम करती थी और दामाद पुरुषों के साथ काम करता था. एक दिन पुत्री अपने बच्चे को लेकर खेत में काम करने गयी थी. दामाद गावँ में पुरुषों के साथ मकान चिनाई का काम कर रहा था. अचानक दामाद की अंगुली में चोट आई और खून बहने लगा. एक पत्थर में खून लगते ही संयोगवश दीवाल काफी ऊँची हो गयी या अपने आप चीन गई. दीवाल का अपने आप चिन जाना उनके विनाश का पैगाम था. छांगरू के पुरुषों की मती बिगड़ गई, विनाश काले विपरीत बुद्धि कहावत चरितार्थ हुई. पुरुषों के मन में विचार आया कि दामाद के खून का एक बूँद लगते ही दीवाल अपने आप चिन गई है. यदि दामाद को काट कर खून छिटकाया जाय तो मकान का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाएगा. अतः पुत्री के खेत से आने से पहले ही किसी से विचार विमर्श किये बिना दामाद को मारकर उसका खून छिटकाया गया. परंतु पुत्री के विधवा होने के अतिरिक्त कोई नतीजा सामने नही आया. जब पुत्री खेत से शिशु के साथ घर आई तो सारा हाल विदित हुआ. जो कुछ समय पूर्व सुहागिन थी अब उसका सुहाग खुद मायके के हाथ लुट गया था. उसने उन्हें शिशु का गला घोट कर उसी दीवाल में पटक दिया जहाँ कुछ देर पहले उसके पिता के खून को शुभ समझ कर छिटकाया गया था और तीन शाप देती हुई उसी खून में विलीन हो जाती है.
एक दिन एक महिला धराट पीसने गई थी. अचानक धराट की चाल में फरक आ गया और वह धराट के नीचे पानी देखने गई उसके चेहरे में आटा सा लगा था. पानी के छीटे पड़ने से चेहरे में चेचक का दाग सा हो गया. उसी समय एक महिला कलेवा पहुँचाने गई उसे ऐसा लगा जैसे धराट की महिला को चेचक हो गया हो. उसे भ्रम हो गया. अतः उल्टे पाँव गाँव में कहने आई. सबको बेटी के शाप की याद आई और आशंका विश्वास में बदल गई. चेचक आग की तरह फ़ैल गया और सारा ग्राम बीमारी से बचने के लिए कन्दरा में छिपने गए.
भारतीय पौराणिक कथाओं में भी ऋषि मुनियों के शाप अटल व सत्य होते थे. फिर यह तो एक पतिव्रता महिला का शाप था. नम्पा का मार्ग बंद हो गया और बुलिन् सितला की लाली अब भी बढ़ती जा रही है जो गावँ वालों को अच्छी खेती करने में बाधक है.
इतनी शीत जलवायु में चेचक की बीमारी का फैलना आश्चर्यजनक है परंतु शाप की सार्थकता समझ कर ग्रामवासी भ्रम में पड़े. ऐसा भी हो सकता है कि कथाकार ने श्राप के परिणाम को सिद्ध करने के लिए घटना अपनी कल्पना शक्ति से जोड़ दी हो. सारा गावँ छांगरू छोड़ कर इस गुफा में आये. बाद में इन सबकी मृत्यु इसी कन्दरा में हो गयी. अनुमान है कि चेचक की बीमारी के भ्रम से या बीमारी से इन सबकी मृत्यु नहीं हुई होगी क्योंकि मृत शरीर ऐसे पड़े थे मानो कार्य करते-करते उनका जीवांत हुआ हो. हुक्का पीते हुए, बैठे हुए और एक औरत का जीवनान्त बच्चे को दूध पिलाते हुए हुआ था. इससे स्पष्ट है कि उनकी मृत्यु तत्काल और अचानक हुई थी. या तो उन्हें भारी सदमा पहुंचा या किसी विषैली गैस के फेलने से मरे. छांगरू गावँ को छोड़कर इस गुफा में शरण लेने का कारण भी चेचक की बीमारी का भय न होकर कुछ और हो सकता है. अनुमान है कि इस क्षेत्र में जुमला के राजा सीमापति का आतंक फैला हुआ था तो लोग जंगलों में जाकर छिपते या धन-दौलत को जमीन में गाढ़ते थे. ऐसे ही अवसर में उन्हें यह गुफा मिली. यह गुफा प्राकृतिक है, उपयुक्त है और सुरक्षित है इसी कारण यहाँ रहनी लगे होंगे. अंत में किसी ज्ञात कारण से इनकी मृत्यु हो गयी.
28 जून, 1966 में जब भूकंप का धक्का लगा उस समय पत्थर गिर जाने से गुफा का मुख्य द्वार बन्द हो गया है. फिर भी कुछ अस्थि पंजर व एक आध सामान बाहर गैलरी में पड़ा है.
जुमलीह्या का आतंक सत्रहवीं सदी से पूर्वाद्ध में रहा. यही समय छंगरू राखू का रहा होगा. श्री मोहनसिंह जी सेवक ग्राम नपलच्यो ने सामजिक आपत्तियां और अन्धविश्वासपूर्ण धारणाओं से मुकाबला कर यहाँ प्रवेश किया. वे वहां से लगभग बीस किलो तक अस्थिपंजर व खोपड़ी ले आये. आत्मायें परेशान करती है की धारणाएं समाप्त हुई. खेद का विषय यह है कि धनाभाव में वह उन अस्थिपंजरों को किसी मानव विज्ञान प्रयोगशाला तक नही पंहुचा सके. अंत में इन अस्थिपंजरों को श्री सेवक जी ने राजकीय जूनियर हाई स्कूल गुंजी को प्रदान किया. प्राकृतिक कन्दरा में 12 हजार फीट की ऊँचाई में स्थित यह गुफा अजंता ऐलौरा की भाँति दर्शनीय है.
सौ परिवारों का जीवनान्त हो जाने से छांगरू ग्रामवासियों में एक अन्धविश्वास फैला है कि जब छांगरु में परिवारों की संख्या सौ पहुँचेगी तो अनर्थ हो जाएगा. में बोरा, ऐतवाल, लाला तीन गोत्र के लोग रहते हैं. कुछ दशक वर्ष पूर्व तक तीनों गोत्रों में आपस में वैवाहिक सम्बन्ध था. जनसँख्या की वृद्धि रोकने के लिए तीनो गोत्रों में वैवाहिक सम्बन्ध निषिद्ध कर दिया गया. आज भाई-बहिन, एक ही गोत्र के समान हैं यद्यपि अन्धविश्वास की ये धारणायें शिक्षा के प्रचार से समाप्त हो गयी हैं परंतु प्रकृति जहाँ ऐसी चमत्कारी एवम् आश्चर्यजनक दृश्य उपस्थित करती है ये धारणायें आसानी से लुप्त नहीं हो सकती.
मूल रूप से गंगोलीहाट की रहने वाली सुमन जोशी फिलहाल नैनीताल में रहती हैं और कुमाऊँ विश्वविद्यालय से इतिहास से पीएचडी कर रही हैं. कविताएँ और लेख लिखने का, घूमने का और फोटोग्राफी का बहुत शौक है. उत्तराखंड के लोक जीवन और संस्कृति से पूरे देश को अवगत कराना चाहती हैं.
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Thanks for writing about our Chhangru Rakku. I guess there are several versions of the legend. The one I heard says it was the child rather than the husband who was hurt and later killed.
The inner chamber of the cave has been blocked for more than hundred years now (Charles Sherring’s book from 1906). So, one can only speculate what's inside.