शिवरात्रि के पर्व मे आस्था का अनोखा मंजर सामने आता है मुक्तेश्वर के चौली की जाली नामक पर्यटक स्थल पर, सैकड़ों की तादाद मे इस दिन शादीशुदा महिलाएं, जिन्हें तमाम कारणों के चलते संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाता, अपनी कामना को साथ ले चट्टान पर बने प्राकृतिक छिद्र को पार करती हैं, सुरक्षा के कोई इंतज़ाम न होते हुए भी महिलाएं आस्था से इसे पार कर जाती हैं. आस-पास के गांव सहित कई क्षेत्रों से तमाम लोग इस जगह के दर्शन करना नहीं भूलते. (Chauli Ki Jali Mukteshwar Uttarakhand)
नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय महिला भी बताती हैं कि आठ साल से कोई संतान नहीं थी. एक अन्य महिला के कहने पर शिव रात्रि के एक दिन पूर्व मुक्तेश्वर महादेव के मंदिर में छोटी सी पूजा अर्चना के बाद दूसरे दिन चौली की जाली गयी. यहां सच्चे मन से संतान प्राप्ति की कामना करते हुए छिद्र को पार किया और आज दो संतानो का सुख भोग रही हैं. उन्होंने ये भी बताया की उन्हें तो डॉक्टर ने भी कह दिया था कि कभी भी माँ का सुख न भोग पाने में अक्षम हैं. पर भोले बाबा की कृपा ने उन्हें एक नहीं दो-दो संतानों का सुख दिया.
ऐसी ही तमाम और महिलाएं हैं जो चौली की जाली की महिमा का वर्णन करना नहीं भूलती. प्रचलित धारणा के मुताबिक वे महिलाएं जो संतान उत्पत्ति नहीं कर सकती शिवरात्रि के दिन इस दिन यहां मौजूद चट्टान में बने छिद्र से हो कर गुजरती हैं. भोले के आशीर्वाद से निश्चित ही दंपत्ति को संतान की प्राप्ति होती है.
स्थानीय निवासी गणेश बोरा, मुक्तेश्वर मंदिर के पुजारी आनंद और एक पुस्तक ‘मुक्तेश्वर महामात्य’ की कहानियों पर जाएं तो पता चलता है की — जब सैम देवता अपने गणों के साथ हिमालय जा रहे थे तो मार्ग मे चौली की जाली की चट्टानें आ गयी. उधर शिवजी भी उस वक़्त चट्टान में धूनी रमाये बैठे थे यह देख सैम देवता ने भोलेनाथ से मार्ग देने का आग्रह किया परंतु भोलेनाथ तपस्या में लीन होने के कारण सैम देवता का आग्रह नहीं सुन सके. यह देख सैम देवता को क्रोध आ गया और अपने अस्त्र से चट्टान में प्रहार कर दिया जिससे एक बड़ा छिद्र हो गया. उसके पश्चात अपने गणों के साथ गंतव्य को रवाना हुए.
फिलहाल एक अन्य कहानी भी है जिसे बुजुर्ग शिक्षक और लेखक मोहन चन्द्र कबडवाल बताते हैं. महाभारत काल में जब पांडव वनगमन पर थे तब भीम अपनी गदा से समय व्यतीत करने के लिए शक्ति प्रदर्शन करते रहते थे. जब इन चट्टानों पर उन्होंने कुछ समय व्यतीत किया तो यहाँ भी उन्होंने अपनी शक्ति को परखा. इसी वजह से यह गोलाकार छिद्र चट्टान में उभर गया.
अल्मोड़ा कॉलेज के डॉ ललित चन्द्र जोशी के मुताबिक किस्से, कहानियों और जनश्रुतियों को अगर थोड़ा अलग रखें तो वायु अपरदन इस छिद्र का निर्माण प्रबल कारण हो सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में वायु का प्रबल दबाव है.
बहरहाल, कहानी जो भी हो पर क्षेत्र मे चौली की जाली का प्राचीन नाम चौथा जाली बताया जाता है. यह स्थान लोगों की गहन आस्था से जुड़ा है. यहां मौजूद भक्तों की भारी तादाद की वजह से इस दिन पुलिस को भी इस जगह पर कड़ी चौकसी करनी पड़ती है और इस छिद्र को पार करवाने मे मदद भी.
मंदिर निवासी स्वामी सच्चिदानन्द पुरी महाराज (लाल बाबा) पिछले कई वर्षों से यहाँ हैं. शिवरात्रि के दिन को ख़ास दिन बताते हुए बताते हैं वे कहते हैं कि मुक्तेश्वर स्थित चौली की जाली का यह छिद्र अनूठा है और इसमें कई दिव्य शक्तियों का निवास है. स्वयं शिवजी यहाँ बैठ घंटों तपस्या में लीन रहते थे. आज भी इन चट्टानों में अलौकिक शक्तियों का वास है.
सच्ची श्रद्धा और भक्ति का ही नतीजा है कि आज तक शिवरात्रि पर भारी भीड़ होने के बावजूद कोई हादसा होना तो दूर, छिद्र को पार करते वक़्त भी कोई हादसा नहीं हुआ. हर महिला, चाहे वो स्थानीय हो या बाहरी, आसानी से छिद्र को पार कर लेती है. बाबा जी का कहना है कि दिल में श्रद्धा है तो जरूर मन्नत पूर्ण होगी.
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हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.
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