Featured

चौकोड़ी जाए बिना कुमाऊँ की सुन्दरता को ठीक से समझा नहीं जा सकता

समुद्र की सतह से 2010 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौकोड़ी (Chaukori Kumaon Uttarakhand) कुमाऊँ के सुन्दरतम स्थानों में से एक है. यहाँ आकर आपको उस प्राकृतिक सौन्दर्य के बहुत समीप से दर्शन होते हैं जिस पर उत्तराखंड नाज करता है. बांज और देवदार और बुरांश के जंगलों से लदे इस स्थान से हिमालय की अद्भुत छटा देखने को मिलती है. यहाँ से पंचाचूली, नंदादेवी और नंदाकोट जैसी विशाल चोटियों के दर्शन होते हैं.

ब्रिटिश राज के समय में यहाँ चाय के बागान लगाए गए थे जिनमें से बहुत सारे अब भी बचे हुए हैं. इन बागानों को लगाने का श्रेय यहीं के रहने वाले विख्यात दानसिंह मालदार को भी जाता है जिनके बारे में आप पहले भी पढ़ चुके हैं.

पर्यटन और प्रकृति के जानकार कहते हैं कि यदि आपको चौकोड़ी में सूर्योदय के समय अहसास हो जाय कि दिन बहुत साफ़ रहने वाला है तो आपको इस स्थान को छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहिए. नीले आसमान की पृष्ठभूमि में चमकता हुआ हिमालय और हरे-भरे वनों से आच्छादित धरती आपसे अनुग्रह करते नजर आते हैं कि फुर्सत में चौकोड़ी में होने का आनंद उठाया जाय और बस घूमते रहा जाय.

फिलहाल जिस जगह एक ज़माने में दानसिंह मालदार का बँगला हुआ करता था आज उस जगह पर किन्हीं बाबा अड़गड़ानन्द का आश्रम चलता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि मालदार के परिवार वालों ने इसे दान कर दिया है. इसी आश्रम से एक कच्ची सड़क को पकड़ कर चलते रहा जाय तो पहले एक स्कूल मिलता है और उसके बाद एक खूब चौड़े मैदान पर बना बहुत छोटा सा मंदिर.

इस चौड़े मैदान से हिमालय की अविस्मरणीय छवि दिखाई देती है. कोई स्थानीय व्यक्ति आसपास हो तो वह आपको बता सकता है कि यह छोटा सा मंदिर चौकोड़ी बुबू का है. कुमाऊँ के सबसे बड़े देवता गोल्ल के अवतार माने जाने वाले चौकोड़ी बुबू बारह किलोमीटर लम्बे और इतने ही चौड़े चौकोड़ी के इलाके की सुरक्षा करते हैं. छोटे बच्चों को लगने वाली बीमारियों और पारिवारिक कलह-क्लेश का निदान भी इन्हीं के दरबार में आकर होता है.

इस मैदान से नीचे की तरफ विशालकाय चट्टानें हैं और नीचे के गाँवों को जाने वाला रास्ता. एक और पथरीला रास्ता सामने के गाँव उड्यारी को जाता है. छोटी मोटी ट्रेकिंग करने के शौकीनों को यह यात्रा अवश्य करनी चाहिये.

रहा सवाल कि चौकोड़ी कैसे पहुंचा जाय और कब वहां जाया जाय तो उसके लिए आपको इंटरनेट पर थोड़ा सा शोध करने की आवश्यकता पड़ेगी. फिलहाल यह समझ लीजिये कि चौकोड़ी बेरीनाग के नजदीक है और अल्मोड़ा से मुनस्यारी जाने की इच्छा रखने वालों को अपनी यात्रा को बीच में एक लघु विराम देना हो तो इससे अच्छा ठिकाना नहीं मिल सकता.

चौकोड़ी एक अलौकिक स्थान है जहां जाए बिना कुमाऊँ की सुन्दरता को ठीक से समझा नहीं जा सकता.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago