देवगाथाओं में जिक्र मिलता है कि भ्वलनाथ या भोलानाथ एक राजकुमार था. भोलानाथ चंदवंशीय राजा उदय चन्द का पुत्र था. साधू प्रकृति का होने के कारण यह जोगी हो गया था. एक राजनीतिक षड्यंत्र के तहत भोलानाथ के भाई ज्ञानचंद द्वारा उसकी हत्या करवा दी गयी थी.
इस षड्यंत्रकारी हत्या के बाद भोलानाथ की प्रेतात्मा बदला लेने के लिए ज्ञानचंद व उसके भाई-बधुओं को पीड़ित करने लगी. इसका पता चलने पर पीड़ितों ने भोलानाथ की पूजा-अर्चना शुरू कर दी. धीरे-धीरे प्रजा भी इन्सी पूजा करने लगी.
भोलानाथ भी सैम और हरू की तरह एक लोकप्रिय व मान्य देवता है. इन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है. सभी ख़ुशी के मौकों और पर्व-त्याहारों के मौके पर इनका स्मरण किया जाता है. रोट का प्रसाद चढ़ाकर भोलानाथ की पूजा की जाती है. इनका जागर भी लगाया जाता है, जिसे भ्वलनाथ ज्यूक जागर या भितरी जागर कहा जाता है.
इस सम्बन्ध में प्रचलित दंतकथा के अनुसार राजा उदयचंद की 2 रानियाँ हुआ करती थीं. दोनों रानियों के ही एक-एक पुत्र थे. इन दोनों पुत्रों में बड़े का नाम भोलानाथ और छोटे का ज्ञानचंद था. चंदवंशीय नामों की परंपरा को देखते हुए लगता है कि भोलानाथ का मूल नाम भी चन्द परक ही रहा होगा. नाथ परक नाम उनके संन्यास लेने के बाद ही रखा गया होगा.
भोलानाथ का भाई ज्ञानचंद धूर्त और छल-कपटी था. उसने छल-कपट से ही राज्य के उत्तराधिकारी भोलानाथ को सत्ता से अलग करने के षड्यंत्र किये. अपने ही भाई के षड्यंत्रों से क्षुब्ध होकर भोलानाथ ने राज-पाट त्यागकर जोग का रास्ता अपना लिया.
कहा जाता है कि भोलानाथ को एक स्त्री से प्रेम था. यह स्त्री भोलानाथ के साधू बनने के बाद स्वयं भी साध्वी बन गयी. दोनों एक साथ तीर्थाटन के लिए निकल पड़े.
तीर्थाटन के दौरान ही दोनों अल्मोड़ा के नैलपोखरी में रुके हुए थे. ज्ञानचंद को इनके प्रवास की भनक लग गई. उसे आशंका हुई कि भोलानाथ द्वारा राजपाट में हिस्सेदारी की मांग की जा सकती है. उसने एक बाड़िया (माली) को धन देकर दोनों की हत्या शीत्लादेवी मंदिर के पास के उनके आश्रम में करवा दी. उस समय भोलानाथ की प्रेमिका गर्भवती थी.
इस छल-कपट से की गयी हत्या के बाद इन तीनों की प्रेतआत्माएँ बाड़िया और ज्ञानचंद को सताने लगीं. राजा ज्ञानचंद ने ज्योतिषों की सलाह पर इन्हीं आत्माओं की संतुष्टि के लिए अल्मोड़ा में अष्ट भैरव, काल भैरव, बटुक भैरव, बाल भैरव, साहभैरव, शैभै रव, गड़ी भैरव, आनंद भैरव, की स्थापना करवाई गयी.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…