कला साहित्य

पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत – दूसरा और अंतिम हिस्सा

(पिछले हिस्से का लिंक - पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत) पाब्लो नेरुदा (12 जुलाई 1904 - 23 सितंबर 1973) की…

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तब संगतकार ही स्थाई को सँभाले रहता है : मंगलेश डबराल की कविता

संगतकार -मंगलेश डबराल मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती वह आवाज़ सुंदर कमजोर काँपती हुई थी…

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नदी, जंगल और बाउल की तान

उत्तर पूर्व : नदी, जंगल और बाउल की तान - जितेन्द्र भाटिया पश्चिम बंगाल का बागडोगरा हवाईअड्डा और इससे सटकर…

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स्पार्टाकस की प्रतिज्ञाओं के साथ जीता हूं : विद्रोही की कविता

मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी से -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं साइमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूं प्रकृति और मनुष्य मेरी…

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वे तुम्हारी नदी को मैदान बना जाएंगे

अमृतलाल वेगड़ और रजनीकांत के नर्मदा वृत्त के आगे यह नर्मदा की दुर्दशा की अगली कहानी है. शिरीष खरे की…

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कुछ कविता-टविता लिख दी तो हफ़्ते भर ख़ुद को प्यार किया

कुछ कद्दू चमकाए मैंने -वीरेन डंगवाल कुछ कद्दू चमकाए मैंने कुछ रास्तों को गुलज़ार किया कुछ कविता-टविता लिख दी तो…

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तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह ?

रामसिंह -वीरेन डंगवाल दो रात और तीन दिन का सफ़र तय करके छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह…

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हमारे ज़माने का एक अद्वितीय बड़ा कवि – वीरेन डंगवाल पर विष्णु खरे

वीरेन डंगवाल (5.8.1947,कीर्ति नगर,टिहरी गढ़वाल – 28.9.2015, बरेली,उ.प्र.) हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो…

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फ़ितूर सरीखा एक पक्का यक़ीन

आज वीरेन डंगवाल की चौथी पुण्यतिथि है. हिन्दी कविता और पत्रकारिता में अपनी ख़ास जगह रखने वाले इस महान व्यक्ति…

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तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली…

6 years ago