गरूड़ से बागेश्वर को आते वक्त मित्र दीपक परिहार ने एक बार बताया कि वो गोमती नदी के पार जो मैदान है न वहां एक रिटायर्ड कैप्टन, बच्चों को फौज में भर्ती होने की नि:शुल्क ट्रैनिंग दे रहे हैं. बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. अभी कई बच्चे फौज में भर्ती भी हो गए हैं.’
(Captain Narayan Singh Bageshwar)
मित्र की बात जेहन में कई दिनों तक कुलबुला रही थी कि आज के वक्त में ऐसा कौन है जो फ्री कोचिंग देने में लगा है. इस पर एक दिन उनका नंबर मांग लिया. हांलाकि फोन नहीं कर सका. इस बीच आनंदी एकेडमी में कार्यरत प्रिंसपल चंदन सिंह परिहारजी का ही फोन आ गया. बातचीत से मालूम हुवा कि वो भी कैप्टन साहब के सांथ निस्वार्थ भाव से जुटे पड़े हैं. दोएक दिन बाद सुबह जल्दी जागकर वहां जाने की ठानी और सांथी जगदीश उपाध्याय के सांथ वहां का रूख किया.
रूनीखेत पहुंचते ही झमाझम बारिश होने लगी तो गांव में एक घर में आधेक घंटे की शरण ली. हम रास्ता भटक न जाए इस बात को सोच चंदनजी हमें लिवाने आए थे. बारिश कम हुवी तो ग्राम पंचायत खोली के तोक घाटबगड़ रुनीखेत मैदान का नहर वाला रास्ता पकड़ा. कुछेक देर में हम वहां पहुंचे तो वहां बने एक सैड में कप्तान साहब, युवाओं को फौज के तौर-तरीके समझा रहे थे. बारिश थम गई थी तो सभी मैदान में आ गए. सोलह से बीसेक साल के तीसेक युवा मैदान में लाईन में लग गए.
कैप्टन नारायण सिंहजी से अभिवादन हुवा और वो अपने रूटीन में लग गए. एक लंबी सीटी उन्होंने बजाई तो सभी फिजिकल ट्रैनिंग के लिए तैंयार हो एक अनुशासित सिपाही की तरह लाईन में लग गए. शरीर को गर्म करने के लिए मैदान के छह चक्कर लगाने शुरू हुए. पहले चार चक्कर के बाद अंत के दो चक्कर तुफानी थे. खुद कैप्टन उनके सांथ दौड़ते हुए उन्हें और तेजी से दौड़ने को उत्साहित कर रहे थे. उसके बाद धीरे-धीरे हल्के योग अभ्यास से शुरू हुवी एक्साईज धीरे-धीरे कमांडो ट्रैनिंग में बदलते चली गई. बीच-बीच में युवाओं में जोश भरते हुए कैप्टन उनसे, ‘होगा कि नहीं होगा.’ पूछ रहे थे और समवेत सुर में एक ही आवाज गूंज उठती, ‘यस सर…’
अकसर कुछ सिद्वांतवादी फौंजियों से ही ये सुना था कि, फौजी कभी रिटायर नहीं होता है, चाहे वो ऑन ड्यूटी हो या ऑफ़ ड्यूटी. ये बात यहां सच लग रही थी. रिटायर होने के बाद भी नारायणजी निस्वार्थ भाव से अपनी ड्यूटी में जुटे पड़े थे. बाद में उनसे बात हुवी तो उन्होंने बताया कि वो 12 कुमाऊं में तैनात थे. रिटायरमेंट के वक्त वो सुबेदार मेजर के पद पर पहुंच चुके थे तो उन्हें सेना ने ऑनरी कैप्टन की उपाधी से नवाज दिया. घर आने पर उन्होंने देखा कि गांव के ज्यादातर युवा-बुजुर्ग नशे की गिरफ्त में हैं. इस पर उन्हें बहुत पीड़ा पहुंची तो उन्होंने युवाओं को देश सेवा का जज्बा भरने के लिए गांव के ही एक युवक को लेकर ग्राम पंचायत खोली के तोक घाटबगड़ रुनीखेत मैदान में नि:शुल्क ट्रैनिंग देनी शुरू कर दी. उनके जज्बे को देख कुछ ही महीनों में हल्द्वानी, सोमेश्वर, चौंरा, कपकोट, दफौट के दूरस्थ क्षेत्रों से युवा उनके पास ट्रैनिंग के लिए आने शुरू हो गए. दूर-दराज के युवकों ने तो यहां नि:शुल्क ट्रैनिंग के लिए रंवाईखाल, बागेश्वर समेत अन्य जगहों में अपने रिश्तेदारों के वहां शरण तक ले ली. ट्रैनिंग में जरूरत के सामानों के लिए कैप्टन की मदद के लिए कुछेक लोगों ने मदद की तो मैदान में बारिश से बचने के लिए जिला पंचायत उपाध्यक्ष नवीन परिहार ने भी अपने खर्चे पर डेढ़ लाख रुपये से वहां एक व्यायामशाला बना दी.
(Captain Narayan Singh Bageshwar)
बहरहाल! कैप्टन नारायण सिंह उन्यूणी की तीन साल की मेहनत से अभी तक 17 युवा स्पेशल फोर्स, लद्वाख स्कॉट, पैरा कंमाडो सहित अन्य बटालियनों में भर्ती हो चुके हैं. सुबह पांच से सात बजे तक फिजिकल ट्रैनिंग के सांथ ही रिटर्न टैस्ट की भी ट्रैनिंग युवाओं को दी जाती है. वक्त मिलने पर शाम को भी ट्रैनिंग दी जाती है. इसके सांथ ही हर रविवार को युवाओं की फिजिकल प्रोग्रस को आंका जाता है. इस मुहिम में कैप्टन नारायण सिंह अकेले नहीं हैं. उनके साथ आनंदी एकेडमी स्कूल के प्रिंसिपल चंदन सिंह परिहार भी जुड़े हैं, जो कि ट्रैनिंग ले रहे युवाओं का लेखा-जोखा रखने में मदद करते आ रहे हैं.
डेढ़ घंटे की ट्रैनिंग के बाद ग्राउंड में अब बॉलीबाल शुरू हो गया तो कैप्टन साहब ने उन्हें बताया कि, ‘फौज में गेम जीतने या हारने के लिए ही होते हैं न कि मंनोरंजन के लिए. ये एक तरह से बॉर्डर पर जंग की तरह ही है, जहां जीतना है या शहीद होना है.’
कैप्टन साहब से कुछेक पल बात करने का मौका मिला. वो काफी संवेदनशील से महसूस हुए. पहाड़ के प्रति उनकी सोच काफी अच्छी लगी. ‘जब मैं घर आया तो देखा कि पहाड़ की महिलाएं तो घर-खेती सब संभाल रही हैं और अन्य जन दिनभर ताश-कैरम में लगे रहते थे. शाम होते-होते फिर बच्चों से ही गिलास, पानी, नमकीन मंगाकर बोतल खुल जाने वाली हुवी. बच्चे भी इनकी संगत में सब सीख रहे ठैरे. तब मन में आया कि कुछ किया जाए तो एक बच्चे को लेकर ट्रैनिंग शुरू कर दी. कुछेक दिनों बाद उस बच्चे ने अपने दोस्तों को भी मना लिया तो सबको मजा आने लगा. अब बच्चे आ रहे हैं और अपना फिजिकली स्वस्थ हो नौकरी पर भी लग रहे हैं. मेरा तो पेंशन से गुजारा अच्छी तरह से हो जाता है, व्यसन कुछ हुवा ही नहीं. तो ये सब करके अच्छा लग रहा है. कई बच्चे भर्ती हो गए हैं. एक तो अभी ट्रैनिंग पूरी करके आया भी है. अरे! नरेन्द्र… यहां आओ तो…’ कह उन्होंने आवाज मारी तो दौड़ते हुए एक जवान सामने आ गया.
(Captain Narayan Singh Bageshwar)
17 कुमाऊं लद्वाख स्काउंट में भर्ती नरेन्द्र सिंह परिहार ट्रेनिंग पूरी करने के बाद छुट्टी आया हुवा है. घर में आराम करने के वजाय वो हर दिन अपने गुरू नारायण सिंह की पाठशाला में जाना जरूरी समझता है. बातचीत में उसने बताया कि यहां की ट्रैनिंग के बाद जब वो भर्ती हुवा तो उसे वहां कोई परेशानी ही नहीं हुवी. जो यहां होता था वही सब वहां सीखाया जाता था. ट्रैनिंग में बहुत मजा आया.
आज के वक्त में जब ज्यादातरों ने अपने हुनर को बिजनस बना लिया है वहीं कैप्टन नारायण सिंह रिटायर होने के बाद भी निस्वार्थ हो अपना कीमती वक्त युवा पीड़ी में देश सेवा का जज्बा भरने में जुटे पड़े हैं. देश सेवा के उनके जुनुन को युवा पीड़ी भी समझ उनके कदम से कदम मिला अपने भविष्य को संवारने में लगी है.
(Captain Narayan Singh Bageshwar)
बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.
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अच्छा लगा ये लेख पढ़कर .कैप्टन नारायण सिंह को हार्दिक धन्यवाद कि उन्होनें युवाओं को अपने अनुभव से मार्गदर्शन देकर उनकी नौकरी की राह आसान की और स्वस्थ शरीर को अभ्यास के माध्यम से कैसे बनाया जा सकता है इसका उदहारण पहाड़ की जनता के सामने रखा . नशे की और धकेली जा रही जनता के लिए ये बड़ी प्रेरणा का उदाहरण प्रस्तुत किया गया . लेखक को भी धन्यवाद .