आज हम अपने पहाड़ों की खूबसूरती, ताजी हवा, शुद्ध पानी, संपदा व संस्कृति का गुणगान करते नहीं थकते. यह सब हमें ऐसे ही नहीं मिला है. हमारे पहाड़ों को बचाने के लिए हमारे बड़बाज्यू, बूबू, आमा, काका, काकी, ईजा, बाज्यू, जैसे लोगों ने बहुत ही कठिन परिश्रम किया और पहाड़ों को समृद्ध बनाया.
(Bubu Memoir by Parwati Bhatt)
ऐसे ही कुछ लोगो में से एक थे हमारे बूबू. आज सुबह-सुबह जब मैं बूबू का कमरा साफ कर रही थी उसमें उनकी मूंगफली भरने वाली नाली, तंबाकू पीने वाली पीतल की लंबे डंडे वाली फर्शी, बाभ्यो घास से बनी हुई कुर्सी, कुछ जड़ी बूटियों की पोटली और भी छोटी-छोटी बहुत सारी चीजें रखी हुई थी जिन्हें देखकर मुझे बूबू की छोटी-छोटी बातें व किस्से याद आने लगे.
बूबू अपने शुरूआती दिनों में बर्मा ( म्यांमार) के सिपाही हुआ करते थे. बूबू के छोटे-छोटे तीन बच्चे थे. आमा तो पहले ही गुजर चुकी थी तो घर-परिवार और खेतों की जिम्मेदारी बूबू की ही थी. पिताजी बताते थे कि बूबू ने गांव से कुछ दूर हटकर, खेतों के पास अकेले ही घर बनाया था और अपने घर की सीढ़ी तोड़ दी थी ताकि कोई जंगली जानवर उनकी अनुपस्थिति में उनके बच्चों को खा न जाए.
बूबू के बगीचों में पहाड़ के हर मौसम के फल जैसे माल्टा, पपीता, नारंगी, खुमानी, आडू, आम, केले लगे रहते थे. बूबू की खेती-बाड़ी भी काफी अच्छी होती थी. बूबू दिनभर पोखरे बनाते, गाड़ से कुल्याट (छोटी नहर) बनाते और खेतों के कामों में लगे रहते थे. अपने घर की सुरक्षा के लिए घर के अंदर से पूरे खेतों तक रस्सियां बांध रखी थी उनमें बड़े-बड़े भैंसों के घाड़े-घंटी लटका रखे थे. रात को जंगली जानवरों से खेत की रखवाली के लिए पेड़ों के ऊपर मचान बनाकर वहीं रहते थे वहीं से वे गाने गाते और पहाड़ी दंत कथाएं गा-गा कर पूरे गांव वालों तक को सुनाते. अंदर से बच्चे भी घाड़े बजाते तो बूबू को तसल्ली रहती कि बच्चे अंदर सुरक्षित हैं.
बूबू बताते कि उन्हें मचान से भूत भी दिखते हैं और मचान से दिखने वाले भूतों के किस्से भी सुनाते. बूबू ने अपनी जगह का नाम सुजानी रखा था. उन्होंने गाय, बैल, बकरी चराने के लिए बड़े-बड़े पहाड़ों की झाड़ियों को साफ करके मॉगे (घास की पहाड़ियां) बना रखे थे जहां पर वह अपने गाय, बैल, बकरियों को चराते और जाड़ों के लिए सूखी घास का इंतजाम भी करते थे. मॉगों में जहां-जहां गोबर का थोपा पड़ा हुआ होता वहां पर कोट की जेब से निकालकर बीज डोब देते थे. थोड़े दिनों के बाद ही मॉगों में रीठे, हरड़, आंवला और खैर के जंगल हो गए. उन्हीं के लगाये रीठों से हम लोग सिर धोते, कपड़े धोते बाकी बचे रीठे शौके (भोटिया व्यापारी) लोग नमक के बदले ले जाते.
(Bubu Memoir by Parwati Bhatt)
बूबू बहुत किस्से कहानियां भी सुनाया करते थे. हर किस्से पर एक अलग कहानी लिखी जा सकती है. बूबू ज्यादातर बर्मा की ही बातें करते थे. बूबू के हाथ में हमेशा एक चमकती हुई घड़ी रहती थी बूबू कहते कि यह सोने की घड़ी है, हालांकि किसी को पास से नहीं दिखाते थे. बताते थे कि एक बार एक अंग्रेज अफसर ने बर्मा में पूछा यह घड़ी तेरे पास कैसे आई तूने कहीं चोरी तो नहीं की तो मैंने कहा यह मेरे मेहनत की है मैं पहाड़ों से हूं, पहाड़ बहुत समृद्ध होते हैं वहां मैंने आडू बेचे, खुमानी बेचे और भी बहुत सारे फल बेचे और बहुत मेहनत की. फिर यह घड़ी खरीदी. अंग्रेज अफसर ने भी जब पहाड़ों के बारे में पता लगाया तो उसने भी माना कि पहाड़ सच में समृद्ध होते हैं यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं होती. यहां फल-फूल,अनाज से लेकर जड़ी बूटियां, पेड़-पौधे, अन्न, सम्पदा सब कुछ होता है.
पहाड़ अपने आप में धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर लिए हुए हैं. परिश्रमी व्यक्ति के लिए यहां कुछ भी नामुमकिन नहीं है. बूबू बहुत ही परिश्रमी थे. बूबू कहते भी थे यदि प्यास लगते ही पानी मिल जाए, भूख लगते ही खाना और धूप लगते ही छांव तो फिर इंसान इंसान नहीं रहता.
एक बार की बात है बूबू खेत में काम कर रहे थे और उनके हाथ की एक उंगली में सांप ने काट लिया. बूबू को लगा जब तक वह वैद्य के पास जाएंगे या कोई जड़ी-बूटी ढूंढें, तब तक कहीं पूरे शरीर में जहर न फैल जाए. उन्हें अपने बच्चों का ख्याल आया और इसीलिए उन्होंने अपनी आंखें बंद की और अपने लकड़ी काटने वाले बासूले से अपनी उंगली काट दी. जब बूबू ने आंखें खोली तो देखा कि उन्होंने तो दूसरी उंगली काट दी है. बूबू ने फिर से हिम्मत दिखाई और फिर से आंखें बंद कर ली और फिर सही उंगली काटी. बूबू के एक हाथ की दो उंगलियां नहीं थी.
बूबू जब बुड्ढे हो गए थे तब भी उनके पास एक बड़ी पोटली हमेशा रहती थी जिसमें दवाई बनाने के लिए जड़ी-बूटी, ताबीज बनाने का सामान और भी न जाने क्या-क्या रखा रहता था. बूबू हमसे पोटली में से सामान निकालने को कहते थे तो हम देखते थे उसमें भोजपत्र, डासी ढूंगा पत्थर, धान के छिलके, झिरझिरैन और भी कई सारा ताबीज बनाने का सामान रखा रहता था.
(Bubu Memoir by Parwati Bhatt)
बूबू को जड़ी बूटियों का भी बहुत ज्ञान था उनकी जड़ी बूटियों में जैसे गुरजाबेल, जिसे गिलोय कहते हैं, पेट की दवाई के लिए इस्तेमाल करते थे. पुनर्नवा को वह खून बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते थे, नीनोनी सिर दर्द और बुखार के लिए इस्तेमाल होती थी, नानी चिलमढ़ी, किसी जहरीली चीज के काटने के इलाज के लिए काम आती थी, काली हल्दी सांप और बिच्छू के काटने पर काम आती थी, रतिगेड़ा जिसके छोटे-छोटे लाल दानें होते,आंख में कुछ चले जाने पर आंखो को साफ करने के काम आता था और भी पता नहीं क्या-क्या चीजें बूबू की पोटली में रहती थी. ताबीज, दवाइयों के बदले कभी किसी से एक भी पैसा नहीं लेते थे. बूबू अपनी पूरी जिंदगी भर दिन रात काम करते रहे और बहुत बूढ़े होने के बाद मरे.
बूबू के किस्से कभी खत्म नहीं होते थे. वह हमसे कहते थे मुझे 120 साल हो गए हैं और मेरे नए दांत आ गए जब दिखाने के लिए बोलते थे तो नहीं दिखाते थे. बूबू के ऐसे ही कई किस्से कहानियां है. ऐसे ही कितने बूबू हमारे पहाड़ों में हुए जिन्होंने पहाड़ों को संजो कर रखा, कितनी भी परेशानी आई पलायन को विकल्प नहीं बनाया जो कुछ भी किया अपनी जगह के लिए किया, कठिन परिश्रम व संघर्षों के बावजूद टिके रहे. इतने परिश्रमी थे कि वह चाहते तो कहीं बाहर जाकर बच्चों का पालन पोषण कर सकते थे पर उन्होंने अपने परिवार के साथ साथ अपनी मातृभूमि के प्रति भी जिम्मेदारी निभाई.
(Bubu Memoir by Parwati Bhatt)
–पार्वती भट्ट
मूलरूप से पिथौरागढ़ की रहने वाली पार्वती भट्ट का पहाड़ से गहरा लगाव है. पार्वती भट्ट की लिखी कहानियां उनके यूट्यूब चैनल पर भी सुनी जा सकती हैं.
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