उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा, पहाड़ की संस्कृति को संरक्षित रखने में हमेशा अग्रणी रही है. इस क्रम में पिछले पांच वर्षों से बृजेन्द्र लाल साह थियेटर सोसायटी बेहद शानदार काम कर रही है. पुरानी और नयी पीढ़ी मिलकर जिस सेतु का निर्माण यह संस्था कर रही है वह उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिये सबसे जरुरी प्रयास है.
(Brajendra Lal Shah Theatre Society)
बृजेन्द्र लाल साह थियेटर सोसायटी, उत्तराखंड के अग्रणी रंगकर्मी स्व. बृजेन्द्र लाल साह को समर्पित है. इसका उदेश्य कला के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाना है. संस्था का स्वप्न है युवाओं को प्रशिक्षित कर उत्तराखंड की संस्कृति को देश और दुनिया में अमिट पहचान दिलाना है.
यह संस्था स्व. मोहन उप्रेती और बृजेन्द्र लाल साह द्वारा संजोयी गई उत्तराखंड की लोककला और संस्कृति को आगे बढाने में निरन्तर कार्यरत है. संस्था द्वारा समय समय पर अपने कार्यक्रमों से इस ओर छाप छोड़ी जाती है.
(Brajendra Lal Shah Theatre Society)
पिछले दिनों अल्मोड़ा में संस्था द्वारा उदय शंकर संगीत एवं नृत्य अकादमी के सभागार में मंचित ‘पहाड़ के रंग’ नाटक की प्रस्तुति की गयी. पहाड़ की कथावस्तु पर आधारित इस नाटक के मंचन की कुछ तस्वीरें देखिये:
(Brajendra Lal Shah Theatre Society)
(सभी तस्वीरें काफल ट्री के साथी जयमित्र सिंह बिष्ट ने ली हैं )
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
इसे भी देखें: उत्तरांचल के लोकगीतों में नन्दा : बृजेन्द्र लाल शाह का एक महत्वपूर्ण लेख
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…