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यह सब जानना चाहिए ब्रह्मकमल के बारे में

58 तरह का ब्रह्मकमल

हालांकि इसका नाम ब्रह्मकमल (Brahmakamal) है पर यह तालों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन में होता है. ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है. ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प (State flower of Uttarakhand) है. और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं.

ब्रह्मककल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है. यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है. इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था. ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है.

ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है. भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है. उत्तराखंड में पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है.

फोटो: विनीता यशस्वी

ब्रह्मकमल के औषधीय गुण

इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं. इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है. यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है. गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है. इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है. इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है. साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है.

भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं. इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही इसकी महक को लम्बे समय तक महसूस किया जा सकता है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी भी छाने लगती है.

इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं. ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’. यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है. इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है. इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है. यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं. इसका जीवन 5-6 माह का होता है.

ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है. यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है. एक विश्वास है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है. ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है. दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है.

फोटो: विनीता यशस्वी

ब्रह्मकमल का पौराणिक उल्लेख

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था. राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है. किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1008 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था. तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी. तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा.

एक और किवदंती के अनुसार ब्रह्म कमल के कारण एक बार भीम का गर्व चूर हुआ था. कहते हैं जब द्रोपदी ने भीम से ब्रह्म कमल लाने की जिद की तो भीम बद्रिकाश्रम पहुंचे. लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया. हनुमान ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था. जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा. यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था. बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्मकमल लेकर गए.

क्हते हैं जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है. इस पुष्प को पवित्रता और शुभता का प्रतीक भी माना जाता है. जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है. उत्तराखंड में नंदा अष्टमी के दिन देवी नंदा पर पर चढ़े फूलों को प्रसाद रूप में बांटा जाता हैं.

फोटो: विनीता यशस्वी

खतरे में ब्रह्मकमल का अस्तित्व

ऊंचाइयों पर इस फूल के खिलते ही स्थानीय लोग बोरों में भर कर इसे मंदिरों को पहुंचाने लगते हैं. इस पुष्प की खरीद फरोख्त पर प्रतिबंध के बावजूद भी स्थानीय इस पुष्प को प्रति फूल बीस-पच्चीस रुपए में तीर्थयात्रियों को बेचकर कमाई भी करते रहते हैं. हिमालयी जनजातियों में किसी भी फसल को लगाने से पूर्व अपने इष्टदेव पर औषधीय गुणों से युक्त ब्रह्मकमल चढ़ाने की परम्परा है. वे बुग्यालों से ब्रह्मकमल तोड़ लाकर चढ़ाते थे. इसमें दो-तीन दिन का वक्त लग जाता था. इस बीच पर्याप्त मात्रा में उसके बीज जमीन में जम जाते थे, जिससे पुनः अगले वर्ष उतने ही ब्रह्मकमल खिल जाते थे.

अब वहां के लोगों में अधिकाधिक ब्रह्मकमल तोड़ने की होड़ सी लगी रहती है, जिससे पर्याप्त मात्रा में बीज न बन पाने से इस फूल की प्रजाति उजड़ती जा रही है. यहां पहुंचने वाले पर्यटकों ने भी इस फूल को नष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. वे अपने घरों में सजाने के लिए इसे अपने साथ तोड़ ले जाते हैं. शोधार्थी अपने रिसर्च के लिए भी ये फूल तोड़ते रहते हैं.

हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते इकोलोजिकल दवाब के कारण भी इस फूल के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. पर्वतीय क्षेत्र में जंगलों के अंधाधुध कटान ने अब ग्लेशियरों को सिकुड़ने पर मजबूर कर दिया है. कभी बर्फ से ढंकी रहने वाली चोटियां अब नंगी होती जा रही हैं जिस कारण इस पुष्प को खिलने का पर्याप्त मौसम नहीं मिल पा रहा है. मौसम में आयी इन गड़बड़ियों के कारण कई बारे इसे समय से पहले खिलते हुए भी देखा गया है.

 

विनीता यशस्वी

विनीता यशस्वी नैनीताल  में रहती हैं.  यात्रा और  फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.

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