ग्राम नुवाली पोस्ट चैनपुर, जिला पिथौरागढ के रहने वाले फुन राम इस समय 80 साल के है. फुन राम बचपन से ही अपने पिता देव राम के साथ दैन (पहाड़ी नगाड़ा) पर खाल चढ़ाने का काम करते आए हैं. उनके पिता ने यह काम अपने पिता से सीखा था. अनगिनत पीढ़ियों से यह हुनर उन्हें विरासत में मिलता आया है. साथ ही विरासत में मिला बदहाल जीवन और अंतहीन दुःख. उत्तराखण्ड के शिल्पकारों के उपेक्षित समुदाय और शिल्पकला का ही एक हिस्सा-किस्सा हैं फुन राम का जीवन और उनका लोक शिल्प. (Bhaav Raag Taal Natya Academy Pithoragarh)
फुन राम बताते हैं कि ‘हल के दायीं तरफ जोते जाने वाले बैल की खाल दैन में तथा बांई तरफ जोते जाने वाले बैल की खाल बौं पर लगाई जाती है.’ ‘मढ़ने से पहले खाल को दो से तीन दिन भिगोकर रखना पड़ता है ताकि खाल को आसानी से काटा जा सके.’ एक मुश्किल और कष्टसाध्य काम है खाल चढ़ाना.
फुन राम के तीन बेटे हैं. सबसे बड़े बेटे की शादी हो चुकी है और वह अपने परिवार के साथ उनसे अलग रहता है. फुन राम अपने दो मानसिक रूप से कमजोर बेटों के साथ अपने टूटे-फूटे घर में रहते थे. घर में बिजली भी नहीं है. जिन 3 प्राणियों के लिए दिन की रौशनी में भी जीना मुश्किल है उनकी स्याह रात कैसे गुजरती होगी इसकी कल्पना ही की जा सकती है. फुन राम के परिवार के पास न बीपीएल कार्ड है न ही उन्हें संस्कृति विभाग की तरफ से किसी तरह की पेंशन ही मिलती है. उनके बेटों को भी समाज कल्याण विभाग से किसी तरह का भत्ता या पेंशन नहीं मिलती.
दैन के खरीददार भी इतने नहीं होते कि साल भर की रोटी का गुजारा हो सके. कुल मिलाकर जीवन नारकीय है. फुन राम के साथ ही उनका पीढ़ियों का शिल्पकला का अनुभव भी नष्ट हो जाना है.
हाल के महीनों में फुन राम भाव राग ताल नाट्य अकादमी, पिथौरागढ़ के संपर्क में आये. अकादमी उत्तराखण्ड के लोक वाद्य कारीगरों पर एक डॉक्युमेंट्री फिल्म का निर्माण कर रही थी. इस डॉक्युमेंट्री के बारे में हमारी पोस्ट – उत्तराखण्ड के पारंपरिक लोकवाद्य कारीगरों पर बनी फिल्म
खैर, भाव राग ताल नाट्य अकादमी, पिथौरागढ़ के युवा कार्यकर्ताओं ने सिर्फ फिल्म बनाकर किनारा करना ठीक नहीं समझा. अकादमी ने एक अभियान चलाकर अपने शुभचिंतकों से चंदा इकट्ठा कर सबसे पहले फुन राम का घर रहने लायक बनवा दिया. मकान में पाल डलवाई गई और बाहर की सीढ़ी बनवाई गई. पूरे घर की लिपाई भी की गई.
घर में सभी साजो सामान दुरस्त करवाया. सभी के लिए कपड़े, राशन, बिस्तर आदि की भी व्यवस्था की. यह प्रक्रिया अभी चल रही है. अगले चरण में बिजली का कनेक्शन लगवाना व अन्य बुनियादी सुविधाओं का बंदोबस्त किया जाना है.
फुन राम के जीवन में हम उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति की बदहाली और समाज सरकार का रवैया साफ़ देख सकते हैं. फुन राम जैसों के साथ बहुत कुछ था जो लुप्त हो चुका है बचा-खुचा अभी होना है.
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हमारी संस्कृति ने अपने नाश का बीज अपने अंदर ही शदियों पहले रोपित कर दिया था। काष्ठ कला , वादन कला , गायन कला हो अथवा भवन निर्माण का शिल्प , खेती के औजारों के निर्माता , धातु व मृदा के बर्तनों के कर्मकार , हमारी आत्मघाती सोच ने अपने जीवन के आधारभूत अवश्यकताओं के सेवा प्रदाता इन शिल्पकारों के साथ शदियों तक अमर्यादित व्यवहार किया । आश्चर्य है कि यह जर्जर ढांचा इतने दिनों तक खड़ा कैसे रहा।