‘बेरीनाग शब्द ‘बेड़ीनाग’ का अपभ्रंश है. बेड़ीनाग का अर्थ लिपटे हुए नाग से है. समझा जाता है कि अंग्रेजी में ‘इ’ शब्द का उच्चारण न होने के कारण इसे बीईआरआईएनएजी (BERINAG) लिखा गया होगा जो बाद में हिंदी में ‘बेरीनाग’ पढ़ा गया. बेड़ीनाग मंदिर के प्रधान पुजारी शंकरदत्त पंत बताते हैं कि यहां 1962 तक सरकारी कामकाज में भी बेड़ीनाग शब्द का प्रयोग होता था. पोस्ट आफिस की मुहर भी बेड़ीनाग नाम की लगती थी जो बाद में हिंदी में ‘बेरीनाग’ पढ़ा गया.
(Berinag History Uttarakhand Kumaon)
बद्रीदत्त पांडे ने बेरीनाग के लिए बेड़ीनाग शब्द का प्रयोग किया है. इतिहासकार पदमश्री डा. शेखर पाठक कहते हैं कि बेरीनाग का पुराना नाम बेड़ीनाग ही था. बेड़ीनाग क्षेत्र में नागों के आठ मंदिर हैं. इसीलिए इसे अष्टनागानां मध्ये कहा गया है. अंग्रेजों के शासन तक बेड़ीनाग ही शब्द का ही प्रयोग होता था.
बेड़ीनाग क्षेत्र के विषय में तमाम धार्मिक मान्यताएं हैं. कहते हैं कि इस क्षेत्र में फैले अष्टकुली नागों का मूल पुरुष मूल नाग है. मूलनाग का मंदिर बागेश्वर जिले के शिखर की पहाड़ी में है. बेड़ीनाग का मंदिर डिग्री कालेज के पास है. क्षेत्र के नाग मंदिरों में नाग पंचमी के दिनों से दूध चढ़ाने की परंपरा है. इसके बाद से यहां विभिन्न पर्वों में मेले उत्सवों का दौर शुरू हो जाता है. लोगों का मानना है कि इलाके में प्रचुर संख्या में नाग होने के बाद भी यहां सांप के काटे का असर नहीं होता. यही कारण है कि यहां सांप को मारना भी वर्जित माना जाता है.
(Berinag History Uttarakhand Kumaon)
बेड़ीनाग मंदिर में ऋषि पंचमी का दिन और अनंत चतुर्दशी को रात्रि का परंपरागत मेला सदियों से आयोजित होता है. पूर्व में यह मेला मंदिर परिसर के आस-पास ही होता था. कालांतर में यह बेड़ीनाग के मुख्य बाजार में आयोजित होने लगा है. आज भी मेले के दिन आस-पास और दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु मंदिर में पूजा अर्चना करने अवश्य जाते हैं.
कुमाऊं के बेड़ीनाग क्षेत्र में नागों से जुड़ी जो मान्यताएं हैं अन्यत्र नहीं मिलती. इस क्षेत्र में पाताल भुवनेश्वर से ले कर नाकुरी, दानपुर पट्टियों तक अष्टकुली नागों के मंदिर फैले हैं. इतिहासकारों का मानना है कि किसी जमाने में नाग राजाओं का साम्राज्य समूचे हिमालय से सटे पर्वतीय भागों में फैला था तभी नाग जाति की गाथाएं, नागों के मंदिर और नागों से जुड़ी मान्यताएं आज भी कश्मीर से ले कर नेपाल हिमालय जक बिखरी पड़ी हैं. यही कारण है कि हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित नाग पूजा अन्य स्थानों की नाग पूजा से भिन्न है. यहां नागों की पौराणिक मूर्तियां सांप के बजाए मानव आकार की और पत्थर के लिंग के रूप में मौजूद हैं.
(Berinag History Uttarakhand Kumaon)
-सुधीर राठौर
बेरीनाग के रहने वाले सुधीर राठौर पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम हैं. अपनी बेबाक और ईमानदार रिपोर्टिंग के जरिए सुधीर राठौर युवा पत्रकारों के लिए भी आदर्श स्थापित करते हैं. सुधीर राठौर की यह रिपोर्ट दैनिक अख़बार अमर उजाला से साभार ली गयी है.
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…
सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…
राकेश ने बस स्टेशन पहुँच कर टिकट काउंटर से टिकट लिया, हालाँकि टिकट लेने में…
View Comments
सर,
शुरू में ''इ" लिखा है,
क्या फॉन्ट की गलती है ? इसे "ड़" होना चाहिए ?