Featured

उत्तराखण्ड के विकास का नाम जपने वालों ने एक बार अवनि का काम देखना चाहिए

उत्तराखण्ड के बेरीनाग के नजदीक त्रिपुरादेवी नामक एक छोटे से गाँव में कोई पच्चीस सालों से रह रहे दंपत्ति रजनीश और रश्मि ने अपने हौसले, जिद और अथक मेहनत से अवनि जैसी सफल संस्था को खड़ा किया है. (Avani Tripuradevi Berinag Uttarakhand)

हरियाणा से ताल्लुक रखने वाले रजनीश और दिल्ली की रश्मि की यह जोड़ी कुछ अलग करने की नीयत से पहाड़ आई और पहाड़ी मूल का न होने कारण आने वाली तमाम शुरुआती मुश्किलों के बाद भी उसने अपने सपने को साकार कर दिखाया.

रश्मि और रजनीश

रश्मि और रजनीश ने 1996 में अवनि की स्थापना की. तब यह राजस्थान के तिलोनिया में स्थित सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर की एक शाखा के रूप में शुरू की गयी थी. ग्रामीण विकास के क्षेत्र में किये गए अपने कार्य के लिए यह संस्था लम्बे समय से खासी मशहूर रही है. (Avani Tripuradevi Berinag Uttarakhand)

दोनों ने अपने अनुभव का इस्तेमाल शुरू में वैकल्पिक ऊर्जा (मुख्यतः सौर ऊर्जा) का प्रसार करने में किया. जब वे गाँव में बसे तो उन्होंने लोगों को इस बारे में बताना शुरू किया लेकिन लोगों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. रजनीश बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले अपने घर को पूरी तरह सौर-ऊर्जा आधारित बनाया. जब लोगों ने देखा कि यह सिस्टम वाकई काम करता है तब जाकर उन्होंने उनकी बातें सुनना शुरू किया. अवनि ने करीब चालीस सुदूर गाँवों के लोगों को सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना सिखाया. आज इलाके के अनेक युवा खुद ही सोलर पैनल और लाइट वगैरह असेम्बल करने का काम करना सीख चुके हैं.

फोटो: अशोक पाण्डे

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने देखा कि ऐसे वैकल्पिक प्रयोगों में निर्धनतम लोगों की अधिक दिलचस्पी नहीं जाग सकी क्योंकि वे इतने गरीब थे कि महीने के तीस रुपये भी देना उनके बस की बात नहीं थी. ऐसे में उन्हें महसूस हुआ कि जरूरत कुछ ऐसा करने की है जिससे इस निर्धनतम तबके की आय का कुछ जरिया बने.

अवनि जिन परिवारों के साथ काम कर रही थी उनमें एक शौका परिवार भी था. पिथौरागढ़ के सीमान्त इलाकों में रहने वाले शौका समुदाय के लोग शताब्दियों से तिब्बत से ऊन का व्यापार करते आये थे और ऊन-व्यवसाय और कताई-बुनाई में परम्परागत महारत रखते थे. इस से अवनि को विचार आया कि उनकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल कर टेक्सटाइल के क्षेत्र में कदम रखा जाय.

फोटो: अशोक पाण्डे

ऊनी वस्त्रों और कालीनों के निर्माण का काम शुरू हुआ जिसके लिए जरूरी था कि स्थानीय मिट्टी और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाया जाय. इसके लिए ऑर्गेनिक पद्धति से तैयार प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया. बाद के वर्षों में ऊन से आगे रेशम के वस्त्रों का उत्पादन शुरू किया गया.

आज रेशम के कीड़े का बाकायदा यहाँ उत्पादन होता है और जो रेशम यहाँ निकलता है वह प्राकृतिक मूगा रेशम होता है. अवनि ने करीब पचास गाँवों की एक हजार से ऊपर महिलाओं को इस कार्य से जोड़ा है और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता के रास्ते खोले हैं. आज कुमाऊँ में तैयार कच्चे माल यानी ऊन और रेशम से कुमाऊनी लोगों की मेहनत से जो उत्पाद तैयार होते हैं उनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छी खासी मांग हो चुकी है.

समकालीन फैशन को ध्यान में रखते हुए यहाँ तैयार किये जाने वाले वस्त्र, जिनमें शॉल, स्टोल, दुपट्टे, जैकेट, मफलर और टोपियाँ आदि हैं, बहुत शानदार क्वालिटी के होते हैं जिनकी खपत यूरोप-अमेरिका की तमाम जगहों पर होती है. अपने कार्य की गुणवत्ता के लिए अवनि को यूनेस्को की तरफ से सम्मानित भी किया जा चुका है.

फोटो: अशोक पाण्डे

उधर ऊर्जा के क्षेत्र में भी लगातार कार्य जारी है जिसमें चीड़ के सूखे पिरूल से बिजली बनाने से लेकर धुंआ-रहित चूल्हे बनाने जैसे कार्यों पर लगातार शोध जारी है. आज अवनि बच्चों के लिए आर्गेनिक क्रेयोन्स और ऊन से बने सुन्दर खिलौने भी बनाती है और अपने प्रसार के नए रास्तों की सतत खोज में भी लगी है.

ध्यान रहे कि न तो रश्मि कोई टेक्सटाइल एक्सपर्ट हैं न ही रजनीश कोई इलैक्ट्रिक इंजीनियर! रश्मि ने बीएससी किया है जबकि रजनीश ने एमबीए. हाँ समाज के समग्र विकास की दिशा में कैसे सोचा जाय इस विषय पर दोनों ने अपने अनुभव से पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च की डिग्री अवश्य हासिल कर दिखाई है.

इलाके के नन्हे बच्चों के लिए संस्था ने अपने परिसर में एक छोटा सा स्कूल भी खोल रखा है. फ्रांस की मशहूर चित्रकार-फिल्मनिर्मात्री कैथरीन कौन्फीनो ने अवनि में काम करने वाली एक महिला के जीवन को लेकर ‘अ चॉइस इन द हिमालायज’ जैसी बहुचर्चित-पुरुस्कृत फिल्म भी बनाई है.

फोटो: अशोक पाण्डे

ज़रा सोचिये यूरोप के किसी नामीगिरामी क्लब में एक फैशन शो हो रहा है जिसमें दुनिया की टॉप मॉडल्स हिस्सा ले रही हों और उन्होंने कुमाऊँ के एक छोटे से गाँव में बने वस्त्र पहन रखे हों. अवनि और उसने हितैषियों के कारनामों से यह सच हो चुका है. आज अवनि के बनाए वस्त्र पेरिस और वियेना जैसी जगहों में बिकते हैं जिनकी बिक्री से होने वाले लाभ में से सीधा हिस्सा उन्हें तैयार करने वाली महिलाओं और उनके परिवारों को पहुंचता है.

उत्तराखण्ड के विकास का नाम जपते रहने वालों ने एक बार त्रिपुरादेवी आकर अवनि का काम देखना चाहिए और सीख लेनी चाहिए. हमें अवनि जैसी और ढेरों संस्थाओं की जरूरत है. और हमें रश्मि और रजनीश जैसे और बहुत सारे लोग चाहिए!

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • विकास का श्रेय लेने की होड़ सरकारी संस्थाओं तथा सरकारों के बीच रहती है, इसलिए सीखने व सबक लेने का दायित्व भी उनका ही होना चाहिए। व्यक्ति विशेष के प्रयासों को अवश्य सराहा जाना चाहिए। जन समुदाय तक उक्त जानकारी पहुँचाने के लिए लेखक व काफल ट्री साधुवाद के हकदार हैं।

  • अवनि ने अथक व्यक्तिगत प्रयासों से जो सफलता पाई है वो हम उत्तराखंड हितैषियों को सीखने की आवश्यकता है ।

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago