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अल्मोड़े के अष्टावक्र हरीश चंद्र जोशी

उन्हें पहाड़ बहुत प्यारे थे. अल्मोड़े में तो उनकी जान बसती थी. यहीं अल्मोड़ा रह उन्होंने पहाड़ की सांस्कृतिक चेतना को विकसित करने का बीड़ा उठाया.बिना शोरगुल शांत मन से. संपर्कों के सूत्र बड़े गहरे थे. यारी दोस्ती अपने समय के नामी गिरामी लेखकों, कवियों, नाटककारों, साहित्यकारों से थी. चाहते तो कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली में अपनी डिग्री और योग्यता के साथ व्यापक संपर्क व अपने मित्रों के रहते बहुत नाम कमा लेते धन संपत्ति जुटा लेते.पर उनके ख्याल अलग थे.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

वह स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे. गाँधी के ग्राम स्वराज्य की संकल्पना उनके मन में रह रह कर हिलोरें मारती. वह कांग्रेस के बगावती तेवर वाले सिपाही भी रहे. जनचेतना को क्रांति के रस्ते ही उपजने का विचार उन्हें बेचैन किए रखता. कहीं न कहीं उनके भीतर सामाजिक और सांस्कृतिक द्वैधता को मिटाने में साहित्य और नाटक की प्रभावी भूमिका का योग भी हिलोरें लेता महसूस होता.

सबसे बड़ी बात तो यह कि उन्होंने समाज में लड़कियों स्त्रियों की बेहतर पढ़ाई लिखाई और उच्च शिक्षा, तकनीक और समाचार जगत में औरतों के बढ़ते योगदान को महसूस करते हुए जमीनी स्तर पर आवश्यक न्यूनतम प्रयास भी जारी रखे.उनकी बहुमुखी प्रतिभा को देखते अल्मोड़ा वासियों ने उन्हें नाम दिया “अष्टावक्र”.

अष्टावक्र यानी हरीश चंद्र जोशी जो पेशे से वकील रहे. पर यह पेशा उनके लिए किसी चारदीवारी की सीमा न खींच पाया. नहीं इससे किसी भी किसम की सौदेबाजी कर उन्होंने संपत्ति जुटाने की सोची. गरीब बेसहारा को न्याय की चौखट में हक दिला उन्होंने अपने ठेठ पहाड़ीपन को जिन्दा रखा.उनके पूर्वज अल्मोड़ा झिझाड़ के हुए. कोतवाल गाँव ताकुला. लिखाई पढ़ाई में अव्वल उनके दादा ग्रेजुएट थे और तब की राजधानी कलकत्ता के वायसराय के पर्सनल स्टॉफ में महत्वपूर्ण पदों पर रहे.

हरीश चंद्र जोशी जब पचीस साल के थे तो उनके पिता जी गुजर गए. मां उन्हें ले कर अल्मोड़ा आई. यहाँ उनके मामा श्री ए. डी. पंत थे जो अल्मोड़ा कॉलेज के प्रिंसिपल और संस्थापक के रूप में नामी व्यक्तित्व थे. बाहर से पढ़ लिख कर आए हरीश चंद्र जोशी को अल्मोड़ा ने ऐसा प्रभावित किया कि वह यहीं के हो कर रह गए. इसके लिए बाहर से मिले हर अवसर और ढेरों सुविधाओं को वह नकारते रहे और अपनी रुचियों और प्राथमिकताओं को अपने मूल से जोड़ते,शांत मन और प्रखर मेघा के रहते उन्होंने अपने घर को ऐसी कार्य स्थली बना डाला जो नये आधुनिक विचारों को पनपने की पूरी गुंजाइश तो रखता ही था साथ ही अपनी थात और लोक संस्कृति के अनुरक्षण में लगातार क्रियाशील बना, उत्प्रेरक भी.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

हरीश चंद्र जोशी कोलकत्ता के ला माट्रीनर कॉलेज से सीनियर कैंब्रिज की शिक्षा प्राप्त किए.फिर विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से उन्होंने स्नातक की उपाधि ली. यहाँ जब यूनियन बनी तो वह इसके पहले जनरल सेक्रेटरी बने. फिर वह इलाहाबाद आ गए और एल. एल. बी करने के बाद वकालत भी शुरू की.

उनकी पत्नी श्रीमती कमला जोशी उस दौर में बनारस रहते इंटर कर चुकीं थीं. गीत और संगीत के साथ भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों को जानने की उनमें गहरी ललक थी. उनके बड़े भाई मोहन बल्लभ पंत बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर थे. मंझले श्री गोविन्द बल्लभ पंत नासा में वैज्ञानिक थे जिन्हें बाद में बिरला ने रांची इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में राकेट व स्पेस इंजन विभाग का मुखिया बनाया. इनके शिष्य फिजिक्स के प्रोफेसर व बाद में मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी भी रहे. सबसे छोटे श्री गिरीश चंद्र पंत कीनिया में इंजीनियर रहे जहां ईदी अमीन की सत्ता स्थापित होने पर उन्हें भागना पड़ा और वह वापिस आए.

ज्ञान और उच्च शिक्षा के इस माहौल का कमला देवी पर गहरा असर पड़ा . वह बहुत शांत सुकोमल और शालीन थीं.मोहन उप्रेती की पत्नी नईमा खान से उनकी अभिन्न मित्रता रही. पूजा पाठ और धार्मिक कर्मकांडों में उनकी आस्था थी जबकि वकील हरीश चंद्र जोशी कर्मकांडी न थे. वह हिन्दू धर्म में पसरे अंधविश्वास और पाखंड का मुखर विरोध करते थे और ऐसी कुरीतियाँ देख उग्र भी हो जाते.मंदिरों में हो रही बलि का विरोध कर वह बलि करने वालों को चमकाते कि हौसला है तो बकरी नहीं बाघ की गर्दन पर खुकरी लगाने की दम रखो. कलकत्ता रहते वह लम्बे समय बौद्ध धर्म के अनुयायी भी रहे पर कोई भी कर्मकांड करना उनके स्वभाव के विरुद्ध था.

अंध विश्वास और कुरीतियों का मुंहतोड़ जवाब देने उन्होंने नाटक लिखे, लोक कलाकार संगठन से जुड़े. उनका एक नाटक गाँव का बेटा गाँधी जी के ग्राम स्वराज्य और स्वावलम्बन भावना पर आधारित था.स्वाधीनता संग्राम में उनकी सक्रिय भागीदारी रही. जेल भी हुई. बाद में स्टेट की पेंशन भी मिली.

नवीनता और आधुनिकीकरण से इलाके के हित और विकास की भावना का संचार और साथ ही विचार और कर्म के संतुलित समन्वय को बनाये बचाये रखने के लिए समर्पित हरीश चंद्र जोशी का घर बुद्धिजीवियों, कलाकारों, प्रशासकों और संगीत प्रेमियों का मुख्य आकर्षण स्थल बन गया . अल्मोड़ा आए कई इतिहासकार, लेखक, कवि उनकी मेजबानी में पहाड़ की संस्कृति और संस्कार से परिचित होते.अपनी रचनाओं में पहाड़ के सौंदर्य व समस्याओं का समावेश करते.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

वह खूब पढ़ते. वकालत के काम जल्दी निबटा स्वाध्याय में डूब जाते और रात ग्यारह -बारह बजे तक लिखते. उर्दू और अँग्रेजी दोनों भाषाओं में उन्हें महारत हासिल थी. उन्होंने वेदों का अँग्रेजी में अनुवाद तो किया ही कुरान के साथ इसके साम्य भी खोजे. अल्मोड़ा में लोक कलाकार संघ के नाटक लिखने के साथ ही भारत के स्वाधीनता संग्राम में अपनी जान पर खेल अनशन आंदोलन कर रहे जन को समर्पित कई गीत भी रचे.बटुकेश्वर दत्त उनके गहरे मित्र थे. अल्मोड़ा आ घर भी रहे.

 आजादी की अलख के नरम और गरम दोनों दलों से उनकी प्रीत थी जो उनकी रचनाओं में झलकती रही.1962 के भारत चीन युद्ध पर लिखे उनके गीत काफी लोकप्रिय रहे. उनके कई गीतों को मोहन उप्रेती का स्वर मिला.

उन्होंने नरेंद्र के उपनाम से भी कई नाटक लिखे तो आंचलिक गाथाओं का भी नाट्य रूपांतरण किया. इनमें भाना गंगनाथ काफी पसंद किया गया .

धीरे धीरे उनका घर सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के जमावड़े का अड्डा बन गया. देश विदेश से कई विधाओं में पारंगत कवि, रचनाकार, शिल्पी आते और घर गुलज़ार रहता. उनके यहाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी रहे. उनके रहन सहन की बड़ी यादें हैं. कितनी ही भारी बर्फबारी हो निराला हमेशा उसमें नंगे पाँव चलते. खाना खाने में भी वह अजब ही ढब के थे. खूब खाते. एक बार के नाश्ते में दस -बारह अंडे चट कर जाते. वकील साहिब की ईजा उनके खदुआ पन से चिढ़ कहती इस पगलैट को घर से निकाल. बाद में हरीश चंद्र जोशी जी के मित्र लक्ष्मी दत्त जोशी ने निराला के लिए अलग धर में रहने की व्यवस्था कर दी.

आजादी से पहले के दौर में जेल से छूटने के बाद फ्रंटियर के गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान भी अल्मोड़ा आए. उनके घर में आजादी की लहर को बढ़ाने की कई योजनाओं पर विचार विमर्श होता. खान अब्दुल गफ्फार हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती थे और अल्मोड़ा जैसी जगह इस एकता का जीता जागता उदाहरण थी जहां सब कौम किसी विपरीत परिस्थिति में भी एक हो कर रहतीं. बाद में कांडा में हुआ हिन्दू मुस्लिम दंगा पहाड़ के लिए भी एक नासूर बना. कइयों पर फौजदारी का केस चला जिनमें गोपाल सिंह धपोला भी थे. श्री मथुरा दत्त जोशी, राय साहिब लक्ष्मी दत्त पांडे सीनियर, श्री शोबन सिंह जीना, श्री गोपाल दत्त ओझा जैसे नामी वकीलों की मौजूदगी में हरीश चंद्र जोशी ने ये केस लड़ा और अपनी प्रभावी जिरह से केस जीते.

आंदोलन के दौर में कई नेता व पार्टी कार्यकर्त्ता भूमिगत हो गए. इनमें लाल बहादुर शास्त्री भी थे जो अल्मोड़ा आ गए थे. पोखर खाली के एक छोटे से कमरे में उनके रहने की व्यवस्था की गई.जहां लेटने के लिए बस एक छोटा सा तखत ही आ पाता था.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

संगीत और सिनेमा से वकील जोशी जी को खूब लगाव था. उनके घर लम्बे समय तक गायन और अद्भुत पर सीमित अभिनय से लोगों के दिलों में राज करने वाली जोहरा सहगल भी आयीं.अभिनेत्री वन्माला उनकी क्लास फेलो रह चुकी थी. जब उसकी पहली फ़िल्म रिलीज़ हुई तो प्रीमियर का पास जोशी जी के पास आया. वहीं उदय शंकर लम्बे समय अल्मोड़ा रहे जिनकी नृत्य अकादमी की कई समस्याओं को उन्होंने सुलझाया. अपने सांस्कृतिक परिवेश के साथ वह राजनीति में भी सक्रिय रहे. अपनी सरलता के साथ निर्णयों की स्पष्टता से वह कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे. मोरारजी देसाई और शांति भाई देसाई के साथ उनकी मिलभेंट और पत्र व्यवहार होता रहता था.

कामरेड पी सी जोशी से भी गहरे सम्बन्ध थे वह रिश्तेदारी में भी आते थे. इप्टा ग्रुप के कई साथी हरीश चंद्र जोशी वकील के अभिन्न मित्र थे. और अक्सर अल्मोड़ा उनका आगमन होता रहता था. प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी और श्रीमती कल्पना साहनी भी उनके घर की बैठकों में रहे. पहाड़ और विशेषकर अल्मोड़ा में कसार देवी से बिनसर का इलाका उन्हें खूब रुचा.मशहूर अभिनेता बलराज साहनी भी दमयंती के साथ आए और पिलखा में एक ट्रस्ट की स्थापना की जिसके लिए अल्मोड़ा के जाने माने वैद्य हेमंत कुमार पांडे ने अपना बगीचा दान कर दिया.प्रशासन में वरिष्ठ पदों पर रहे व राज्यपाल रहे बद्री दत्त पांडे सेवा निवृति के बाद अल्मोड़ा ही रहे. उत्तराखंड की सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने के उद्देश्य से उन्होंने उत्तराखंड सेवा निधि की स्थापना की जिसको संचालित करने की जिम्मेदारी उनके विदेश में प्रशिक्षित पुत्र डॉ ललित पांडे ने संभाली और उत्तराखंड पर्यावरण शिक्षा केंद्र के रूप में विस्तार दिया. सेवानिधि में महिलाओं द्वारा किए स्वावलम्बन कार्यक्रमों की सोच में वकील हरीश चंद्र जोशी की प्रभावी भूमिका रही.

जोशी जी की बहिन लीला होल्कर विश्व विद्यालय में प्रोफेसर रहीं. स्वाधीनता संग्राम में जेल भी गईं और खादी खददर की प्रबल समर्थक रहीं. उनका विवाह कांग्रेस के तत्कालीन जनरल सेक्रेटरी श्री शर्मा से हुआ. तो बड़ी बेटी मंजुला ने होलकर विश्वविद्यालय से अँग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधि ली. मंजुला के पति भुवन किशन मैकेनिकल इंजीनियर थे तो ससुर नैनीताल के धाकड़ वकील दया किशन पांडे  जो प्रारम्भ में कम्युनिस्ट रहे. उन्होंने ब्रिटिश राज में जेल काटी थी.वह तब के मुख्य मंत्री पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के विरुद्ध रहते. आजादी के बाद हिमाचल की तर्ज पर पृथक उत्तराखंड राज्य दिए जाने की उन्होंने प्रभावी पहल की थी. नैनीताल में नयाल जी ने पृथक उत्तराखंड राज्य का मसविदा ही तैयार कर डाला.तत्कालीन सांसद के सी पंत से भी उनके वैचारिक मतभेद रहे.पिथौरागढ़ में हुए गोली कांड में उन्होंने सरकार की खिलाफत की. और पिथौरागढ़ से ही चुनाव भी जीते. उन्हें कुमाऊं का शेर कहा गया.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

हरीश चंद्र जोशी जी की दूसरी बेटी चंद्र इतिहास में ऍम ए थीं. उनके ससुर स्वाधीनता संग्राम सेनानी व काशीपुर से कांग्रेस के ऍम एल ए श्री राम दत्त पंत थे. तीसरी बेटी कल्पना रुसी भाषा में स्नातकोत्तर उपाधि ले ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहीं. उनके पास परसियन और फ्रेंच की भी उपाधियां रहीं. कल्पना के पति डॉ हेम पंत एंथ्रोपोलॉजी के विशेषज्ञ थे तो ससुर डॉ जमुना बल्लभ पंत लखनऊ में ऍम बी बी एस डॉक्टर थे साथ ही आयुर्वेद के पंडित भी.उसका कल्पना नाम राहुल सांस्कृतायन ने रखा था जो नामकरण उत्सव में मौजूद थे.

महिलाओं को शिक्षित कर संस्कार युक्त बना विकास की सबल भागीदार बनाने की पहल उन्होंने अपने घर से प्रारम्भ की. उनकी मां और पत्नी शिक्षित होने के साथ सामाजिक सरोकारों में बढ़ चढ़ कर भागीदारी करतीं. पत्नी का मीरा बहिन के साथ काफी उठना बैठना रहा. पड़ोस में ही लेखिका शिवानी का निवास था जहां उनकी माता के साथ बंगाली में भी संवाद होते.

अपने समय के नामी साहित्यकारों से हरीश चंद्र जोशी जी का गहन संपर्क रहा. कवि सुमित्रा नंदन पंत को वह सेंदा कहते. फिर चाहे निराला हों, यशपाल या राहुल अल्मोड़ा आने पर उनकी बैठक जरूर होती. साहित्य से अनुराग उन्हें बचपन से ही लग चुका था. युवा होने पर समवयस्क साहित्यकारों के संसर्ग ने उनकी सोच को नई दिशा दी.

 पचास के दशक में गर्मियों में उपेंद्रनाथ अश्क़ भी अल्मोड़ा आए. सुमित्रा नंदन पंत के निमंत्रण पर वह अल्मोड़ा के देवदार होटल में टिके.तब यशपाल भी वहीं डाक बंगले में रह रहे थे. यशपाल के साथ उनकी पत्नी कौशल्या भी अल्मोड़ा रहीं.दुर्गा भाभी भी थीं जो क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की पत्नी थीं. आजादी की लड़ाई में उन्होंने महिलाओं को एकजुट किया और अंग्रेजों की दमन नीति का पुरजोर विरोध किया. उपेंद्र नाथ अश्क़ और यशपाल के मित्रों में देवदत्त पंत वकील, धर्मानंद और गणेश के साथ हरीश चंद्र जोशी मुख्य थे. अश्क़, यशपाल, प्रभाकर माचवे और राहुल के साथ घर में खूब विचार विमर्श होता. सारी व्यवस्था वकील साहिब सँभालते.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

राहुल अपनी कुमाऊं यात्रा में सबसे पहले कत्यूर संस्कृति को समझना चाहते थे. हरीश चंद्र जोशी उन्हें कटारमल व कत्यूर बैजनाथ तक ले गए. राहुल के साथ प्रभाकर माचवे और यशपाल भी साथ थे.

हरीश चंद्र जोशी वकील संरचनात्मक सुधारों के पक्षधर थे. वह पहाड़ की खेती, बागवानी, पशुपालन में बस ऐसा सुधार चाहते थे जिसके इनपुट यहीं मौजूद हों. उन्हें मिरतोला में स्वामी माधवाशीष का साहचर्य पसंद था जो देसी बीजों और देसी तरीकों में मामूली सुधार कर बेहतर और कारगर तरीकों को पहाड़ के आम किसान के आगे रख सके. साथ ही पहाड़ की धारक क्षमता को बनाये रखने के लिए जनसंख्या नियंत्रण और उपज को बढ़ाने के उपायों का उन्होंने समर्थन किया. पंतनगर के कृषि वैज्ञानिक डॉ शंकरलाल साह से उनकी खूब दोस्ती थी जिन्होंने पहाड़ में जलागम विकास की अवधारणा रखी.

उनकी बहुविध प्रतिभा को देख अल्मोड़ा वासियों ने उन्हें नाम दिया “अष्टावक्र “जो दुर्बल दीन हीन पहाड़ियों को न्यायालय से सही न्याय दिलाता और स्वावलम्बन के लिए मददगार भी बने रहता.
(Ashtavakr Harish Chandra Joshi)

प्रोफेसर मृगेश पाण्डे

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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