Featured

दिलीप कुमार बोले – आशा परी बहुत नाम कमाएगी

गुज़रे दिनों की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख की मां का नाम सलमा था, सलमा इब्राहीम लाखड़ावाला. बच्चूभाई मोतीलाल पारेख से शादी करके वो सुधा हो गयी थी. बहुत हंगामा हुआ था दोनों के परिवार में. लेकिन मोहब्बत किसी भी किस्म की ऊंच-नीच को नहीं मानती.

मज़हब की दीवारें भी कोई मायने नहीं रखतीं. ज़बरदस्त विरोध के बावजूद दोनों ने कोर्ट में विवाह किया. बच्चूभाई को परिवार और व्यापार से बेदखल कर दिया गया.

उन दिनों गांधी जी ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन छेड़ रखा था. आशा की मां सलमा आज़ादी की दीवानी थी. एक बार जुलूस को पुलिस ने रोक लिया. लेकिन आज़ादी के मतवाले न माने. तब धर-पकड़ हुई. सलमा गिरफ़्तार होते होते बचीं. उस समय आशा उनके पेट में थी.

यदि वो गिरफ्तार हो जातीं तो आशा का जन्म जेल में हुआ होता. कुछ दिन बाद आशा का जन्म हुआ. वो 02 अक्टूबर 1942 का दिन था. महात्मा गांधी का जन्म दिन.

आशा की नानी अस्मा ने बच्ची का नाम ज़ुलेखा रखने की सलाह दी. लेकिन पंडितों ने कुंडली में नाम का पहला अक्षर निकाला – क या ग. तय हुआ कि बच्ची का नाम कृष्णा रखा जाए. किसी ने सुझाव दिया कृष्णा नहीं गंगूबाई ठीक होगा. जितने मुंह उतने नाम. आख़िरी फैसला मां-बाप पर छोड़ दिया गया. उन्होंने नाम दिया आशा.

आशा बड़ी हुई. फिल्मालय के शशधर मुख़र्जी ने पहला ब्रेक दिया – दिल देके देखो. दिलीप कुमार के मित्र थे शशधर. एक दिन दिलीप कुमार सेट पर आये. उन्हें आशा बहुत अच्छी लगी. जैसे कोई परी उतर आई हो आसमान से. शशधर ने बताया कि ये फ़िल्म की नयी हीरोइन है – आशा.

दिलीप कुमार बोले – आशा परी. बहुत नाम कमाएगी.

जाने क्यों शशधर नहीं माने. उन्होंने सोचा. मज़ाक किया है युसूफ ने. अगर शशधर गंभीर हो गए होते तो आशा का नाम आशा परी होता लेकिन नियति में उसे आशा पारेख के नाम से ही मशहूर होना लिखा था.

आशा पारेख ने नासिर हुसैन की फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. दोनों ने ‘तीसरी मंजिल’ और ‘कारवां’ समेत सात फिल्मों में साथ काम किया है.

बाद में 1992 में उन्हें  द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया. आशा पारेख  1959 से 1973 के मध्य सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों  में से एक थीं .अभिनेत्री होने के साथ निर्माता और निर्देशक भी हैं. उनका हमेशा ही फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा खासा दखल रहा.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

6 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago