Featured

आसन नदी और उससे जुड़ी पौराणिक मान्यतायें

देहरादून में शिवालिक पहाड़ी की उत्तरी ढलान पर क्लेमेन्टाउन से पश्चिम दिशा में एक गांव है जिसका नाम चन्द्रबनी है. चन्द्रबनी एक ऐसा प्राचीन स्थान है जिसका जिक्र पौराणिक कहानी कथाओं में मिल जाता हैं. यहां चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के साथ गोतम कुण्ड भी है. कुण्ड में जमीन के नीचे पानी का स्रोत है जिसके पानी से कुण्ड भरा रहता है. पौराणिक कथाओं में इस क्षेत्र को चन्द्र बन कहा गया है.
(Asan River Dehradun)

एक पौराणिक कहानी है कि सतयुग में गौतम ऋषि ने सिद्ध पर्वत के चन्द्रबन नामक घनघोर जंगल में तपस्या हेतु अपना आश्रम बनाया था. वे यहां से रोज प्रातः मुर्गे की बांग सुनकर स्नान हेतु गंगा नदी में जाया करते थे. अहिल्या सौन्दर्य से परिपूर्ण एक रूपमती स्त्री थी जो गौतम ऋषि की पत्नी थी. देवताओं के राजा इन्द्र ने जब अहिल्या के रूप व सौन्दर्य के विषय में जाना तो इन्द्र कामवासना के अभिभूत होकर ऋषि पत्नी के साथ सहवास की योजना बनायी. इस छल योजना में उसने चन्द्रमा की सहायता ली. चन्द्रमा ने योजना के अनुरूप आधी रात के बाद मुर्गे की तरह बांग दी जिसे सुनकर ऋषि गौतम रात में ही गंगा स्नान को चल दिये. मौका देख इन्द्र ने गौतम ऋषि का वेश धारण किया और ऋषि की कुटिया में चले गये. इसके बाद की कहानी तो आपको मालूम ही होगी.

खैर, क्रोधित ऋषि ने अहिल्या सहित चन्द्रमा को भी शाप दे दिया. चन्द्रमा ने शाप मुक्ति के लिये इस स्थान पर शिव की तपस्या की. शिव चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर यहां आये और चन्द्रमा को शापमुक्त करते हुये अपनी जटा में धारण कर लिया. तब से वे चन्द्रेश्वर कहलाये. अहिल्या को तो अगले द्वापर युग में राम की ठोकर खाकर शाप मुक्त होना था पर चन्द्रमा शाप मुक्त हो गये. अंजना गौतम ऋषि की पुत्री थी. अंजना भी शापित थी जो शाप मुक्ति के लिये यहां कठोर तपस्या कर रही थी. इसी तप और शाप के परिणाम स्वरूप नारद मुनि की सहायता से शिव तेज को धारण किया तथा कुंआरी होते हुये भी पवन पुत्र हनुमान को जन्म दिया.

गंगा माता ने अपने भक्त गौतम ऋषि से प्रसन्न होकर बैशाखी के दिन स्वयं यहां उत्पन्न हो गई और जलधारा बन कर फूट पड़ी. यहां कुण्ड में स्नान करना गंगा में स्नान करने के समान माना जाता है इसे भी मोक्षदायनी माना गया. इन पौराणिक कहानियों के पीछे क्या भाव है क्या तात्पर्य है इसका विश्लेषण तो पाठक करें पर मेरा इन कहानियों को बताने के पीछे मकसद इतना ही है कि यहां आज चन्द्रेश्वर का मंदिर भी गौतम ऋषि का कुण्ड भी और अंजनी माता का मंदिर भी है.
(Asan River Dehradun)

एक सवाल मेरे मष्तिष्क में बराबर उठता है कि ऋषि ने मुख्य अपराधी इन्द्र को छोड़कर अपनी स्त्री को दोषी मानते हुये क्यों दण्डित किया और दण्ड से मुक्ति भी पुरूषोत्तम की ठोकर से. शायद इसलिये कि इन्द्र देवताओं के राजा थे और यही मानते हुये नरों का राजा तो आज भी राजा हैं. जो भी हो पर भूगर्भीय दृष्टि से यह स्थान अपने आप में विशिष्ट है.

आज तो इस क्षेत्र में भी गंदगी का साम्राज्य है और अनियोजित बस्तियों के बसने से इसकी खूबसूरती खत्म सी हो गई है. बीस साल पहले यह क्षेत्र शमशान निकट होने के बावजूद काफी सुंदर और अपने कुछ प्राकृतिक स्वरूप में था. यहां भूजल के कई स्रोत हैं जहां से जल धारायें निकल कर एक नदी का स्वरूप धारण करती है जो आज नाले की तरह दिखाई देती है. यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई यमुना में जा मिलती है. इस नदी का नाम “आसन” नदी है.
(Asan River Dehradun)

आसन नदी भूमिगत जल के स्रोतों (जिसे स्थानीय बोली में ओगल भी कहा जाता है) से अपनी यात्रा प्रारंभ कर पश्चिम दिशा की ओर जाती हुई बढ़ोंवाला से उत्तराभिमुखी हो जाती है. यहां से आसन नदी दक्षिण से उत्तर की तरफ बहती हुई देखी जा सकती है. दोंक्वाला के नजदीक  केशोवाला से यह पुनः पश्चिम की तरफ रूख करती है. आगे यह मसूरी भदराज की पहाड़ियों और शिवालिक की पहाड़ियों से निकलने वाली कई छोटी बड़ी नदियों को अपने में समाहित करती हुई अपनी यात्रा जारी रखती है.

मजेदार बात यह है कि तमसा या टोंस नदी जो इससे बड़ी है इसमें समाहित होकर अपने अस्तित्व को आसन में विलीन कर देती है. इस तरह भूमि के गर्भ से शुरू होकर छोटी सी आसन नदी हिमालय से आने वाली यमुना नदी से पोंटा साहिब के पास मिलने तक अपना वजूद और नाम को बनाये रखती है. आसन बैराज पक्षी विहार इसी नदी पर है.
(Asan River Dehradun)

विजय भट्ट

देहरादून के रहने वाले विजय भट्ट सामजिक कार्यों से जुड़े हैं. विजय ज्ञान और विज्ञान के माध्यम से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति सचेत करते हैं.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें :
देहरादून के घंटाघर का रोचक इतिहास
उत्तराखंड की पहली जल विद्युत परियोजना : ग्लोगी जल-विद्युत परियोजना
धुर परवादून की खूबसूरत जाखन नहर
देहरादून की पलटन बाज़ार का इतिहास
दून घाटी में साल के वन और उनमें विराजमान चार सिद्ध

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

5 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago

कहानी : फर्क

राकेश ने बस स्टेशन पहुँच कर टिकट काउंटर से टिकट लिया, हालाँकि टिकट लेने में…

1 week ago

उत्तराखंड: योग की राजधानी

योग की भूमि उत्तराखंड, तपस्या से भरा राज्य जिसे सचमुच देवताओं की भूमि कहा जाता…

2 weeks ago

मेरे मोहल्ले की औरतें

मेरे मोहल्ले की औरतें, जो एक दूसरे से काफी अलग है. अलग स्वभाव, कद-भी  एकदम…

2 weeks ago