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कुमाऊं के इतिहास का एक और विस्मृत पृष्ठ

नीलू कठायत

1410 का साल भारत में तुगलक साम्राज्य उत्कर्षा की चरम सीमा में पहुंचकर पत्नोन्मुख हो चुका था. फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु हो चुकी थी. विश्व विजेता तैमूर लंग की तुर्की सेना ने दिल्ली लूट ली थी. एक लाख से भी अधिक कैदियों की हत्या हो चुकी थी. समस्त उत्तरी भारत में अव्यवस्था, अराजकता, अकाल, महामारी का प्रकोप था. छोटे-मोटे नवाब, सरदार और सूबेदार जहां पर जो जगह मिलती हथिया रहे थे. संभल के सुबेदार ने तराई भाबर पर अधिकार कर लिया और कुर्मांचल का उपजाऊ मडुवामाल का प्रदेश भी हथिया लिया था. उस समय गरुड़ ज्ञानचंद, चंपावत के आसन पर विराजमान थे. मठुवा माल मध्य तराई का प्रांत था. मढुवा मध्य का ही रूपातंर है जो कुर्मांचल के पर्वतीय राज्य का मूल्यवान प्रांत था. उपजाऊ प्रांत होने से राज्य को अच्छी-खासी आमदनी थी. काली कुमाऊं के कृषक जाड़ों में अपने गाय भैंसों को लेकर यहां चले आते थे. जानवरों को घास काफी इफरात से मिल जाती. उर्वरा भूमि से मेहनती कृषक प्रचुर मात्रा में अन्न पैदा कर लेते थे. पहाड़ की तलहटी से लगे भावर और तराई के पहाड़ी के प्रान्त पहाड़ी कृषकों के मुख्य जीवन श्रोत थे. 1410 में इस साल को संभल के नवाब ने ले लिया. जीविका और आमदनी का स्रोत हाथ से निकल गया. पर्वती किसान भागकर राजधानी चंपावत आए और अपने राजा को सारी सूचना दी.

माघ का महीना. कड़ाके की ठंड. चंपावत की छोटी नगरी में हलचल मची है. भाबर से भागे सैकड़ों कृषक आए हैं. नवाब की सेना के लोम हर्षक अत्याचारों का वर्णन सुन सभी उत्तेजित हो उठे हैं. राजपूत उतावले हो गए हैं प्रतिशोध लेने के लिए. गरुड़ ज्ञानचंद स्वयं वीर थे. कई युद्धों में यश अर्जित किया था. उत्तरायण की संक्रांति के दूसरे दिन राजबुगा में दरबार लगा. कार्की, तडागी, महर, कठ, कठायत, ठेक, खरायत, महर-पड़त्याल दलों के सभी बूढ़े, सयाने, थोकदार, प्रधान तथा प्रमुख चौथानी ब्राह्मणों के मुखिया राज दरबार में बुलाए गए. पर्वतीय जनता के लिए जीवन मरण का प्रश्न था. राजबुगा से नीचे सैकड़ों कृषक हथियार बांधे हाट में आदेश की प्रतीक्षा में चहल कदमी कर रहे थे. दरबार में भी बैकुंठ चतुर्वेदी ने महाराज को मध्य माल में कृषकों के ऊपर हुए अत्याचारों का पूरा विवरण दिया. सैकड़ों कृषकों के घर द्वार जला दिए गए हैं, शत्रु उनके जानवरों को हांक कर ले गए हैं, नवाब के सैनिकों ने बड़ी निर्दयता से स्त्रियों को, बच्चों को और बूढ़े अपाहिजों को तलवार के घाट उतार दिया है. सशक्त जवानों ने सैनिकों का डटकर मुकाबला किया पर पर्याप्त संख्या तथा साधन के अभाव में पराजित हुए और भागकर आप के शरण में आए हैं. मध्यमान से शत्रु को हटाना आवश्यक है नहीं तो वे अन्य भागों पर भी अधिकार कर लेंगे. राजा ने अमात्य बैकुंठ चतुर्वेदी जी का वक्तव्य सुना. उन्होंने अपने सामंतो की ओर दृष्टि फेरी पूछा कि क्या कोई भी मध्य माल से नवाब की सेना को मार भगाने का भाग ले सकता है. कमलेख के जस्सा, राजा के मुंह लगे सरदार थे. उन्होंने राजा को सुझाव दिया कि सिवाय नीलू कठायत के और कोई वीर इतना शक्तिशाली नहीं है. नीलू को इस कठिन कार्य का भार दिया जाये.

नीलू कठायत का दुर्ग चंपावत से कुछ दूर कपरौली में था. राजा का संदेश लेकर दूत कपरौली पहुंचा. संदेश मिलने पर नीलू कठायत चंपावत पहुंचे. नीलू की अवस्था उस समय लगभग 30 वर्ष की थी. लंबा कद, चौड़ा सीना, मांसल भुजायें उनके अपरिमित शक्ति की परिचायक थी. दो बड़ी-बड़ी आंखें हृदय की उदारता की प्रतिबिंब थी. चौड़ा ललाट नुकीली नासिका और ललाई लिया गौर वर्ण व्यक्तित्व को अनोखा निखार देते थे. जैसी शारीरिक शक्ति थी उससे भी अधिक प्रचुर मात्रा में उदारता, विनय, भलमनसाहत, साहस, आत्मविश्वास, सत्यवादी आदि सद्गुणों से परिपूर्ण थे.

अपने प्रांत में जाने-माने घुड़सवार थे. तलवार के धनी थे. एक ही अवगुण था कि चाटुकारी, दिखावा, मिथ्या से कोसों दूर रहते थे. एक दम मुंहफट थे. अंतःकरण जिस कार्य की गवाही देता उसे ही सोचते, उसे ही करते और उसे ही कहते. किसी तरह की लल्लू चप्पू उन्हें नहीं भाती. दरबार में जस्सा कमलेखी ठीक उनके विपरीत बड़े व्यवहार कुशल, खुशामदीद, कुटील, और अपने स्वार्थ साधन के लिए कुछ भी कर डालने वाले व्यक्ति थे. सोचते कुछ और थे, करते कुछ और थे और कहते कुछ और थे. कठिन जोखिम भरे कामों से दूर रहते बाहर से बड़े शिष्ट, बड़े मीठे, भीतर कूट-कूटकर कुटिलता भरी थी. रणभूमि के कठिन संकट मय जीवन से राज दरबार का सुखद आरामदेह वातावरण उन्हें अधिक अच्छा लगता था.

नीलू राजबुग पहुंचे जस्सा कमलालेख लिख से द्वार पर भेंट हुई. जस्सा ने बतलाया कि तल्ला देश भाबर पर संभल के नवाब ने अधिकार कर लिया है. उसकी सेना ने जनता पर गजब ढाया है. सैकड़ों मारे गए हैं. सैकड़ों भागकर चंपावत आए हैं. राजा शीघ्र एक सेना वहां भेज रहे हैं. इसलिए तुम्हें यहां बुलाया है. नीलू तुम्हारे अलावा कौन इस कठिन कार्य का भार ले सकता है. बातें करते दोनों सरदार महल की ड्योढ़ी तक आए. राजा ने दोनों को अंतःपुर में ही बुला लिया. राजा ने नीलू का स्वागत किया और उन्हें मढूआ की माल जाने वाली सेना का भार दिया. अपनी तलवार दी और शत्रु को माल से हटाने का आदेश दिया. नीलू ने सहर्ष राजाज्ञा स्वीकार की और दूसरे दिन सेना के साथ तल्ला देश की ओर प्रस्थान कर दिया.

पहाड़ी पार कर जब नीलू की सेना मैदानी भाग में पहुंची उन्हें यत्र-तत्र जलाए घर, जलाए खेत, कहीं-कहीं इक्के-दुक्के छिपे कृषक मिले. इन लोगों से शत्रु की सेना की पूरी सूचना मिली. नीलू ने शीघ्र ही अपनी सेना को चार भागों में बांटा और माल का प्रांत चारों ओर से घेर लिया. स्वयं नीलू अपने चुने हुए वीरों को लेकर बीच के भाग में घुस गए. एक निश्चित संकेत पर चारों ओर से कुर्मांचल सेना ने यवन सेना पर आक्रमण कर दिया. नीलू के मध्य भाग में विद्युत गति से आक्रमण किया. भयंकर युद्ध हुआ प्रतिशोध के लिए बावले कुम्य्यों ने भीषण मार-काट की. धनुष-बाण, खाडा, कटार, खुकरी तलवार, पेश कब्ज, रामचंगी का खुलकर प्रयोग हुआ. नीलू हर जोखिम की जगह पर स्वयं मौजूद रहते और सैनिकों का उत्साह बढ़ाते. यवन सेना पराजित हुई और मैदान छोड़ संभल की ओर भागी. नीलू ने अति वीरता से माल को स्वतंत्र किया. विजय प्राप्त कर नीलू चंपावत लौटे.

सारी जनता ने विजेता का हार्दिक स्वागत किया. विजय प्राप्त कर राजदरबार में राजा गरुड़ ज्ञान चंद ने उन्हें कुम्म्याँ सिरोपा से विभूषित किया. पाग, दुशाला, तलवार उपहार में दिये. यह खिलअत असाधारण वीरों को राजदरबार से दी जाती थी. तीन गांव माल में और बारह ज्यूला भूमि ध्यानिरों में रौत दी. रौत असाधारण वीरता के प्रदर्शन पर दी जाती थी. साधारण तौर पर जागीर के रूप में भूमि मिलती थी. अडिग राजभक्ति, अपूर्व शौर्य और असीम प्रेम के लिए यह वशिष्ट पुरस्कार कुम्म्याँ सिरोपा और रौत रूप में गांव दिए जाते थे. नीलू कठायत को राज दरबार में बक्शी का पद मिला. वे सेनापति बनाए गए. जनता ने इस वीर को अपनी श्रद्धा और भक्ति समर्पित की. नीलू कुछ दिन के लिए अपने दुर्ग कपरौल चले गए.

इधर स्वभाव के कुटिल और द्वेषी जस्सा ने राजा के कान भरने शुरू कर दिये. नीलू के असाधारण सम्मान से जस्सा जल भुन गया था. वह हर संभव उपाय से नीलू को नीचा दिखाना चाहता था. अवसर भी उसे मिल गया. राजा के सामने प्रश्न था कि माल की व्यवस्था कैसे की जाए वे चाहते थे कि माल पहले की तरह मालामाल हो जाए. योग्य अधिकारी को स्थाई रूप से वहां भेजना चाहते थे. उन्होंने जस्सा के सामने अपनी समस्या रखी जस्सा ने तुरंत समस्या का निदान कर दिया. नीलू कठायत ने माल में विजय प्राप्त की. वे वीर है. साथ ही बुद्धिमान भी. उन्हें ही व्यवस्था के लिए स्थाई रूप से माल भाबर भेजा जाए. उन दिनों पर्वती कृषक जाड़ों में माल जाते थे और चैत वैशाख तक पहाड़ी भागों में आ जाते थे. चौमासे में ज्वर के प्रकोप से कोई भी वहां नहीं रहता था. उन दिनों भी वहां मलेरिया का प्रकोप था. केवल शीत ऋतु में चारागाह और खेतों का उपयोग कृषक लोग करते थे. जस्सा की चाल थी कि एक तो नीलू राजधानी से दूर रहे और दूसरा स्थाई रूप से भाबर में रहने से ज्वर का शिकार हो जाए. जस्सा यह भली-भांति समझता था कि नीलू माल के स्थाई रूप से रहना कदापि स्वीकार नहीं करेगा. इस हालत में भी जस्सा का लाभ था. राजाज्ञा का उल्लंघन करने पर नीलू राजा की निगाह से गिर जाएगा.

राजा गरुड़ ज्ञानचंद का दूत संदेश लेकर कपरौल पहुंचा. नीलू ने आदेश पढा. उसे माल बाबर का सर्वोच्च अधिकारी बनाया गया था. उसे पूर्ण अधिकार दिए गए थे. आदेश था कि वह स्थाई रूप से 12 महीने माल में रहे और समुचित व्यवस्था करे. आदेश पढ़कर नीलू क्रोध से जल-भून गया. वह किसी भी तरह पूरे साल माल में नहीं रहना चाहता था. वहां की जलवायु उसके लिए हितकर न थी वह दूत के साथ ही राजधानी के लिए रवाना हो गया. जल्दी में दरबार की राजसी पोशाक पहनना भूल गया. साधारण वेष में चंपावत पहुंचा. जस्सा ने दूर से ही नीलू को साधारण वेष में आते देख लिया. तुरंत राजा के कान भर दिये. महाराजा आपको नीचा दिखाने के लिए नीलू राज दरबार की पोशाक पहनकर नहीं आया है. ना उसने कुमम्याँ सिरोपा की पगड़ी और दुशाला ओढ़ा है. नीलू बड़ा अहंवादी है. बस क्या था राजा जल भुन कर खाक हो गए. नीलू आया उसने राजा को प्रणाम किया. राजा ने उसकी ढ़ोक स्वीकार की पर राजा ने कोई उत्तर न दिया. उसकी ओर से मुंह फेर लिया. माल के विजेता का घोर अपमान. अपमानित नीलू उदास कपरौली लौटा. पत्नी ने पति का उदास फीका मुह देखा. कारण पूछा. नीलू ने बतलाया कि राजा ने उनकी ढ़ोक स्वीकार की और न उनसे बोले. बल्कि उसकी ओर से मुंह फेर लिया. मेरा घोर अपमान हुआ. मैं अब दरबार में कभी नहीं जाऊंगा. पत्नी सिरनोला के सिरमौर महर की लड़की थी. बड़ी बुद्धिमति थी. उसने कहा राज और बाज से बैर भाव रखना ठीक नहीं है. मेरा भाई अभय महर राजधानी में रहता है. उसके माध्यम से मैं राजा से तुम्हारा मेल करवा दूंगी. मैं अपने दो लड़के भुजान सिंह और वीर सिंह को माया के पास चंपावत भेजती हूं. वह माया को सब बातें बताएंगे.

सूजू और बीरों दोनों अवस्था में छोटे थे. माता का आदेश पा तुरंत राजधानी की ओर रवाना हो गए. दिन अभी काफी था और राजधानी कुछ दूर थी. उतार-चढ़ाव वाली बीहड़ पहाड़ी मार्ग. जब थके मादे दोनों लड़के राजधानी की सीमा पर पहुंचे रात हो चुकी थी. कृष्ण पक्ष की रात्रि. घोर अंधका.र पहली बार राजधानी की सीमा पर आए थे. मामा का मकान भूल गए. इधर-उधर भटकने लगे. दुकानें बंद हो चुकी थी. इक्के-दुक्के चलने वाले राहियों से मामा का घर पूछा. पर कोई बता ना सका. संयोग की बात जस्सा कमलेखी भी उस समय राजबुग से अपने घर जा रहे थे. मशाल की रोशनी में उन्होंने दो सुंदर स्वस्थ बालक देखे जो अभय महर का पता पूछ रहे थे. ठिठके बालकों से पूछा कौन हो. सरल बालकों ने अपना पूर्ण परिचय दे दिया और आने का अभिप्राय भी बतला दिया बस क्या था जस्सा को मन की मुराद मिल गई. बोले मैं भी तुम्हारे मामा के यहां जा रहा हूं. चलो, तुम्हें बता दूँ. सरल निर्दोष बालक जस्सा के पीछे चले. जस्सा उन्हें अपने घर ले आए एक कमरे में बालकों को कैद कर लिया.

दूसरे दिन तड़के ही जस्सा राजप्रसाद पहुंचे. महाराज को बतलाया की नीलू कठायत महरों के साथ मिलकर एक घोर षड्यंत्र की योजना बना रहा है. उसके दोनों लड़के संयोग से कल रात मुझे मिल गए. मामा के घर जा रहे थे. पूछने पर उन्होंने सब बातें मुझे बतलाइ. मैंने उन्हें अपने घर में कैद कर लिया है अन्नदाता ! अब क्या किया जाए? आप आदेश दीजिए. राजा नीलू से अप्रसन्न थे ही षड्यंत्र की बात ने आहुति में घी का काम किया. तुरंत दोनों लड़कों को अंधा कर दिया जाए और आजन्म कारावास दिया जाए. सांप के बच्चे साथ ही होते हैं. नीलू आस्तीन का सांप है. जस्सा ने तुरंत आदेश का पालन किया. गोरल चौड़े दोनों निर्दोष बालकों की आंखें निकलवा दी गई. राज बंदी गृह में दोनों को कैद कर लिया गया. बेचारे निर्दोष बालक अपनी निर्दोषिता की दुहाई देते रहे. कुम्मयाँ सिरोपा के अधिकारी के बच्चों के साथ यह क्रूर व्यवहार हुआ. जस्सा कामलेखी की मुराद पूरी हुई.

अभय महर को भांजे के साथ क्रूर व्यवहार की सूचना मिली. जस्सा कमलेखी के काली करतूतों के सारे भेद उसने अपने पिता के पास सिरमोली भेजें. सिरमोली के महरों में आग फैल गई. निर्दोष बच्चों के साथ हुए अत्याचार, अन्याय का प्रतिशोध लेने के लिए महर उतावले हुए. बूढ़े सिरमौर महर ने तुरंत पत्र वाहक द्वारा एक पत्र अपने दामाद नीलू के पास कपरौली भेजा. पत्र में लिखा तुम अपने गांव में बैठे आनंद मना रहे हो. जानते हो जस्सा और राजा ने तुम्हारे होनहार बच्चों की क्या गत की है. उन्हें अंधा कर कैद में डाल दिया है. व्यर्थ है तुम्हारा बल पौरुष. क्या प्राणों की बाजी लगाकर मडुआ माल जीतने का यही पुरस्कार है. राज भक्ति की क्या यही भेंट है. धिक्कार है तुम्हारे बाहुबल को.

पत्र पढ़कर नीलू कथायत का एक बार स्तब्ध हो गया. किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया. उसकी वीरांगना पत्नी ने उसे चेतना दी. कर्तव्य की ओर ध्यान दिलाया. दुष्टता कुटिलता मक्कारी अन्याय से जुड़ने के लिए उत्साहित किया. नीलू ने भयंकर प्रतिशोध लेने का दृढ़ निश्चय किया. अपने इष्ट मित्रों तथा महरों की विशाल सेना लेकर चंपावत पर चढ़ाई कर दी. जस्सा को दंड देने और राजा को सन्मार्ग पर लाने के लिए. युद्ध में गरुड़ ज्ञानचंद पराजित हुए. अपनी जान बचाने अब राजा और जस्सा थर्प छोड़कर उडियार ( खोह ) में जा छिपे. नीलू ने राजा और जस्सा की सारी राजधानी में खोज की. पर कहीं पता नहीं मिला. आस-पास के गांव में पता लगाया असफलता ही मिली.

एक दिन नीलू ने एक आदमी को राजबुग से देखा. वह एक हथियानौला की ओर जा रहा था. हाथ में उसके एक टोकरी थी. कदाचित उसमें खाने का सामान था. नीलू ने अपने सैनिकों को उस आदमी का पीछा करने भेज दिया. देखें वह क्या करता है? कहां जाता है? सैनिक नौले के पास पहुंचे. देखा वह आदमी एक खोह से बाहर निकल रहा है. इस समय टोकरी उसके हाथ में न थी. सैनिकों ने उसे बंदी बना लिया. खोह में जाने का कारण पूछा? वह गूंगा बना रहा. उसे नीलू कठायत के पास लाए. नीलू ने उसके साथ बड़ा शिष्ट बर्ताव किया. उसके डर को दूर किया उसे पूरा आश्वासन देकर गुफा में जाने का कारण पूछा. आदमी रोने लगा. रोते-रोते उसने बताया कि उसको उडियार में नीलू के डर से राजा और जस्सा छिपे हैं, मैं उनके लिए प्रतिदिन खाना ले जाता हूं.

नीलू तुरंत थोड़े सैनिकों के उस गुफा की ओर गया. गुफा लंबी और अधूरी थी. मशाल की रोशनी में उसने एक कोने में दुबके राजा और जस्सा को देख लिया. उसने सैनिकों को आदेश दिया कि जस्सा को कैद कर दो. जस्सा रस्सियों से जकड़ दिया गया. राजा सोच रहे थे कि अब उनकी बारी है पर नीलू राजा के चरणों में गिर गया. महाराज आप देवता का अंश है. मैं आप पर अस्त्र नहीं चला सकता. जस्सा के कहने पर आपने मेरे बच्चों की आंखें निकलवा दी और उन्हें कारावास में बंदी करवा दिया. इस क्रूर और कुटिल जस्सा ने कारागार में मेरे नन्हें बच्चों को भूखों मरवा दिया. जस्सा को कठोर दंड दूंगा. इस कमलेख की दुर्ग की ईट से ईट बजा दूंगा. इसका और इसके सभी सगे संबंधियों का वध करूंगा. तब मुझे चैन मिलेगा. आप राजा हैं आप राजबुंग चलिए और पूर्व राज्य कीजिए. इतना कहकर नीलू ने जस्सा का वध राजा के सामने ही गुफा में कर दिया. महरों की सेना ने कमलेख का दुर्ग ले लिया. जस्सा के गांव के सब लोग मारे गए. दुर्ग को तोड़ दिया. आज भी कमलेख गांव में इस दुर्ग के खंडहर इस भयानक प्रतिशोध की याद दिलाते हैं. कहते हैं नीलू के सैनिकों ने कमलेख की स्त्रियों बच्चों को भी नहीं छोड़ा. सारा गांव उजाड़ दिया.

बाहरी तौर पर राजा ज्ञानचंद नीलू से बड़े प्रसन्न हुए. उसके सारे अधिकार और गांव लौटा दिए. उसे फिर बक्शी का पद दिया गया. पर भीतर ही भीतर नीलू को मार डालने का षड्यंत्र चल रहा था. राजा नीलू से डरते थे. साथ ही उसकी सर्वप्रियता भी उन्हें खलती थी. एक दिन नीलू राजबुग से रात्रि के समय अपने घर जा रहे थे. रास्ते में भाड़े के हत्यारों ने उसे घेर लिया. नीलू ने दो चारों को तलवार के घाट उतार दिया पर अनेक से कैसे जुझ सकता था. राज भक्त नीलू कठायत राजा के आदेश पर मारा गया. माल का विजेता अनन्य राजभक्त, अप्रतिम योध्दा नीलू कठायत को राज भक्ति का यह कठोर पुरस्कार मिला पर नीलू और उसका वंश कुर्मांचल के इतिहास में राज भक्ति के लिए अमर हो गया ज्ञान चंद की बड़ी अपकीर्ति हुई. जनता की निगाह में नीचे गिर गए.

पुरवासी के 11वें अंक में नित्यानन्द मिश्रा जी के लेख के आधार पर 

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