Featured

पंद्रहवीं शताब्दी की उत्तराखण्डी प्रेम कहानी

उत्तराखण्ड की भी अपनी कुछ ऐतिहासिक प्रेम कथाएँ हैं. राजुला-मालुसाई इनमें सर्वाधिक लोकप्रिय प्रेमकथा है. लेकिन कुछ अन्य प्रेम कथाएँ और भी हैं जो आंचलिक रूप से उतनी ही लोकप्रिय है. इनमें से एक प्रेम कथा है गढ़वाल के उत्तरकाशी जिले के तिलोथ गाँव के बहादुर भाइयों नरु-बिजोला की अनोखी प्रेम कहानी. इस कहानी का आज भी कहा-सुना जाता है और लोकगीतों, लोकनाटकों के माध्यम से भी याद किया जाता है.

इन दोनों शूरवीरों ने आज से करीब छह सौ साल पहले अपना प्यार पाने के लिए जो किया उसने इन्हें यादगार बना दिया.

नरु बिजोला की यह प्रेम कहानी पंद्रहवीं सदी की मानी जाती है.

उत्तरकाशी के तिलोथ गांव में रहने वाले दो भाई नरु और बिजुला समूची गंगा घाटी में अपने शौर्य और पराक्रम के लिए जाने जाते थे. एक बार दोनों भाई बाड़ाहाट के माघ मेला देखने पहुंचे. मेले का रस लेते हुए उनकी निगाह एक सुन्दर युवती पर जा टिकीं. नजरें मिली और दोनों भाई उसे अपना दिल दे बैठे. पहली नजर के इस प्यार के इजहार का युवती ने भी आंखों ही आंखों में स्वागत किया. दोनों भाई तो मेले से लौट आये मगर उनका मन उनके साथ नहीं लौटा, वह तो उस सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति के मोहपाश में बंधा था.

दोनों भाइयों ने बेसब्री के साथ युवती के बारे में पूछताछ कर उसके बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश में जुट गए. इस खोज का नतीजा बहुत चिंताजनक था. युवती यमुना पार रवांई इलाके के डख्याट गांव में रहती थी. उस दौर में गंगा और यमुना घाटी के लोगों के बीच दुश्मनी हुआ करती थी, यह रंजिश पीढ़ियों से चली आ रही थी. इनके बीच रोटी-बेटी का संबंध तो सोचा तक नहीं जा सकता था. लिहाजा किसी तरह का प्रेम सम्बन्ध और विवाह तो कटाई संभव नहीं था.

एक ही रास्ता था कि युवती को भागकर ले आया जाये. इसके लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए था जो दोनों भाइयों के पास था भी. दोनों भाइयों ने हस्र की परवाह किए बिना डख्याट गांव पहुंचकर युवती को भगा लाने का निश्चय किया. वे डख्याट पहुंचे और युवती का हरण कर लाये. उसे कुठार (अनाज रखने के लिए लकड़ी का विशाल बक्सा) में छिपाकर तिलोथ लेकर आ गए.

उस दौर में अपने शत्रुओं के इलाके में घुसकर ऐसी घटना को अंजाम देना मामूली न था. न तो सड़कें हुआ करती थीं न परिवहन के अन्य साधन. जंगली जानवरों का भय, सो अलग. प्रेम में पगे भाई भला अपनी राह में आने वाली बाधाओं के सामने भला कहाँ हार मानने वाले थे. दोनों भाइयों ने बड़ी चतुराई और दुस्साहस के साथ इस कार्य को अंजाम दे दिया.

डख्याट से युवती को भगाकर ले जाने की खबर के जैसे पंख लग गए. खबर फैली तो यमुना घाटी रवांई के कई गाँव इन दुस्साहसी भाइयों और तिलोथ गाँव को सबक सिखाने के लिए इकट्ठा होने लगे. आनन-फानन में समूची घाटी इकट्ठा हो चली. सभी लोग हथियार थामकर नरु-बिजुला से निपटने के लिए चल पड़े.

गंगा घाटी की यह आक्रोशित भीड़ जल्द ही रवाई के सीमावर्ती गाँव ज्ञानसु पहुँच गए. यहाँ पहुंचकर उन्होंने सुबह तक का इन्तजार कर हमला करने का फैसला लिया.

नदी के पार रवाईं के लोगों के इकट्ठा होने की भनक पाते ही नरु-बिजुला ने हालात से निपटने की त्वरित योजना बनाना शुरू कर दिया. सबसे पहले उन्होंने अपने सभी गांववासियों व अपनी प्रेमिका को रात के अँधेरे में ही चुपचाप डुणडा के उदाल्का गाँव की ओर रवाना कर दिया. उनके साथ जितना भी अन्न-धन भेज सकते थे, भेज दिया. सभी गांववालों के सुरक्षित हो जाने के बाद दोनों भाइयों ने सबसे पहले गंगा नदी पर बना पुल काट दिया. अब वे बिजुला गाँव से 3 किमी ऊपर सिल्याण गाँव पहुंचे. उन्होंने इसी ऊंचाई पर मोर्चा बांधने का निश्चय किया. उन्होंने तेजी के साथ यहाँ पर एक विशाल चबूतरा बनाया. यह मजबूत चबूतरा पत्थरों से बनाया गया. यह चबूतरा आज भी अपनी जगह पर मौजूद है, यहाँ गाँव भर की पूजा-अर्चना, मेले-पर्व आदि का आयोजन किया जाता है.

सुबह तडके लड़ाई की शुरुआत हुई. इस घमासान लड़ाई में अपने युद्ध कौशल और चतुराई भरी रणनीति की बदौलत नरु-बिजुला ने अपनी इस प्रेम कहानी के दुश्मनों को डराकर भगा दिया. कहा जाता है कि इसके बाद दोनों गाँवों के बीच बरसों से चली आ रही दुश्मनी भी ख़त्म हो गयी. नरु-बिजुला तिलोथ में ही अपनी प्रेमिका के साथ ब्याह रचाकर सुखद पारिवारिक जीवन बिताते रहे. आज भी तिलोथ और सिल्याण गाँव में इनके वंशजों से मिला जा सकता है.

दिलचस्प बात यह है कि तिलोथ में नरु-बिजुला का छह सौ साल पुराना चार मंजिला घर आज भी शान के साथ खड़ा है. आठ हॉल व आठ छोटे कमरों वाले इस घर की हर मंजिल में खूबसूरत अटारियां बनी हुई थी. अपने पूर्वजों की तरह ही इस मकान ने भी इस कदर बहादुरी से उत्तरकाशी में 1991 में आये भीषण भूकंप का सामना किया कि यह आज भी मजबूती के साथ जस-का-तस खड़ा है.

नरु-बिजुला के घर की वर्तमान स्थिति

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

View Comments

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago