अपने इतिहास के अलावा अल्मोड़ा अपनी खूबसूरती के लिये खूब जाना जाता है. अल्मोड़ा की ख़ास आबोहवा हर किसी को इस शहर का दिवाना बना देती है. कुमाऊं में दो नदियों के बीच बसे इस शहर के एक हिस्से को तेलीफट तो दूजे को सेलीफट नाम से जाना गया.
(Almora Bazar Old Photo)
अल्मोड़ा शहर के भीतर जाने पर आज भी पुराने भवन देखने को मिलते हैं. अंग्रेजों के लम्बे समय तक अल्मोड़ा में टिकने का एक परिणाम यह भी रहा कि उनके भवनों में ब्रितानी प्रभाव साफ़ झलक कर आने लगा. अल्मोड़ा बाज़ार की यह तस्वीर साल 1860 की है माने डेढ़ सौ सालों से भी पुरानी. तस्वीर लेने वाले शख्स का नाम है जॉन एडवर्ड साचे.
जॉन एडवर्ड ने भारत की अनेक महत्वपूर्ण तस्वीरें खींची थी. इस यूरोपीय फोटोग्राफर ने अपने काम की शुरुआत भले अमेरिका से की लेकिन उसने अपना अधिकाँश काम भारत में रहकर ही किया. 1870 में वह नैनीताल, मसूरी, मेरठ और लखनऊ शहर में अपने फोटो स्टूडियो चलाता था.
1880 तक भारत में रहे जॉन एडवर्ड के बारे में कहा जाता है कि उसने हमेशा सैमुअल बॉर्न द्वारा ली गयी तस्वीरों वाले स्थानों को ही दुबारा खींचा ताकि वह मूल. अल्मोड़ा बाजार की इस तस्वीर के बारे में लिखा गया है:
जॉन एडवर्ड साचे द्वारा ली गयी यह तस्वीर 1860 की है. यह तस्वीर अल्मोड़ा बाज़ार की है. घोड़े की नाल के आकार की पहाड़ी पर बसा अल्मोड़ा शहर कुमाऊं के एक स्वतन्त्र हिन्दू राजा की राजधानी था जिसे 1890 में गोरखाओं ने आक्रमण कर अपने अधीन किया. गोरखा नेपाल युद्ध के बाद यह ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना. अल्मोड़ा, कुमाऊं की सबसे खुबसूरत जगहों में से एक है. यह तस्वीर बाज़ार में पत्थरों से बनी एक सड़क का है जिसके साथ में लगी एक भव्य इमारत है लकड़ी ने बने नक्काशीदार छज्जे को सींगों से सजाया गया है.
(Almora Bazar Old Photo)
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Sir, correct year is 1790 and not 1890
गोरखो ने १७९० में अल्मोड़ा पर कब्जा किया १८९० में नहीं.
यह खजांची मोहल्ला है जहां चंद राजाओं के खजांची (साह लोग ) रहते थे। डेढ़ सौ साल पहले अल्मोड़े के दो ही बाज़ार थे -तल्ली बाज़ार अर्थात लाला बाज़ार और मल्ली बाज़ार (वर्तमान पल्टन बाज़ार/थाना बाज़ार --शेष सभी मोहल्ले थे