Featured

आसमानी बिजली और तूफ़ान की कहानी

अफ्रीकी लोक कथाएँ – 7

बहुत पहले आसमानी बिजली और तूफ़ान बाकी सारे लोगों के साथ यहीं धरती पर रहा करते थे, लेकिन राजा ने उन्हें सारे लोगों के घरों से बहुत दूर अपना बसेरा बनाने का आदेश दिया हुआ था.

तूफ़ान असल में एक बूढ़ी भेड़ थी जबकि उसका बेटा आसमानी बिजली एक गुस्सैल मेढा. जब भी मेढा गुस्से में होता वह बाहर जाकर घोरों में आगज़नी किया करता और पेड़ों को गिरा देता. वह खेतों को भी नुकसान पहुंचाता और कभी तो लोगों को मार भी डालता. वह जब नभी ऐसा करता उसकी माँ ऊंची आवाज़ में डांटती हुई उसे और नुक्सान न पहुंचाने और घर वापस आने को कहती, लेकिन आसमानी बिजली अपनी माँ की बातों पर ज़रा भी ध्यान दिए बिना तमाम नुकसान करने पर आमादा रहता. अंत में जब यह सब लोगों की बर्दाश्त से बाहर हो गया, उन्होंने राजा से शिकायत की.

सो राजा ने एक विशेष आदेश दिया और भेड़ और उसके मेढे को शहर छोड़कर दूर झाडियों में जा कर रहने पर मजबूर होना पड़ा. इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि गुस्सैल मेढा अब भी कभी कभार जंगलों में आग लगा दिया करता और आग की लपटें जब-तब खेतों तक पहुंचकर उन्हें तबाह कर दिया करतीं.

लोगों ने राजा के आगे फिर से शिकायत की और इस बार राजा ने दोनों माँ-बेटे हो धरती छोड़कर आसमान में जाकर अपना घर बना लेने को कहा, जहां वे बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे. तब से जब भी आसमानी बिजली को गुस्सा आता है, वह हमेशा की तरह तबाही मचाता है लेकिन हम उसकी माँ को उसे डांट पिलाता हुआ सुन सकते हैं. हाँ कभी कभी जब माँ अपने शरारती बेटे से कुछ दूर कहीं गयी होती है, हम देख सकते हैं कि वह अब भी गुस्सा है और नुकसान पहुंचा रहा है अलबत्ता उसकी माँ की आवाज़ हमें नहीं सुनाई देती.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago