आज अगर हिमालय बचा है तो यहां की महिलाओं की वजह से. हिमालय के पुरुषों ने हिमालय बचाने की जिम्मेदारी करीब एक पीढ़ी पहले ही छोड़ दी थी. भले ही आज हिमालय के पर्यावरणविदों में आप किसी महिला का नाम नहीं जानते होंगे लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हिमालय, हिमालय की महिलाओं की वजह से बचा है. ( 9 September Himalayan Day )
हिमालय बचाने के लिये जितना यहां की महिलाओं ने किया है उतना शायद ही किसी ने किया हो. ज्यादा दूर न जाकर उत्तराखंड को ही देख लें यहां के मकानों को अगर किसी ने अब तक घर बनाकर रखा है तो यहां की महिलाओं ने. ( 9 September Himalayan Day )
आज जब हम हिमालय बचाने की बात कहते हैं तो उससे पहले हमें हिमालय में लोगों को बचाना होगा. सीख लेनी होगी हिमालय की महिलाओं से जिन्होंने कठिन और दुर्गम परिस्थितियों में भी अपनी मुस्कान के साथ पहाड़ को अब तक जिन्दा रखा है.
पहाड़ का लोक, पहाड़ की संस्कृति, पहाड़ का समाज आज जो भी सहेज कर रखा गया है वह इन महिलाओं ने रखा है. हमारा दुर्भाग्य है कि उनके सामने ऐसा कोई नहीं है जो आगे चलकर इसे सहेज सके.
घुटनों तक कीचड़ में अपने पैर डुबो कर रोपाई लगाने वाली महिलाओं को यह बताने की जरूरत नहीं है कि हिमालय कैसे बचाया जाय. हिमालय बचाने का काम वह सदियों ने करती आ रही हैं. जरूरत है तो उनके जीवन में मूलभूत सुविधायें प्रदान करने की.
एक अस्पताल और बच्चों के पढ़ने के लिये अच्छा स्कूल इससे ज्यादा कुछ नहीं मांगती हैं यहां की महिलायें और हम हैं कि उन्हें हिमालय बचाने का पाठ पढ़ाने जा रहे हैं.
दुनिया की सबसे सशक्त और सुंदर महिलाओं वाले पहाड़ में उनको स्वास्थ्य और शिक्षा दीजिये हिमालय बचाना वो बखूबी जानती हैं. इतने सालों से वही तो हैं जिसने हिमालय को अपना घर माना है, जिसने हिमालय के हर सुख और दुःख में उसका साथ दिया है.
समय है कि हिमालय दिवस में हिमालय बचाओ से ज्यादा हिमालय में लोग बचाओ पर जोर दिया जाय.
-गिरीश लोहनी
सोमेश्वर घाटी में धान की रोपाई का एक वीडियो देखिये :
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