सुन्दर चन्द ठाकुर

पांच वजहें जिन्होंने नीरज चोपड़ा को दिलाया गोल्ड मेडल

अगर आप नीरज चोपड़ा के घर जाएं तो वहां आपको दीवार पर एक Quote लिखा हुआ मिलेगा – A single idea can light up your life. Sometimes it is just a chance encounter. यानी एक अकेला विचार आपका जीवन रोशन कर सकता है और कई बार ऐसा संयोग से हो जाता है. नीरज चोपड़ा के साथ ऐसा ही हुआ. यह संयोग था जब पहली बार उन्होंने भाला फेंका. पर जिन्होंने चैंपियन बनना होता है वे किसी संयोग को बर्बाद नहीं होने देते. 9 साल पहले घटे उस संयोग को 7 अगस्त 2021 के दिन भारतीय समय के अनुसार शाम को ठीक 5 बजकर 38 मिनट पर नीरज चोपड़ा ने अपने लिए ओलिंपिक के गोल्ड मेडल में बदल दिया.
(5 Reasons for Chopra’s Olympic gold)

ओलिंपिक के इतिहास के 121 सालों में यह पहली बार है कि किसी भारतीय ने एथलेटिक्स प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता है. जाहिर है नीरज चोपड़ा की इस अभूतपूर्व सफलता के पीछे कुछ खास वजहें जरूर होंगी. माइंडफिट ने ऐसी पांच वजहों की शिनाख्त की है, जिन्होंने नीरज चोपड़ा को यह स्वर्ण पदक दिलवाया. आइए जानते हैं उन पांच बातों को. शुरू करने से पहले आपको यह याद दिला दूं कि ये बातें अगर आपके जीवन में भी मौजूद हों, तो आप भी पूरी दुनिया को सम्मोहित करने वाली कामयाबी पा सकते हैं.   

पहली वजह – अवरोध को बदला अवसर में

नीरज चोपड़ा जब 13 साल के थे तो उस छोटी उम्र में उनका वजन 80 किलो था. इतने वजन के साथ उनका शरीर बहुत थुलथुल दिखता था. जाहिर है उन्हें उनके साथी ऐसे शरीर को लेकर अक्सर चिढ़ाते थे. यह बात बच्चे के चाचा को हजम नहीं हुई. और जैसा कि ज्यादातर भारतीय परिवारों में होता है चाचा भीम चोपड़ा ने भतीजे को फिट करने का बीड़ा उठाया और उसे पानीपत के स्पोर्ट्स स्टेडियम ले गए. उन्होंने वहां ट्रेनर्स को हिदायत दी कि वे उनके भतीजे को जल्दी से जल्दी फिट बना दें. यहीं नीरज चोपड़ा के साथ गोल्डन संयोग घटित हुआ और उनकी मुलाकात जयवीर से हुई जिसने उसे एक दिन यूं ही पूछ लिया था – भाला फेंकेगा? और नीरज ने यूं ही जब भाला फेंका तो कोच के मुंह से निकला – अरे ये तो नेचरल है. भाला कोच की अपेक्षा से बहुत दूर जाकर गिरा था.

दूसरी वजह – परिवार का मिला फुल सपोर्ट

नीरज चोपड़ा के चाचा भीम चोपड़ा अगर उसे फिट करवाने के लिए स्टेडियम ले गए, तो दूसरे चाचा सुरेंद्र चोपड़ा थे जिन्होंने भतीजे की ट्रेनिंग के लिए पूरे परिवार की आमदनी लगा दी. पानीपत के खांदरा गांव में नीरज के संयुक्त परिवार के पास 8 एकड़ जमीन थी जिस पर वे अपने पैतृक घर को नया बनाना चाहते थे, पर इस योजना को सिर्फ इसलिए मुल्तवी कर दिया गया क्योंकि उस वक्त नीरज की ट्रेनिंग को सपोर्ट करना ज्यादा जरूरी था. माता-पिता और चाचाओं सबने एक साथ नीरज की कामयाबी का ख्वाब देखा. चैंपियनों से अगर आप पूछेंगे तो वे बताएंगे कि चैंपियन बनने के लिए परिवार का ऐसा अटूट सपोर्ट अमूल्य होता है.

तीसरी वजह – Coaches पर किया भरोसा

 नीरज चोपड़ा को जयवीर के रूप में जो पहला कोच मिला था उसने एक बार में ही उसमें छिपी संभावनाओं को पहचान लिया था. नीरज को पानीपत के छोटे और कम सुविधाओं वाले स्टेडियम से पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम शिफ्ट करने में जय की अहम भूमिका थी. यहीं से नीरज को नैशनल कैंप के लिए चयन हुआ था. इन शुरुआती सालों में उनके एक दूसरे कोच नसीम अहमद ने उनके हुनर को संवारने का काम किया.

2016 के जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा दुनिया की नजर में उभरकर आए थे. अपने coaches के बारे में नीरज कहते हैं – मैंने ऑस्ट्रेलियाई कोच गैरी कालवर्ट के साथ कोचिंग शुरू की और तब मैंने जूनियर वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाया. फिर मैंने उवे हॉन के साथ काम शुरू किया और उनसे कई नई चीजें सीखीं. फिर मैंने डॉक्टर क्लॉस के साथ काम किया. ये वे लोग हैं जिनके पास अनुभव है और जैवलिन के बारे में गहरी समझ है. उन्होंने मेरे शरीर को समझा और उस हिसाब से ट्रेनिंग प्लान तैयार किया. उनके इनपुट्स से मुझे काफी फायदा हुआ.

जिन्हें नहीं पता वे जान लें कि नीरज चोपड़ा के कोच उवे हॉन (Uwe Hohn) दुनिया के इकलौते थ्रोअर हैं जिन्होंने 100 मीटर या उससे ज्यादा जैवलिन फेंका है. उन्होंने नीरज चोपड़ा के बारे में तीन साल पहले ही कहा था कि इस बात की कोई सीमा नहीं कि यह भारतीय कितनी दूर भाला फेंक सकता है. Hohn के 100 मीटर के थ्रो के बाद जैवलिन में बदलाव कर उसके सेंटर ऑफ द ग्रैविटी बदला गया था.
(5 Reasons for Chopra’s Olympic gold)

चौथी वजह – अभ्यास से नहीं किया कोई समझौता

जिन्होंने नीरज चोपड़ा को जैवलिन थ्रो करते हुए देखा है वे मानेंगे कि इस प्रतिस्पर्धा में शरीर में ताकत के साथ-साथ जबरदस्त लचीलापन भी चाहिए. ऐसा करने के लिए निरंतर कड़ा अभ्यास जरूरी है. क्योंकि सारे चैंपियन रोज सुबह-शाम नियमित रूप से किया जाने वाला यह अभ्यास हमेशा अकेले में करते हैं, दुनिया वाले जान नहीं पाते कि सफलता के पीछे कितना पसीना बहाना पड़ता है. अब नीरज चोपड़ा के सोशल मीडिया में आए इस विडियो को ही देखिए संभवत: ऐसा लचीलापन उनके साथ ओलिंपिक प्रतिस्पर्धा में उतरे किसी भी प्रतिद्वंद्वी के पास नहीं था, इसीलिए उनके पास गोल्ड भी नहीं आया. 

पांचवी वजह – खुद पर किया यकीन

महान कामयाबियां पाने वाले किसी भी इंसान को अगर आप कामयाबी की एक सबसे बड़ी वजह बताने को कहें, तो सभी के मुंह से एक ही बात निकलेगी- खुद पर भरोसा. नीरज चोपड़ा का यह खुद पर भरोसा ही था जो उन्हें जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप के गोल्ड से ओलिंपिक के गोल्ड तक ले गया. नीरज चोपड़ा की उम्र अभी सिर्फ 23 साल हैं. इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे कम से कम अगली दो ओलिंपिक स्पर्धाओं में भी अपने इस सुनहरे प्रदर्शन को दोहराएं. यह उनकी महान से महानतम बनने की यात्रा होगी. रास्ते में रुकावटों और मुश्किलों का आना लाजमी है, लेकिन इस सत्य को नीरज चोपड़ा से ज्यादा और कौन जान सकता है कि खुद पर यकीन हर मुश्किल को आसान बना देता है.
(5 Reasons for Chopra’s Olympic gold)

-सुंदर चंद ठाकुर

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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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