4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – सातवीं क़िस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: ये नरभक्षी सियासत का दौर है मेरे बच्चे, तुम कैसे निबाहोगे?
यहां मेरे पड़ोस में एक नई नवेली मां रहती है बहुत खुश, मातृत्व सुख में पोर-पोर डूबी हुई. छः-सात महीने का बच्चा है उसका. मातृत्व के सुख में पिछले छः-सात महीने कैसे बीत गए, बल्कि उड़ गए उसे नहीं पता. उसी ने एक दिन मुझे कहा था ‘‘पिछले सात महीने में कब दिन से रात हुई, कब रात से दिन मुझे नहीं पता’’ कोई अवकाश नहीं, कोई संडे नहीं. वो लड़की मां बन गई, सो बेहद खुश है पर इस ढेर सी खुशी में बहुत सी इच्छाएं-अनिच्छाएं हर पल उसके भीतर सांस लेती है. वो इच्छाएं जिनकी अकाल मृत्यु हो गई!
वो इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती थी, शादी के एक साल बाद ही बच्चा तो बिल्कुल नहीं चाहती थी. वो आगे पढ़ना चाहती थी, नौकरी करना चाहती थी. अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, कुछ समय अपनी तरह से जीना चाहती थी. शादी और मां बनने के बाद इन चाहतों को पूरा करने का कोई स्कोप नहीं है बिना शादी और बच्चे के नौकरी करने और अपने हिसाब से पैसा खर्च करने का सुख अब उसके जीवन में कभी नहीं आएगा. मुझे नहीं पता मेरी जान, कि उसकी ये चाहतें उसके मन में हरे जख्म की तरह हमेशा हरी रहकर दुखती रहेंगी या फिर ये चाहतें, सपने, इच्छाएं, बूढ़ी होकर मर जाएंगी! में ये भी नहीं जानती मेरी गुड़िया, कि अब इन चाहतों का हरे जख्म की तरह जिंदा रहना उसके लिए अच्छा है या फिर उन सपनों की अकाल मौत?
यूं तो उसका पति लाइब्रेरी से उसके लिए किताबें लाता है एक दिन उसने बताया था ‘‘मुझे घर के कामों से निपटना भी मुश्किल होता है इसके साथ. जब ये सोता है कुछ काम तब ही निपटते है. फिर भी अगर वो सोया रहे, तो मुझमें पढ़ने की हिम्मत नहीं बचती. तब में सिर्फ और सिर्फ सोना चाहती हूं. …पता है कभी-कभी मन करता है दिन में कम से कम दो-तीन घंटे ये और इसके पापा मेरी आँखों के आगे भी न आएं….आवाज भी न सुनाई दे उस समय उनकी. दिनभर में थक जाती हूं यार!‘‘
मेरी बच्ची, में तुम्हें नहीं बता सकती दिन के 24 घंटों में से, अपने लिए सिर्फ 2-3 घंटे बचाने की कितनी तड़प थी उस मां के भीतर. में उसके चेहरे के भावों को तुम्हें नहीं बता सकती मेरी जान. अपने लिए कुछ समय की तड़प हर मां में होती है, लेकिन सारी मांएं इस बात को कह नहीं सकती, या कहूं कि कहना नहीं चाहती या कुछ कह नहीं पाती. बच्चे से अलग अपने लिए सुकून का समय मांगना, ठीक वैसा ही ‘पाप‘ लगता है जैसा अपने पति की बुराई करना. पति की बुराई तो फिर भी पत्नियां अक्सर लुक-छिपकर कर लेती है. लेकिन बच्चों से दूर अपने लिए समय या अपनी पसंद से जीने की इच्छा, अपवाद ही कोई मां जताती, बताती होगी!
मेरी बच्ची, तुम्हें पता है इस दुनिया में तीन काम सबसे मुश्किल है-खेती, मजदूरी और मां बनना. बिल्कुल तोड़ देने वाली, निचोड़ देने वाली मेहनत है इन तीनों कामों में. दुनिया के हर तरह के काम में साप्ताहिक अवकाश तो मिलता ही है लेकिन किसानों, मजदूरों और मांओं को कोई अवकाश नहीं. किसान और मजदूर से भी ज्यादा टेढ़ा काम है मां बनना और बच्चे की परवरिश करना. क्योंकि किसान और मजदूर के हाथ में फसल और मजदूरी तो आती है कम से कम, …लेकिन मां के हाथ में क्या? खाली है हमेशा.
बच्चा बड़ा हुआ और उसका अपना अलग जीवन शुरू. इतनी मेहनत, ऊर्जा, समय और जीवन के कई महत्वपूर्ण साल देने के बाद भी मां के हाथ रीते के रीते! ये मातृत्व सुख स्त्री की ऊर्जा और समय सोखकर उसे खोई जैसा सा छोड़ देता है! समय का फेर ऐसा कि वही बच्चा मां की बीमारी और बुढ़ापे तक में साथ नहीं दे पाता उसका. कभी दूरी और नौकरी के चलते, तो कभी मंशा ही नहीं होती. बस मां की अंतिम विदाई में बड़ी चाहत से शरीक होते है बच्चे! अपवाद यहां भी है…
मेरी वो पड़ोसन अभी बच्चा नहीं चाहती थी, पर उसने बच्चे को जन्म दिया. दुनिया के ज्यादातर बच्चे ऐसे ही पैदा हो जाते है मेरी जान, बिना मां-बाप की इच्छा के मांओं को तो शायद फिर भी पता होता है कि वह कितने अनचाहे बच्चों की मां है लेकिन पिताओं को जिंदगी भर नहीं पता होता कि वे कितने अनचाहे बच्चों के बाप बने! मैं तुम्हें बता ही चुकी हूं कि तुम्हारी मां भी अपनी मां की अनचाही संतान है.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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