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दून पहुंचे 13 देशों के विशेषज्ञ, कार्बन उत्सर्जन कम करने पर हुई चर्चा

कार्बन उत्सर्जन को कम करना भारत नहीं, दुनिया के तमाम देशों के लिए चुनौती बना हुआ है. भयावह होती जा रही इस समस्या से निपटने के लिए एशिया पैसिफिक रीजनल नॉलेज एक्सचेंज इवेंट-2018 का आयोजन देहरादून में हुआ. इसमें भारत समेत श्रीलंका, इंडोनेशिया, नेपाल, संयुक्त राष्ट्र, कोलंबिया समेत कुल 13 देश एक मंच पर आए हैं, ताकि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कम करने के लिए वन संसाधनों का उचित आकलन कर आपसी साझेदारी से काम किया जा सके.

भारतीय वन सर्वेक्षण के तत्वावधान में राजपुर रोड स्थित एक होटल में फॉरेस्ट रिफ्रेंस (इमिशन) लेवल्स पर दो दिवसीय कार्यशाला शुरू की गई. भारतीय वन सर्वेक्षण के महानिदेशक सुभाष आशुतोष ने कहा, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के दो तरीके अपनाए जा सकते हैं. पहला यह कि कार्बन का उत्सर्जन ही कम किया जाए. इसके लिए देश को अपने-अपने स्तर से ठोस पहल करनी होगी. दूसरा वातावरण में जमा ज्यादा से ज्यादा कार्बन का शोषण किया जा सके. इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं, जिससे कार्बन को वातावरण से सोखा जा सके. पेड़ लगाने के लिए हर व्यक्ति को जागरूक किया जाए.

उन्होंने कहा, इस दिशा में सभी देश अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं. इस कार्यशाला में भी यही प्रयास किया जा रहा है. रही बात भारत की तो अभी प्रतिवर्ष औसतन 49.7 मिलियन टन कार्बन डाईऑक्साइड कम किया जा रहा है. कार्यशाला में एफएसआई के डिप्टी डायरेक्टर प्रकाश लखचैरा सहित 13 देशों के विशेषज्ञ शामिल रहे.

डा. आशुतोष ने कहा, भारत ने जनवरी 2018 में एक रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र को भेजी है, जिसमें प्रस्तावित फारेस्ट रिफरेंस एमिशन लेवल को स्पष्ट किया गया है. इसमें कार्बन डाईऑक्साइड के अलावा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी शामिल है. इसके साथ ही इसमें जमीन के नीचे और ऊपर के बायोमास, मृत पेड़ सहित अन्य चीजें शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन 32.5 गीगाटन की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया. यह ऊर्जा की ऊंची मांग और ऊर्जा दक्षता में सुधार की धीमी गति के कारण था.

आईईए के प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक वैश्विक ऊर्जा की मांग 2017 में 2.1 प्रतिशत बढ़कर 14,050 मिलियन टन तेल के बराबर हुई है जो पिछले साल की तुलना में दो गुना अधिक है.

आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक ऊर्जा मांग के 70 प्रतिशत से अधिक विकास गैर-नवीकरणीय स्रोतों जैसे तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला द्वारा मिले थे, जबकि लगभग सभी बाकी हिस्सों के लिए अक्षय ऊर्जा का हिस्सा था.
वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2017 में 1.4 प्रतिशत बढ़कर 32.5 गीगाटन तक पहुंच गया, जो कि सर्वोच्च रिकॉर्ड है.
वर्ष 2017 में वैश्विक ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं हैं.

आईईए रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि के मामलों में दो-तिहाई एशियाई देशों का योगदान है. अकेले चीन का उत्सर्जन 1.7 प्रतिशत बढ़कर 9.1 गिगाटन तक पहुंच गया है. नवीकरणीय उर्जा स्रोतों के अधिक उपयोग के चलते यह वृद्धि दर्ज की गई है. उर्जा उत्पादन के अन्य स्रोतों का चीन द्वारा अधिक उपयोग किये जाने से कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है जिसके चलते कुल कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हुई है.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की स्थापना वर्ष 1974 में की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य तेल की आपूर्ति में प्रमुख बाधाओं के सामूहिक प्रतिक्रिया का समन्वय कर मुख्य रूप से अपने 29 सदस्य देशों को विश्वसनीय, न्यायोचित और स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करना है. आईईए के चार प्रमुख क्षेत्र ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास, पर्यावरणीय जागरुकता और विश्व में ऊर्जा के प्रति वचनबद्धता हैं.

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