खंडूरी सरकार में बड़ी उम्मीदों से शुरू हुई और उत्तराखंड की लाइफ लाइन बन चुकी 108 एंबुलेंस सेवा अब खुद बीमार हो गई है. 108 एंबुलेंस के कर्मचारियों को न तो समय पर वेतन मिल रहा है और न ही गाड़ियों में तेल की व्यवस्था हो पा रही है. एंबुलेंस की इस दुर्दशा का बुरा असर प्रदेश के आमजन पर पड़ रहा है. वहीं सरकार 108 सेवा को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही है.
नया मामला स्वास्थ्य विभाग और जीवीके इमरजेंसी मैनेजमेंट एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट के बीच चल रहीं खींचतान का है. पेट्रोल पम्पों में 108 एम्बुलेंस और खुशियों की सवारी वाहनों को डीजल देनें से मना कर दिया. मरीजों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से कंपनी को प्रतिमाह दो करोड़ रूपये का भुगतान किया जाता है. विगत पांच माह में केवल अभी तक तीन करोड़ का ही भुगतान हो सका है. सात करोड़ का बकाया कंपनी को स्वास्थ्य विभाग से लेने हैं.
कंपनी का कहना है कि पैसा समय से न मिलने के कारण संचालन प्रभावित हो रहा है और इस वजह से उसकी भी साख खराब हो रही है. शेष भुगतान होने तक वाहनों को चलाना नामुमकिन है. कंपनी में आठ सौ से ज्यादा कमर्चारी है. जिन्हें विगत दो माह से वेतन नहीं दिया जा सका हैं. पेट्रोल पम्पों ने भी डीजल देनें से इंकार कर दिया हैं. वहीं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस पूरे प्रकरण में टालमटोल करते ही नजर आए हैं.
गौरतलब है कि विगत वर्ष के आकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में मई 2008 से शुरू हुई जीवीके ईएमआरआई के जरिये संचालित 108 एंबुलेंस सेवा ने 11 लाख लोगों को आपातकालीन सहायता देने का आंकड़ा पार कर लिया था, इसके साथ ही 108 से अभी तक प्रदेश में 28300 लोगों को जीवनदान मिल चुका है. अब तक कुल चार लाख 26 हजार से अधिक गर्भवती महिलाओं को 108 आपातकालीन सेवा द्वारा संस्थागत प्रसव हेतु राज्य के विभिन्न अस्पतालों तक सुरक्षित पहुंचाया गया है.
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